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रसायन रासायनिक अभिक्रिया की दर एवं रासायनिक साम्य-रासायनिक अभिक्रिया की दर का प्रारंभिक ज्ञान, तीव्र एवं मंद और अन्य

रसायन रासायनिक अभिक्रिया की दर एवं रासायनिक साम्य-रासायनिक अभिक्रिया की दर का प्रारंभिक ज्ञान, तीव्र एवं मंद रासायनिक अभिक्रियाएं, धातुएं आवर्त सारिणी में धातुओं की स्थिति एवं सामान्य गुण, धातु, खनिज अयरक, खनिज एवं अयस्क में अंतर। धातुकर्म अयस्कों का सांद्रण, निस्तापन, भर्जन, प्रगलन एवं शोधन, कॉपर एवं आयरन का धातुकर्म, धातुओं का संक्षारण, मिश्र धातुएं। रासायनिक अभिक्रिया की दर और रासायनिक साम्य

अभिक्रिया दर: अभिकारकों के सांद्रता में समय के साथ होने वाले परिवर्तन की दर।

रासायनिक साम्य: एक रासायनिक अभिक्रिया जिसमें आगे और पीछे की अभिक्रियाएँ समान दर से होती हैं, जिससे अभिकारकों और उत्पादों की सांद्रता स्थिर रहती है।

अभिक्रिया दर को प्रभावित करने वाले कारक

अभिकारक सांद्रता

तापमान

उत्प्रेरक

सतह क्षेत्र

रासायनिक साम्य को प्रभावित करने वाले कारक

तापमान

दबाव

सांद्रता

तीव्र और मंद रासायनिक अभिक्रियाएं

तीव्र अभिक्रियाएं: वे अभिक्रियाएँ जो तेजी से होती हैं, जिससे उत्पाद जल्दी बनते हैं।

मंद अभिक्रियाएं: वे अभिक्रियाएँ जो धीरे-धीरे होती हैं, जिससे उत्पाद बनने में अधिक समय लगता है।

धातुएँ

आवर्त सारिणी में धातुओं की स्थिति

धातुएँ आवर्त सारिणी के s-ब्लॉक और p-ब्लॉक के निचले हिस्से में स्थित होती हैं।

सामान्य गुण

चमकदार

चालक

तन्य और आघातवर्ध्य

उच्च गलनांक और क्वथनांक

धातुकर्म

अयस्कों का सांद्रण

अयस्क से अपशिष्ट पदार्थ को हटाना।

निस्तापन

अयस्क को ऑक्साइड में परिवर्तित करना।

भर्जन

अयस्क ऑक्साइड को कोक (कार्बन) के साथ गर्म करना।

प्रगलन

धातु ऑक्साइड को पिघलाकर अशुद्धियों को हटाना।

शोधन

पिघली हुई धातु से अशुद्धियों को हटाना।

कॉपर और आयरन का धातुकर्म

कॉपर: मुख्य रूप से कॉपर ग्लान्स (Cu₂S) और कॉपर पाइराइट्स (CuFeS₂) से प्राप्त होता है।

आयरन: मुख्य रूप से हेमेटाइट (Fe₂O₃) और मैग्नेटाइट (Fe₃O₄) से प्राप्त होता है।

धातुओं का संक्षारण

धातुओं का वायु या पानी के संपर्क में आने से विघटन।

संक्षारण को रोकने के लिए धातुओं को लेपित या मिश्रित किया जाता है।

मिश्र धातुएँ

दो या दो से अधिक धातुओं का मिश्रण।

मिश्र धातुओं में मूल धातुओं की तुलना में बेहतर गुण होते हैं।

रसायनिक अभिक्रिया विज्ञान में एक महत्वपूर्ण विषय है जो वस्तुओं के बीच रासायनिक प्रक्रियाओं को समझने और विश्लेषण करने का अध्ययन करता है। इसमें अभिक्रिया की दर एवं रासायनिक साम्य-रासायनिक अभिक्रिया की दर का प्रारंभिक ज्ञान होता है, जो प्रयोगशालाओं और उद्योगों में अभिक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है।

रासायनिक अभिक्रियाएं तीव्र या मंद हो सकती हैं, जिसमें तीव्र अभिक्रियाएं तेजी से होती हैं और मंद अभिक्रियाएं धीमी गति से होती हैं। इन अभिक्रियाओं का अध्ययन हमें उत्पादों की निर्माण, उनकी गुणवत्ता, उपयोग और उनके प्रभाव को समझने में मदद करता है।

धातुएं आवर्त सारणी में स्थित होती हैं, जिनकी गुणवत्ता, प्रतिरूप, और अन्य धातुओं के साथ के रिश्तों का अध्ययन किया जाता है। धातुओं की स्थिति और उनकी गुणवत्ता हमें उनके उपयोग, उत्पादन, और प्रभाव को समझने में मदद करती हैं।

धातुकर्म अयस्कों के प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण है, जैसे सांद्रण, निस्तापन, भर्जन, प्रगलन, और शोधन। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से धातुएं प्राप्त की जाती हैं और उन्हें उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।

मिश्र धातुएं भी महत्वपूर्ण हैं, जिनमें अलग-अलग धातुओं को मिलाकर नई गुणवत्ता और उपयोगी धातु बनाया जाता है। ये मिश्रण विभिन्न उद्योगों में उपयोग होते हैं, जैसे धातु उत्पादन, औद्योगिक प्रक्रियाओं, और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में।

अधातुएं आवर्त सारणी में अधातुओं की स्थिति एवं सामान्य गुण, कुछ महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक, कुछ सामान्य कृत्रिम बहुलक, पॉलीथीन, पाली विनाइल क्लोराइड, टेफ्लान, साबुन एवं अपमार्जक। भौतिक शास्त्र प्रकाश-प्रकाश की प्रकृति, प्रकाश का परावर्तन, परावर्तन के नियम, समतल एवं वक सतह से परावर्तन, समतल, उत्तल एवं अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब रचना, अधातुएँ

आवर्त सारणी में स्थिति:

आवर्त सारणी के दाहिने ओर स्थित होती हैं, धातुओं के दायीं ओर।

आवर्त 16 (ऑक्सीजन समूह) से लेकर आवर्त 18 (निष्क्रिय गैस समूह) तक होती हैं।

सामान्य गुण:

कमरे के तापमान पर ठोस, द्रव या गैस हो सकती हैं।

धातुओं की तुलना में कम घनी और कम कठोर होती हैं।

विद्युत और ताप की कुचालक होती हैं।

आमतौर पर रंगीन नहीं होती हैं।

रासायनिक रूप से अधिक क्रियाशील होती हैं।

कुछ महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक:

हाइड्रोकार्बन: मीथेन, एथेन, प्रोपेन

एल्कीन: एथिलीन, प्रोपिलीन

एल्काइन: एसीटिलीन, प्रोपाइन

अल्कोहल: मेथेनॉल, एथेनॉल

एल्डिहाइड: फॉर्मलडिहाइड, एसिटाल्डिहाइड

कीटोन: एसीटोन, मेथिल एथिल कीटोन

कुछ सामान्य कृत्रिम बहुलक:

 पॉलीथीन (PE)

पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC)

टेफ्लॉन (PTFE)

पॉलीप्रोपाइलीन (PP)

पॉलीस्टाइरीन (PS)

पॉलीथीन:

एक थर्माप्लास्टिक बहुलक जो एथिलीन मोनोमर से बना होता है।

लचीला, टिकाऊ और पानी प्रतिरोधी होता है।

पैकेजिंग, पाइप और बोतलों जैसी वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।

पॉलीविनाइल क्लोराइड:

एक थर्माप्लास्टिक बहुलक जो विनाइल क्लोराइड मोनोमर से बना होता है।

कठोर, टिकाऊ और रासायनिक प्रतिरोधी होता है।

पाइप, खिड़की के फ्रेम और फर्श जैसी वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।

टेफ्लॉन:

एक फ्लोरोपॉलीमर बहुलक जो टेट्राफ्लोरोएथिलीन मोनोमर से बना होता है।

अत्यधिक गर्मी प्रतिरोधी, गैर-छड़ी और रसायन प्रतिरोधी होता है।

नॉन-स्टिक कुकवेयर, वायर इन्सुलेशन और एरोस्पेस घटकों में उपयोग किया जाता है।

साबुन और अपमार्जक:

साबुन:

फैटी एसिड के सोडियम या पोटेशियम लवण से बने होते हैं।

पानी और तेल को मिलाने में मदद करके मैल और गंदगी को हटाते हैं।

अपमार्जक:

सिंथेटिक डिटर्जेंट जो साबुन की तरह ही काम करते हैं, लेकिन कठोर पानी में भी प्रभावी होते हैं।

सोडियम लॉरिल सल्फेट या सोडियम डोडेसील सल्फेट जैसे सर्फेक्टेंट से बने होते हैं।

भौतिक शास्त्र

प्रकाश-प्रकाश की प्रकृति:

विद्युत चुम्बकीय विकिरण का एक रूप जो दृश्यमान स्पेक्ट्रम बनाता है।

तरंग और कण दोनों के गुण प्रदर्शित करता है।

प्रकाश का परावर्तन:

एक प्रक्रिया जिसमें प्रकाश किसी सतह से टकराता है और उसी दिशा में परावर्तित होता है।

परावर्तन के नियम:

आपतन कोण (प्रकाश स्रोत से सतह तक की कोण) = परावर्तन कोण (सतह से प्रकाश स्रोत तक का कोण)

आपतन किरण, परावर्तन किरण और अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं।

समतल और वक्र सतह से परावर्तन:

समतल सतह: प्रकाश समानांतर किरणों में परावर्तित होता है।

वक्र सतह: प्रकाश फोकल बिंदु की ओर अपसरण करके या उससे विचलन करके परावर्तित होता है।

समतल, उत्तल और अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब रचना:

समतल दर्पण: वस्तु का आभासी, उतना ही बड़ा और उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।

उत्तल दर्पण: वस्तु का आभासी, छोटा और सीधा प्रतिबिम्ब बनाता है।

अवतल दर्पण: वस्तु की स्थिति के आधार पर वास्तविक या आभासी, सीधा या उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।

अधातुएं, या अवसारी तत्व, आवर्त सारणी में उन तत्वों को कहते हैं जो धातुओं के समीप में स्थित होते हैं। ये अधातुएं धातुओं की गुणवत्ता और प्रयोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक शामिल हैं:

  1. पॉलीथीन: एक प्रकार का प्लास्टिक जो व्यापक उपयोगों के लिए प्रचलित है।
  2. पाली विनाइल क्लोराइड (PVC): एक अन्य प्रकार का प्लास्टिक जो पाइप, कपड़े, खिलौने आदि में उपयोग किया जाता है।
  3. टेफ्लॉन: एक अत्यंत असमान्य स्थिर और गड़बड़ रहित पॉलीमर, जिसका उपयोग गैस्ट्रोनॉमी, औद्योगिक प्रोसेसिंग, और अन्य क्षेत्रों में किया जाता है।
  4. साबुन: एक कार्बनिक यौगिक जो साफ करने के लिए उपयोग किया जाता है।

कुछ सामान्य कृत्रिम बहुलक:

  1. पॉलिस्टीरीन: एक औद्योगिक प्लास्टिक जो पैकेजिंग और अन्य उपयोगों के लिए उपयोग किया जाता है।
  2. पॉलिएथिलीन टेरेफ्थैलेट (PET): प्लास्टिक बोतलों और अन्य कंटेनरों के लिए उपयोग किया जाता है।

भौतिक शास्त्र में, प्रकाश की प्रकृति और प्रकाश के परावर्तन के नियमों का अध्ययन किया जाता है। प्रकाश का परावर्तन, समतल और वक सतह से हो सकता है, और समतल, उत्तल और अवतल दर्पणों के माध्यम से प्रतिबिम्ब बनाया जा सकता है। इस अध्ययन से हम प्रकाश की प्रकृति और इसके विभिन्न प्रकारों के बीच के अंतर को समझते हैं।

फोकस दूरी तथा वकता त्रिज्या में संबंध, गैसों में विद्युत विसर्जन, सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के कारण, विद्युत और इसके प्रभाव-विद्युत तीव्रता, विभव-विभवान्तर, विद्युत धारा, ओहह्म का नियम, फोकस दूरी और वक्रता त्रिज्या के बीच संबंध:

एक गोलीय दर्पण के लिए, फोकस दूरी (f) और वक्रता त्रिज्या (R) के बीच का संबंध है:

f = R/2

गैसों में विद्युत विसर्जन:

जब गैसों पर विद्युत क्षेत्र लगाया जाता है, तो गैस के परमाणुओं या अणुओं में विद्युत आयनन होता है। इससे मुक्त इलेक्ट्रॉन और धनायन बनते हैं, जो विद्युत धारा को संवाहित कर सकते हैं। गैसों में विद्युत विसर्जन की तीन मुख्य प्रक्रियाएँ हैं:

टाउनसेंड विसर्जन: कम दबाव पर होता है, जहाँ प्राथमिक इलेक्ट्रॉन गैस परमाणुओं से टकराकर माध्यमिक इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करते हैं।

ग्लो विसर्जन: टाउनसेंड विसर्जन की निरंतरता, जहाँ टक्करों से प्रकाश उत्सर्जित होता है।

आर्क विसर्जन: उच्च दबाव और विद्युत प्रवाह पर होता है, जहाँ आयनन उच्च होता है और प्लाज्मा बनता है।

सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के कारण:

सूर्य में ऊर्जा निम्नलिखित अभिक्रिया से उत्पन्न होती है:

4¹H → ²He + 2n + ऊर्जा

जहाँ:

¹H हाइड्रोजन के नाभिक का प्रतिनिधित्व करता है

²He हीलियम का नाभिक का प्रतिनिधित्व करता है

n न्यूट्रॉन का प्रतिनिधित्व करता है

यह अभिक्रिया नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया है, जहाँ हाइड्रोजन के चार नाभिक एक हीलियम नाभिक और दो न्यूट्रॉन बनाने के लिए जुड़ते हैं। यह प्रक्रिया एक विशाल मात्रा में ऊर्जा जारी करती है।

विद्युत और इसके प्रभाव:

विद्युत एक प्रकार की ऊर्जा है जो स्थिर या गतिशील विद्युत आवेशों के बीच अंतःक्रिया से उत्पन्न होती है। विद्युत के प्रभाव हैं:

विद्युत तीव्रता: किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की ताकत का मापन।

विभव: एक बिंदु पर विद्युत ऊर्जा की मात्रा का मापन।

विभवान्तर: दो बिंदुओं के बीच विद्युत विभव का अंतर।

विद्युत धारा: विद्युत आवेश का एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक प्रवाह दर।

 ओम का नियम: विद्युत परिपथ में विद्युत धारा (I) और विभवान्तर (V) के बीच का संबंध है: I = V/R, जहाँ R प्रतिरोध है।

फोकस दूरी और वकता त्रिज्या के बीच का संबंध भौतिक शास्त्र में प्रमुख धारणाओं में से एक है। यह धारणा बताती है कि जब एक लेंस (या एक अपरिपक्षीय उपकरण) पर प्रकाश की एक बेतरतीब तरीके से पड़ी होती है, तो यह प्रकाश एक संदर्भीय बिंदु पर एक संयोजित या फोकस द्वारा संक्रमित होता है। फोकस दूरी का अर्थ है कि लेंस की केंद्रीय बिंदु से लेंस तक की दूरी, जिस पर प्रकाश को संक्रमित किया जाता है, होती है। वकता त्रिज्या का अर्थ होता है कि प्रकाश के बिंदु पर एक संयोजित बिंदु के लिए लेंस की उपयुक्त त्रिज्या, जिसके माध्यम से प्रकाश फोकस होता है, होती है।

गैसों में विद्युत विसर्जन का मतलब होता है गैस में अप्रत्याशित विद्युतीय ऊर्जा के उत्पन्न होने का प्रक्रिया। यह ऊर्जा विद्युत प्रवाह के कारण होती है जो गैस में अदृश्य धाराओं के साथ प्रवाहित होती है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप, गैस में ताप उत्पन्न होती है।

सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के कारण आधुनिक भौतिक विज्ञान में एक अद्भुत क्षेत्र है। सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के प्रमुख कारण सूर्य में न्यूक्लियर फ्यूजन धारा होता है, जिसमें हाइड्रोजन नामक अणुओं के विलयन से हेलियम और ऊर्जा उत्पन्न होती है।

विद्युत और इसके प्रभाव में विद्युतीय तीव्रता, विभव-विभवान्तर, विद्युत धारा, और ओहम के नियम अहम हैं। विद्युतीय तीव्रता विद्युतीय दबाव और विद्युत प्रवाह की मापक एकाई होती है। विभव-विभवान्तर विद्युत ऊर्जा के एक स्रोत से दूसरे स्रोत में परिणामित होता है। विद्युत धारा एक तरह का विद्युत प्रवाह होता है जो किसी परिपथ के माध्यम से विद्युत के परिवहन को संभव बनाता है। ओहम का नियम विद्युत धारा, विभव और विद्युतीय तीव्रता के बीच संबंध का निर्धारण करता है।

विद्युतीय तीव्रता, विभव-विभवान्तर, विद्युत धारा, और ओहम के नियम विद्युतीय प्रणालियों की अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

  1. विद्युतीय तीव्रता (Electrical Intensity): यह विद्युत प्रवाह की मात्रा को निर्दिष्ट करती है और विद्युत प्रणाली में ऊर्जा के प्रवाह की तीव्रता को मापने में मदद करती है। यह धाराओं के माध्यम से मापी जाती है और अम्पीयर (Ampere) में प्रकट की जाती है।
  2. विभव-विभवान्तर (Potential Difference): इसे विद्युत धारा की गतिशीलता के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह दो बिंदुओं के बीच के विद्युत धारा में ऊर्जा के परिवर्तन को दर्शाता है और वोल्ट (Volt) में मापा जाता है।
  3. विद्युत धारा (Electric Current): विद्युतीय प्रणाली में विद्युत ऊर्जा के प्रवाह को विद्युत धारा कहा जाता है। यह अम्पीयर में मापा जाता है और धाराओं के माध्यम से प्रवाहित होता है।
  4. ओहम का नियम (Ohm’s Law): ओहम का नियम विद्युत धारा, विभव और विद्युतीय तीव्रता के बीच संबंध को व्यक्त करता है। इसके अनुसार, धारा (I) विभव (V) और विद्युतीय तीव्रता (R) के बीच निम्नलिखित संबंध से होता है:

[ V = IR ]

यहाँ,

  • V = विभव (Volts)

  • I = विद्युत धारा (Amperes)

  • R = विद्युतीय तीव्रता (Ohms)

यह नियम विद्युत प्रणाली में ऊर्जा के प्रवाह को समझने में मदद करता है और विद्युतीय उपकरणों के डिजाइन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रतिरोध, विशिष्ट प्रतिरोध, प्रभावित करने वाले कारक, प्रतिरोधों का संयोजन एवं इसके आंकिक प्रश्न, विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव, इसकी उपयोगिता, शक्ति एवं विद्युत ऊर्जा व्यय की गणना (आंकिक) विद्युत प्रयोग में रखी जाने वाली सावधानियां, प्रकाश विद्युत प्रभाव, सोलर सेल, संरचना, P-N संधि, डायोड, प्रतिरोध

प्रतिरोध एक सामग्री की विद्युत प्रवाह को बाधित करने की क्षमता है। इसे ओम (Ω) में मापा जाता है।

विशिष्ट प्रतिरोध

विशिष्ट प्रतिरोध एक सामग्री का प्रतिरोध है जब इसकी लंबाई 1 मीटर और अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1 वर्ग मीटर होता है। इसे ओम-मीटर (Ω-m) में मापा जाता है।

प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक

सामग्री: विभिन्न सामग्रियों का अलग-अलग प्रतिरोध होता है।

लंबाई: प्रतिरोध बढ़ता है क्योंकि सामग्री की लंबाई बढ़ती है।

अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल: प्रतिरोध घटता है क्योंकि अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल बढ़ता है।

तापमान: अधिकांश सामग्रियों के लिए, प्रतिरोध तापमान के साथ बढ़ता है।

प्रतिरोधों का संयोजन

परिपथ में श्रेणी में: प्रतिरोध जोड़ दिए जाते हैं, कुल प्रतिरोध उनकी राशि के बराबर होता है।

परिपथ में समानांतर में: प्रतिरोधों के व्युत्क्रम जोड़ दिए जाते हैं, कुल प्रतिरोध का व्युत्क्रम इसकी राशि के बराबर होता है।

आंकिक प्रश्न

  1. 10 Ω प्रतिरोध रखने वाले 1 मीटर लंबे तार का विशिष्ट प्रतिरोध क्या है?
  2. एक परिपथ में 10 Ω, 15 Ω और 20 Ω के प्रतिरोध श्रेणी में जुड़े हुए हैं। कुल प्रतिरोध क्या है?
  3. एक परिपथ में 10 Ω, 15 Ω और 20 Ω के प्रतिरोध समानांतर में जुड़े हुए हैं। कुल प्रतिरोध क्या है?

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव

विद्युत धारा एक चालक से गुजरने पर गर्मी उत्पन्न करती है। इसे जूल का नियम द्वारा दिया जाता है:

H = I²Rt

जहां:

H = उत्पन्न ऊष्मा (जूल)

I = धारा (एम्पीयर)

R = प्रतिरोध (ओम)

t = समय (सेकंड)

उष्मीय प्रभाव की उपयोगिता

इलेक्ट्रिक हीटर और लाइट बल्ब

इंडक्शन कुकिंग

वेल्डिंग

शक्ति और विद्युत ऊर्जा व्यय

शक्ति विद्युत धारा द्वारा किए गए कार्य की दर है। इसे वाट (W) में मापा जाता है।

विद्युत ऊर्जा व्यय उस ऊर्जा की मात्रा है जो समय के साथ कार्य करती है। इसे किलोवाट-घंटे (kWh) में मापा जाता है।

आंकिक प्रश्न

  1. 10 A की धारा 10 Ω के प्रतिरोध से 5 सेकंड के लिए प्रवाहित होती है। उत्पन्न ऊष्मा कितनी होगी?
  2. 100 W के बल्ब को 5 घंटे तक जलाया जाता है। उस द्वारा उपभोग की गई ऊर्जा कितनी होगी?

विद्युत प्रयोग में रखी जाने वाली सावधानियां

बिजली को संभालते समय हमेशा सावधानी बरतें।

क्षतिग्रस्त उपकरणों या तारों का उपयोग न करें।

बिजली के उपकरणों को गीले हाथों से न छुएं।

उच्च वोल्टेज क्षेत्रों से दूर रहें।

विद्युत फ्यूज या सर्किट ब्रेकर क्षमता से अधिक न करें।

प्रकाश विद्युत प्रभाव

प्रकाश विद्युत प्रभाव तब होता है जब प्रकाश धातु की सतह पर पड़ता है और इलेक्ट्रॉनों को उत्सर्जित करता है।

सोलर सेल

सोलर सेल एक उपकरण है जो सूर्य के प्रकाश को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह प्रकाश विद्युत प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है।

संरचना

सोलर सेल में एक अर्धचालक सामग्री (जैसे सिलिकॉन) परत होती है, जो पी-एन संधि बनाती है।

पी-एन संधि

पी-एन संधि एक अर्धचालक संरचना है जिसमें पी-प्रकार और एन-प्रकार सामग्रियों के दो क्षेत्र होते हैं।

डायोड

डायोड एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो केवल एक दिशा में विद्युत प्रवाह की अनुमति देता है। यह पी-एन संधि के समान सिद्धांत पर कार्य करता है।

विद्युत प्रवाह में प्रतिरोध (Resistance) एक महत्वपूर्ण धारणा है। प्रतिरोध वह प्रतिरोध है जो विद्युत प्रवाह को रोकता है और ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में रूपांतरित करता है। यह धारणा ओहम के नियम के अनुसार V = IR में प्रदर्शित होती है, जहां V विभव, I विद्युत धारा, और R प्रतिरोध है।

विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance): प्रतिरोध की मात्रा को विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है, और इसे ऑहम-मीटर्स में व्यापकता से नापा जाता है।

प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Resistance): प्रतिरोध को निर्धारित करने वाले कारक शामिल हैं वस्तु के लंबाई, आयतन, और धातु का प्रकार। लंबाई बढ़ाने से प्रतिरोध बढ़ता है, आयतन के साथ साथ धातु के प्रकार भी प्रतिरोध पर प्रभाव डालते हैं।

प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistors) एवं इसके आंकिक प्रश्न (Numerical Questions): प्रतिरोधों का संयोजन कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे श्रृंगट, परालल, या उसके संयोजन। इनका आंकिक अध्ययन हमें विद्युतीय प्रणाली में प्रतिरोधों के बीच संबंध को समझने में मदद करता है।

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव (Thermal Effect of Electric Current): विद्युत धारा के द्वारा उत्पन्न होने वाला ऊर्जा उष्मीय प्रभाव के रूप में परिणामित होता है, जिससे विद्युत प्रणाली के तापमान में वृद्धि होती है।

विद्युत ऊर्जा व्यय की गणना (Calculation of Electrical Power Consumption): विद्युत प्रणाली में ऊर्जा के व्यय की गणना शक्ति के उपयोग के साथ जोड़ा जाता है। इसके लिए शक्ति गणना फॉर्मूला P = VI का उपयोग किया जाता है, जहां P शक्ति, V विभव, और I विद्युत धारा है।

प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photoelectric Effect): प्रकाश विद्युत प्रभाव एक दिवसीय इलेक्ट्रॉन के निकट प्रकाश पड़ने पर उसे उच्चतम स्तर में ऊर्जित करने का प्रक्रिया है। यह विद्युत प्रोत्साहन और सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोगी है।

सोलर सेल (Solar Cells): सोलर सेल सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये जल से शुद्ध, अक्षय, और पर्यावरण के दृष्टिकोण से साथी होते हैं।

संरचना (Structure): सोलर सेल का मुख्य संरचना पी-एन संधि, डायोड, और अन्य संरचनाओं को शामिल करता है।

P-N संधि (P-N Junction): पी-एन संधि एक प्रकार की सेमीकंडक्टर डिवाइस होती है जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए प्रयोग की जाती है।

डायोड (Diode): डायोड एक प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो विद्युत धारा को एक साथ अनुमति देता है, लेकिन उल्टी धराएँ रोकता है।

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