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कम्प्यूटर प्रणाली (Computer System)

कम्प्यूटर प्रणाली (Computer System)

एक या एक से अधिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कार्यरत इकाइयों के समुह को एक प्रणाली ( System) कहते हैं। जैसे- अस्पताल एक प्रणाली हैं, जिसकी इकाइयाँ (भाग) हैं- डॉक्टर, नर्स, चिकित्सा के उपकरण, ऑपरेषन थियेटर, मरीज आदि तथा इसका लक्ष्य हैं मरीजों की सेवा व चिकित्सा | इसी प्रकार कम्प्यूटर भी एक सिस्टम (System) के रूप में कार्य करता हैं जिसके निम्नलिखित भाग या इकाइयाँ (Units) है

कम्प्यूटर हार्डवेयर (Computer Hardware) – कम्प्यूटर के यांत्रिक (Mechanical), वैद्युत (Electrical) तथा इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) भाग, कम्प्यूटर हार्डवेयर कहलाते हैं। दूसरे परिभाषा में कम्प्यूटर तंत्र की वह इकाई जिन्हें देखा जा सकता हो तथा स्पर्ष किया जा सकता हो, जैसे मॉनीटर, की-बोर्ड आदि ।

कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer Software)- ये वे प्रोग्राम (Program ) हैं जो कम्प्यूटर को यह निर्देष देते हैं कि किस प्रकार डाटा की प्रोसेसिंग की जाये और आवष्यक सूचना (Information) और परिणाम जनित (Generate) की जाये। दूसरी परिभाषा में, कम्प्यूटर तंत्र की वह इकाई जो कम्प्यूटर हार्डवेयर के संसाधनों का उपयोग करती हैं, जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम |

कम्प्यूटर पर्सनल (Computer Personel) – या प्रयोक्ता (User) – वे लोग जो कम्प्यूटरीकृत (Computerized) डाटा तैयार करते हैं, प्रोग्राम (Program) लिखते हैं, कम्प्यूटर को चलाते हैं और आउटपुट प्राप्त करते हैं, कम्प्यूटर पर्सनल (Computer Personal) या प्रयोक्ता (User) कहलाते हैं। Hardware Computer System Software User

एक कम्प्यूटर सिस्टम (Computer System) प्रभावषाली रूप में से तभी कार्य कर सकता हैं

जबकि इसके तीनों भाग (Components) सुचारू रूप से क्रियाषील हों। किसी भी एक भाग (Component) के क्रियाषील न होने की दषा में सम्पूर्ण कम्प्यूटर सिस्टम काम नहीं कर सकेगा।

Characteristic of Computer

(1) High Speed ( तेज गति ) – Computer किसी भी मषीन की अपेक्षा सबसे Fast Speed से कार्य करता हैं । For example दो Numeric Values को Add करने में Micro Seconds से भी कम समय लगाता हैं। एक Micro Second में Computer 10 लाख से भी अधिक mathematical Calculation कर सकता हैं।

(2) Accuracy (षुद्धता) – जब भी किसी व्यक्ति को एक ही प्रकार का कार्य बार – 2 करना पड़ता हैं तो उसे थकावट होने लगती हैं ओर उस कार्य में गलतियां होने की संभावना बढ़ जाती हैं पर कम्प्यूटर के साथ किसी भी एक Process को बार – 2 करने पर ऐसा कभी नहीं होगा कि Computer दो अलग- 2 Result दें । यदि कम्प्यूटर कभी गलत Result Display करता हैं तो उसका कारण कम्प्यूटर नहीं बल्कि User हैं । जिसने गलत Data अथवा Program use में लिया हैं।

(3) Versatile (उपयोगिता) कम्प्यूटर विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार से उपयोगी हैं। जैसे Bill Create करना Reports तैयार करना Mathematical Problem Solve करना Diagram बनाना etc.

(4) Diligent (कार्य करने की क्षमता ) – मनुष्य की तरह कम्प्यूटर कभी थकता नहीं हैं। अतः जहां किसी एक ही प्रकार के कार्य को बार–2 करना हो वहां कम्प्यूटर एक अच्छा Assistant साबित हो सकता हैं तथा बिना रूके उस कार्य को उसी प्रकार पूरा करेगा जिस प्रकार First Time Complete किया था ।

(5) Storage Capacity ( भण्डारण क्षमता)- Computer अपनी Memory में कई प्रकार की information Store करके रख सकता हैं। तथा आवष्यकता होने पर desired information को उपलब्ध भी करा सकता हैं ।

Limitations

(1) Lack of IQ ( सोचने की क्षमता नहीं होना ) :- कम्प्यूटर में कुछ भी अपने आप सोचने की तथा Decision लेने की Capacity नहीं होती। यह केवल वही कार्य करता हैं जिसे करने का Order उसे दिया जाता हैं । कम्प्यूटर से कार्य कराने के लिए प्रोग्राम बनाने होते हैं ओर कम्प्यूटर प्रोग्राम के अनुसार कार्य करता हैं । कम्प्यूटर स्वयं उपलब्ध Alternative में से सही विकल्प Select करने में असमर्थ हैं।

(2) Feeling Less (महसूस नहीं कर सकता ) – Computer एक Machine हैं और उसके कार्य करने में Feelings का कोई स्थान नहीं हैं।

(3) Do Not Learn From Past Experience – Computer को एक ही तरह का कार्य करने के लिए बार-2 निर्देषित करना पड़ता हैं पिछले कार्यों से वह कुछ भी नहीं सिखता तथा प्रत्येक कार्य के लिए बार-2 निर्देष पर निर्भर रहता हैं ।

(4) Limited Memory ( सीमित मैमोरी ) – Computer में Primary व Secondary दोनो प्रकार की Memory उपलब्ध होती हैं। फिर भी उसकी Memory Limited होती हैं ।

(5) Gigo – (Garbage in Garbage out) – यदि गलत Data या instruction Computer को दिया जाए तो वह निष्चित रूप से गलत Result Display करेगा । कम्प्यूटर स्वयं Debugging का कार्य नहीं कर सकता। Capability of Computer कार्य क्षमता, उपयोगिता, उत्पादकता के कारण आज Computer मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया हैं ।

आज Computer का प्रयोग निम्नलिखित Fields में कर सकते हैं ।

(1) Education :- Computer का Development मुख्यतः Mathematical Problem को Solve करने के लिए हुआ था। अतः इसका सबसे अधिक उपयोग गणित, सांख्यिकी Economics, Statistics जैसे जटिल विषयों को समझने के लिए किया जाता है स्कूल तथा कॉलेज में विद्यार्थियों की Personal Information को वापस प्राप्त किया जा सकता हैं। स्कूल में विद्यार्थी को Different-2 Subject से Related विभिन्न प्रकार की Education Computer द्वारा सिखायी जाती हैं।

(2) Business & Commerce (व्यापार एवं वाणिज्य ):- Computer का Use Business में सबसे अधिक किया जा रहा हैं। India में अभी Computerise Trade & Business अभी Starting Stage में ही हैं । E-Commerce Computer की एक ऐसी Branch हैं जिसके द्वारा कोई भी दो Business Oraganisation अपना व्यापार Word Wide कर सकता हैं।

(3) Health: – स्वास्थ्य संबंधी कार्यो में भी Computer का अधिक से अधिक उपयोग किया जा रहा हैं। CTScan, Ultra Sound, Sonography आदि कार्यो में Use में ली जाने वाली मषीन Computer से नियंत्रित होती हैं ।

(4) Administration :- Office में कर्मचारियों से संबंधित सूचनाओं को Computer में Stored करके आवष्यकतानुसार उपयोग में लिया जा सकता हैं | Police department में अपराधियों के Records Computer में Stored करके रखा जाता हैं। किसी भी ऑफिस में employees का ध्यान रखने के लिए तथा समय – 2 पर विभिन्न प्रकार की Information भेजने के लिए कम्प्यूटर का उपयोग लिया जाता हैं।

(5) D.T.P. Work and Printing Work :- News Papers, Books, Invitation Card आदि सभी प्रकार के कार्य D.T.P. के अंतर्गत आते ही इन सभी प्रकार के कार्यों को करने के लिए Computer का प्रयोग किया जा रहा हैं। जिससे इन कार्यों की Speed तथा Quality better हो गयी हैं D.T.P. के लिए कुछ विषेष प्रकार के Programme या Software की आवष्यकता होती हैं। जैसे Photo Editing के लिए Photoshop, Card Design के लिए Coral Draw, Magazine के लिए Page Maker etc.

(6) Message Transmission:- किसी भी देष की आधुनिकता उसकी संचार व्यवस्था से लगाई जाती हैं। E-mail संचार का एक ऐसा माध्यम हैं जिसे कम्प्यूटर तथा इन्टरनेट की सुविधा का प्रयोग करते हुए सुचनाऐं एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक भेजी जा सकती हैं। Information भेजने का यह कार्य कम समय व कम लागत पर किया जा सकता हैं ।

(7) Astronomy: – Astronomy के क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग अधिक किया जा रहा हैं। Astronomy में सारा कार्य Calculation होता हैं । कम्प्यूटर का Main Work Calculation करना ही है इसके लिए कई प्रकार के Software Market में उपलब्ध हैं। जिसका प्रयोग हर व्यक्ति कर सकता हैं। जिसको ज्योतिष का ज्ञान नहीं भी हों। ऐसे कुछ Software Kundli, नक्षत्र हैं।

(8) Music: – पिछले कई वर्षो में बनी फिल्मस तथा एलबम देखते हैं तो हम पाएगें कि संगीतकारो ने अपना Music Computer की Help से Compose किया हैं । कम्प्यूटर की Help से किसी भी Instruments की Sound Create की जा सकती हैं तथा उनके Combination से नए – 2 Music या Sounds generate किए जा सकते हैं तथा Music की Quality को Improve किया जा सकता हैं।

(9) Entertainment : – Computer का Use Videos, Games, Music इत्यादि देखने के लिए तथा उन्हें Develop करने के लिए भी किया जा रहा हैं। Movies में कम्प्यूटर का प्रयोग Special Effects Apply करने के लिए किया जाता हैं। विभिन्न प्रकार की Cartoon तथा Animation Computer पर ही Develop हो जाती हैं ।

Use of Computers in Different Fields:

  1. Business
  2. Education
  3. CAD
  4. CAM
  5. Banking
  6. Fundamentals of Computers & Information Technology
  7. Finance
  8. Computer
  9. Applications
  10. Medicine

गणितीय क्रियायें

(Arithmetic Operations)

  • जोड़

घटाव

  • (x) गुणा

  • (/) भाग

ऐरिथमेटिक व लॉजिक यूनिट (Arithmetic & Logic Unit)

मुख्य मेमोरी यूनिट (Main Memory Unit)

कन्ट्रोल यूनिट (Control Unit) Communication Law CAE

सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)

CPU कम्प्यूटर का मस्तिष्क होता हैं। इसका मुख्य कार्य प्रोग्रामों ( Programs) को क्रियान्वित (Execute) करना हैं। इसके अलावा CPU कम्प्यूटर के सभी भागों, जैसे – मेमोरी, इनपुट और आउटपुट डिवाइसेज के कार्यों को भी नियंत्रित करता हैं। प्रोग्राम और डाटा, इसके नियंत्रण में मेमोरी में संगृहित होते हैं। इसी के नियंत्रण में आउटपुट स्क्रीन (Screen) पर दिखाई देता हैं या प्रिंटर के द्वारा कागज पर छपता हैं ।

सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के तीन भाग होते हैं। ये निम्नलिखित हैं

  • एरिथमेटिक एवम् लॉजिक यूनिट (Arithmetic & Logic Unit)
  • मुख्य मेमोरी यूनिट (Main Memory Unit)
  • कंट्रोल यूनिट (Control Unit)

एरिथमेटिक एवम् लॉजिक यूनिट (Arithmetic & Logic Unit)

एरिथमेटिक एवम् लॉजिक यूनिट को संक्षेप में ए. एल.यू. यूनिट कहते हैं । यह यूनिट डाटा पर अंकगणितीय क्रियाएँ (जोड़, बाकी, गुणा, भाग) और तार्किक क्रियाएँ (Logical Operations) करती हैं। इसमें ऐसा इलेक्ट्रॉनिक परिपथ होता हैं जो बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmetic) की गणनाएँ करने में सक्षम होता हैं। ए.एल.यू. सभी गणनाओं को पहले अंकगणितीय क्रियाओं में बाँट लेता है, जैसे गुणा (Multiplication) को बार-बार जोड़ने की क्रिया में बदलना । बाद में इन्हें विद्युत पल्स (Pulse) में बदल कर परिपथ में आगे संचारित किया जाता हैं। तार्किक क्रियाओं (Logical Operations) में ए.एल.सू. दो संख्याओं या डाटा की तुलना करता हैं और प्रक्रिया (Processing) में निर्णय लेने का कार्य करता हैं । ए.एल.यू. (ALU), Control Unit से निर्देष (Instruction) लेता हैं। यह मेमोरी से डाटा प्राप्त करता हैं और मेमोरी में ही सूचना (Information) को लौटा देता हैं। ए.एल.यू. (ALU) के कार्य करने की गति अति तीव्र होती हैं । यह लगभग 1000000 गणनाएँ प्रति सैकण्ड की गति से करता हैं। इसमें कई रजिस्टर (Register) और एक्यमुलेटर (Accumulators) होते हैं जो गणनाओं के दौरान क्षणिक संग्रह हेतु क्षणिक मेमोरी का कार्य करते हैं। ए.एल.यू. प्रोग्राम के आधार पर कंट्रोल यूनिट के बताए अनुसार सभी डाटा मेमोरी से प्राप्त करके एक्युमुलेटर (Accumulator) में रख लेता हैं।

उदाहरणार्थ, माना दो संख्याओं A और B को जोड़ना हैं। कंट्रोल यूनिट A की मेमोरी से चुनकर ए. एल.यू. में स्थित A में जोड़ती हैं। परिणाम मेमोरी में स्थित हो जाता हैं या आगे गणना हेतु एक्युमुलेटर में संगृहीत रह जाता हैं।

कन्ट्रोल यूनिट (Control Unit)

यह भाग की आन्तरिक क्रियाओं का संचालन करता हैं । यह इनपुट / आउटपुट क्रियाओं को नियंत्रित करता हैं, साथ ही मेमोरी और ए. एल.यू. (ALU) के मध्य डाटा के आदान-प्रदान को निर्देषित करता हैं । यह प्रोग्राम को क्रियान्वित करने के लिए प्रोग्राम के निर्देषों को मेमोरी में से प्राप्त करता हैं। निर्देषों को विद्युत संकेतों ( Electric Signals) में परिवर्तित करके यह उचित डिवाइसेज तक पहुँचाता हैं, जिससे डाटा प्रक्रिया हेतु डाटा मेमोरी में कहाँ उपस्थित हैं, क्या क्रिया करनी हैं तथा प्रक्रिया के पष्चात् परिणाम मेमोरी में कहाँ स्टोर होना है, इन सभी निर्देषों के विद्युत संकेत, सिस्टम बस ( System Bus) की नियंत्रक बस (Control Bus) के माध्यम से कम्प्यूटर भागों (Components) तक संचारित होते हैं ।

रजिस्टर (Register)

कम्प्यूटर निर्देष C.P.U. के द्वारा क्रियान्वित किए जाते हैं। निर्देषों को क्रियान्वित करने के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान होता हैं। सूचनाओं को संतोषजनक व तेजी से आदान-प्रदान के लिए कम्प्यूटर का सी.पी.यू. (CPU) मैमोरी यूनिट का प्रयोग करता हैं। इन मेमोरी यूनिट को रजिस्टर (Register) कहते हैं ।

रजिस्टर मुख्य मेमोरी के भाग नहीं होते हैं। इनमें सूचनां अस्थाई रूप में संगृहित रहती हैं। किसी भी रजिस्टर का आकार उसकी बिट संगृहीत कर सकता हैं तो इसे 8 बिट रजिस्टर कहते हैं। इन दिनों 16 बिट रजिस्टर वाले कम्प्यूटर तो साधारण हैं जबकि 32 बिट तथा 64 बिट के प्रोसेसर भी उपलब्ध हैं। रजिस्टर जितने अधिक बिट की होगी उतनी ही अधिक तेजी से कम्प्यूटर में डाटा प्रोसेसिंग का कार्य सम्पन्न होगा । कम्प्यूटर में प्रायः निम्न प्रकार के रजिस्टर होते हैं ।

  • मेमोरी एड्रेस रजिस्टर ( Memory Address Register) – यह कम्प्यूटर निर्देष की Active मेमोरी स्थान (Location) को संगृहित रखता हैं।
  • मेमोरी बफर रजिस्टर (Memory Buffer Register) – यह रजिस्टर मेमोरी से पढ़े गए या लिखे गए किसी शब्द के तथ्यों (Contents) को संगृहित रखता हैं ।
  • प्रोग्राम कन्ट्रोल रजिस्टर (Accumulator Register) – यह रजिस्टर क्रियान्वित होने वाली अगले निर्देष का पता (Address) संगृहित रखता हैं ।
  • एक्यूमुलेटर रजिस्टर ( Accumulator Register) – यह रजिस्टर क्रियान्वित होते हुए डाटा को उसके माध्यमिक (Intermediate) रिजल्ट व अन्तिम रिजल्ट ( Result ) को संगृहित रखता हैं । प्रायः ये रजिस्टर सूचनाओं के क्रियान्वयन के

समय प्रयोग होता हैं ।

इन्स्ट्रक्षन रजिस्टर (Instruction Register) – यह रजिस्टर क्रियान्वित होने वाली सूचना को संगृहित रखता हैं ।

इनपुट/आउटपुट रजिस्टर (Input/Output Register) – ये रजिस्टर विभिन्न इनपुट / आउटपुट डिवाइस के मध्य सूचनाओं के आवागमन के लिए प्रयोग होता हैं ।

इन्सट्रक्षन सेट (Instruction Set )

C.P.U के निर्देष, जो कमाण्डस (Commands) को क्रियान्वित (Execute) करने के लिए कन्ट्रोल यूनिट (Control Unit) में तैयार किये जाते हैं। निर्देष समूह ( Instruction Set ) वैसे सभी क्रियाओं की सूची तैयार करता हैं जो C.P.U. कर सकता हैं। इन्स्ट्रक्षन सेट (Instruction Set ) का प्रत्येक निर्देष (Instruction) माइक्रो कोड (Micro Code) में व्यक्त किया जाता हैं जो C.P.U. को यह बताता हैं कि जटिल क्रियाओं को कैसे क्रियान्वित करें ।

प्रोसेसर स्पीड (Processor Speed)

प्रोसेसर स्पीड (Processor Speed) या प्रोसेसर गति से तात्पर्य प्रोसेसर द्वारा सूचनाओं को क्रियान्वित करने की गति से होता हैं। प्रोसेसर की गति मेगा हर्ट्ज (Megahertz) में नापी जाती हैं किसी प्रोसेसर की गति प्रोसेसर के द्वारा प्रयोग की जा रही डाटा बस (Data Bus) पर निर्भर करती हैं। डाटा बस (Data Bus) प्रोसेसर में डाटा के आवागमन के लिए प्रयोग की जाती हैं। ये डाटा बस 8 – बिट्स, 16 – बिट्स, 32-बिट्स, 64-बिट्स 128 – बिट्स की होती हैं। 8 बिट्स से तात्पर्य एक समय में 8 – बिट्स डाटा ट्रांसफर होने से हैं। इसी प्रकार 128 बिट्स डाटा बस ( Bits Data Bus) से तात्पर्य एक समय में 128 – 8 – बिट्स डाटा से ट्रांसफर होने से हैं। डाटा बस (Data Bus) का आकार अधिक होगा, प्रोसेसर की गति उतनी ही अधिक होगी ।

कम्प्यूटर के प्रकार (Types of Computers)

कम्प्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देष्य तथा आकार- षक्ति के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते हैं । वस्तुतः इनका सीधे-सीधे अर्थात् प्रत्यक्षतः (directly) वर्गीकरण करना कठिन है, इसलिए इन्हें हम निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत करते हैं-

  • अनुप्रयोग (Application)
  • उद्देष्य (Purpose)
  • आकार (Size)

अनुप्रयोगो के आधार पर कम्प्यूटरो के प्रकार (Types of Computers Based on Application) यद्यपि कम्प्यूटर के अनेक अनुप्रयोग (Application) हैं जिनमें से तीन अनुप्रयोगों के आधार पर कम्प्यूटरों के तीन प्रकार होते हैं:-

  • एनालॉग कम्प्यूटर (Analog Computer)
  • डिजिटल कम्प्यूटर ( Digital Computer)
  • हायब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)

एनालॉग कम्प्यूटर (Analog Computer)

एनालॉग क्म्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो मात्राओं, जैसे- दाब (Pressure), तापमान (Tempreture), लम्बाई (Length) आदि को मापकर उनके परिणाम अंको में व्यक्त करते हैं ये कम्प्यूटर किसी राषि का परिणाम, तुलना के आधार पर करते हैं। जैसे कि एक थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता हैं अपितु ये पारे के सम्बंधित प्रसार (Relative Expansion) की तुलना करके शरीर के तापमान को मापता हैं। एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं (Quantities) का अधिक उपयोग होता हैं। ये कम्प्यूटर केवल अनुमानित परिणाम ही देते हैं।

डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer)

डिजिटल कम्प्यूटर वह कम्प्यूटर होता हैं जो अंकों की गणना करता हैं । डिजिटल कम्प्यूटर डाटा (Data) और प्रोग्राम्स (Programs) को 0 तथा 1 में परिवर्तित करके उनको इलेक्ट्रानिक रूप में ले आता हैं। अधिकतर कम्प्यूटर डिजिटल कम्प्यूटर की श्रेणी में आते हैं।

हायब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)

हायब्रिड (Hybrid) का अर्थ हैं संकरित अर्थात् अनेक गुण-धर्म युक्त होना । वे कम्प्यूटर जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और डिजिटल कम्पयूटर, दोनों के गुण उपस्थित हों, हायब्रिड कम्प्यूटर(Hybrid Computer) कहलाते हैं।

उद्देष्यों के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार (Types of Computers Based on Purpose)

कम्प्यूटर को दो उद्देष्यों के लिए हम स्थापित कर सकते हैं – सामान्य (General) और विषिष्ट (Special) इस प्रकार कम्पयूटर, उद्देष्य के आधार पर निम्नलिखित दो प्रकार के होते है:

  • सामान्यउद्देषीय कम्प्यूटर (General Purpose Computer)
  • विषिष्टउद्देषीय कम्प्यूटर (Special Purpose Computer)

सामान्यउद्देषीय कम्प्यूटर (General Purpose Computer)

ये ऐसे कम्प्यूटर हैं जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती हैं लेकिन ये कार्य सामान्य होते हैं, जैसे- शब्द प्रक्रिया (Word Processing) में टाइप करके पत्र व दस्तावेज तैयार करना, दस्तावेजों को छापना, डाटाबेस (Database) बनाना आदि। इनके सी. पी. यू. (CPU) की क्षमता सीमित एवं कीमत कम होती हैं।

विषिष्टउद्देषीय कम्प्यूटर ( Special Purpose Computer)

ये ऐसे कम्प्यूटर हैं जिन्हें किसी विषेष कार्य के लिए तैयार किया जाता हैं। इनके सी.पी.यू. (CPU) की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती हैं जिसके लिए इन्हें तैयार किया गया हैं ।

उदाहरणार्थ, संगीत–संपादन करने हेतु किसी स्टूडियो (Studio) में लगाया जाने वाला कम्प्यूटर विषिष्ट उद्देषीय कम्प्यूटर (SpecialPurpose Computer) होगा। इसके अलावा विषिष्ट उद्देषीय कम्प्यूटर निम्नलिखित में भी उपयोगी हैं :

  • अन्तरिक्ष – विज्ञान एवं खगोलषास्त्र
  • मौसम विज्ञान
  • युद्ध में प्रक्षेपास्त्रों का नियन्त्रण
  • उपग्रह– संचालन
  • भौतिक व रसायन विज्ञान में शोध
  • चिकित्सा
  • यातायात–नियन्त्रण
  • समुद्र-विज्ञान
  • कृषि विज्ञान
  • इंजीनियरिंग
  • फिल्म- उद्योग में फिल्म – संपादन

आकार एवं शक्ति के आधार पर कम्पूटरों के प्रकार (Types of Computers Based on Size)

आकार के आधार पर कम्प्यूटरों की पाँच श्रेणियाँ होती हैं।

  • माइक्रो कम्प्यूटर(Micro Computer)
  • वर्कस्टेषन (Workstation)
  • मेनफ्रेम कम्प्यूटर (Mainframe Computer)
  • सुपर कम्प्यूटर (Super Computer)

 

माइक्रो कम्प्यूटर (Micro Computer)

तकनीक के क्षेत्र में सन् 1970 में एक क्रांतिकारी अविष्कार हुआ । यह अविष्कार था माइक्रोप्रोसेसर (Micro Processor) का जिसके उपयोग से सस्ती कम्प्यूटर प्रणाली बनाना सम्भव हुआ । ये कम्प्यूटर एक डेस्क (Desk ) पर अथवा एक ब्रीफकेस में भी रखे जा सकते हैं। ये छोटे कम्प्यूटरमाइक्ररे कम्प्यूटरकहलाते हैं। मइक्रो कम्प्यूटरकीमत में सस्ते और आकार में छोटे होते हैं इसलिए इसे व्यक्तिगत उपयोग के लिए घर या बाहर किसी भी कार्यक्षेत्र में लगाये जा सकते हैं। इन्हें पर्सनल कम्प्यूटर ( Personal Computer) या पी.सी. (PC) भी कहा जाता हैं। माइक्रो कम्प्यूटर में एक ही सी. पी. यू. (CPU) लगा होता हैं। वर्तमान समय में माइक्रो कम्प्यूटर का विकास तेजी से हो रहा हैं। परिणामस्वरूप यह एक पुस्तक के आकार, फोन के आकार और यहाँ तक कि घड़ी के आकार में भी आ रहा हैं। माइक्रो कम्प्यूटर 20-25 हजार रूपये से 1 लाख रूपये तक की कीमत में उपलब्ध हैं।

वर्कस्टेषन (Workstation)

वर्कस्टेषन, आकार में माइक्रो कम्प्यूटर के समान होने के बावजूद अधिक शक्तिषाली होते हैं तथा इन्हें विषेष रूप से जटिल कार्यों के लिए प्रयोग में लिया जाता हैं। इस प्रकार के कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर लक्षणों को अपने अन्दर रखते हैं तथा माइक्रो कम्प्यूटर के समान ही एक समय में एक ही प्रयोक्ता (User) के द्वारा होता हैं । ये माइक्रो कम्प्यूटर की अपेक्षा महँगे होते हैं। किन्तु, माइक्रो कम्प्यूटर में अपार बदलाव तथा वृहद स्तर के विकास के बाद अब वर्कस्टेषन का प्रचलन कम हुआ हैं तथा माइक्रो ा तुलना करके शरीर  गति से होता कम्प्यूटर के उन्नत उत्पाद ने इसका स्थान लेना प्रारम्भ कर दिया हैं। अब माइक्रो कम्प्यूटर भी उन्नत ग्राफिक्स तथा संचार क्षमताओं के साथ बाजार में उपलब्ध हो रहे हैं

मिनी कम्प्यूटर (Mini Computer)

ये कम्प्यूटर मध्यम आकार के कम्प्यूटर होते हैं । ये माइक्रो कम्प्यूटर (Micro Computer ) की अपेक्षा अधिक कार्यक्षमता वाले होते हैं ।

मिनी कम्पयूटरों की कीमत माइक्रो कम्पयूटरों से अधिक होती हैं और ये व्यक्तिगत रूप से नहीं खरीदे जा सकते हैं। इन्हें छोटी या मध्यम स्तर की कम्पनियाँ काम में लाती हैं। इस कम्प्यूटर पर एक से अधिक व्यक्ति कार्य कर सकते हैं । मिनी कम्प्यूटर में एक से अधिक सी. पी. यू. (CPU) होते हैं। इनकी मेमोरी ( Memory) और गति ( Speed) माइक्रो कम्प्यूटर से अधिक और मेनफेम से कम होती हैं। ये मेनफेम कम्प्यूटर से सस्ते होते हैं। मध्यम स्तर की कम्पनियाँ में मिनी कम्प्यूटर ही उपयोगी माने जाते हैं । यद्यपि अनेक व्यक्तियों के लिए अलग-अलग माइक्रो कम्प्यूटर लगाना भी सम्भव है, परन्तु यह महँगा पड़ता हैं। प्रति व्यक्ति माइक्रो कम्प्यूटर की अपेक्षा मिनी कम्प्यूटर कम्पनी में केन्द्रीय के रूप में कार्य करता हैं और इससे कम्प्यूटर के संसाधनों का साझा हो जाता हैं। इसके अलावा अनेक माइक्रो कम्प्यूटर होने पर उनके रख-रखाव व मरम्मत की समस्या बढ़ जाती हैं। | एक मध्यम स्तर की कम्पनी मिनी कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए कर सकती है :

  • कर्मचारी के वेतन की गणना और वेतनपत्र (Payroll) तैयार करना
  • वित्तीय खातों का रख-रखाव
  • लागत–विष्लेषण
  • उत्पादन – योजना मिनी

कम्प्यूटर के अन्य उपयोग, यातायात में यात्रियों के लिए आरक्षण प्रणाली का संचालन और बैंकों में बैंकिंग (Banking) के कार्य हैं। सबसे पहला मिनी कम्प्यूटर PDP-8 एक रेफ्रिजरेटर (Refrigerator) के आकार का, 1800 डॉलर कीमत था जिसे डी. ई. सी. (DEC-Digital Equipment Corporation) ने सन् 1965 में तैयार किया था।

मेनफेम कम्प्यूटर (Mainframe Computer)

ये कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते हैं साथ ही इनकी संग्रहण क्षमता भी अधिक होती हैं। इनमें अधिक मात्रा में डाटा (Data) पर तीव्रता (Process) या क्रिया करने की क्षमता होती है, इसलिए इनका उपयोग बड़ी कम्पनियाँ, बैंक तथा सरकारी विभाग एक केन्द्रीय कम्प्यूटर के रूप में करते हैं। ये चौबीसों घंटे कार्य कर सकते हैं और इन सैकड़ों उपयोगकर्ता (Users) एक साथ कार्य कर सकते हैं। मेनफेम कम्प्यूटर को एक नेटवर्क (Network) या माइक्रो कम्प्यूटरों से परस्पर जोड़ा जा सकता हैं। अधिकतर कम्पनियाँ या संस्थाएँ मेनफ्रेम कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए करती हैं : (i) उपभेक्ताओं द्वारा खरीद का ब्यौरा रखना, (ii) भुगतानों क ब्यौरा रखना, (iii) बिलों को भेजना, (iv) नोटिस (Notice) भेजना, (v) कर्मचारियों को भुगतान करना, (vi) कर (Tax) का विस्तृत ब्यौरा रखना आकद । मेनफ्रेम कम्प्यूटरों के उदाहरण हैं— IBM4381, ICL39 श्रृंखला और CDC Cyber श्रृंखला ।

सुपर कम्प्यूटर (Super Computer)

सुपर कम्पयूटर, कम्प्यूटर की सभी श्रेणीयों में सबसे बड़े आकार व सबसे अधिक संग्रहण क्षमता वाले तथा सबसे अधिक कार्यकारी गति (Speed) वाले होते हैं ।

इनमें अनेक सी.पी.यू. (CPU) सामान्तर क्रम में कार्य करते हैं। इस क्रिया को समान्तर प्रक्रिया (Parallel Processing) कहते हैं ।

  • सुपर कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में होता हैं : बड़ी वैज्ञानिक और शोध प्रयोगषालाओं में शोध व खोज करना ।
  • अंतरिक्ष यात्रा के लिये अन्तरिक्ष-योत्रियों को अन्तरिक्ष में भेजना। मौसम की भविष्यवाणी और मौसम आँकड़ा संग्रहण |
  • उच्च गुणवत्ता की एनीमेषन (Animation ) वाले चलचित्र ( Movie) का निर्माण |

सुपर कम्प्यूटर सबसे महँगे कम्प्यूटर होते हैं। इनकी कीमत अरबों रूपयों में होती हैं। भारत के पास भी सुपर कम्प्यूटर हैं जिसका नाम है— परम (PARAM ) । इसे भारतीय कम्प्यूटर वैज्ञानिकों ने ही भारतवर्ष में तैयार किया हैं। सुपर कम्प्यूटर के अन्य उदाहरण हैं- CRAY-2, CRAY XMP-24 और NEC-500

Generation Of Computer

(1) First Generation Computer (1945-55):- इस Generation के Computer में Main Equipment के रूप में Vaccum Tubes का प्रयोग किया जाता था । Vaccum Tubes Electronic Signals को Amplify करती थी तथा उसे नियंत्रित कर On/Off Switch की तरह उपयोग में लेती थी । परन्तु Vaccum Tube के साथ एक बड़ी समस्या यह थी कि वह अधिक Heat Generate करती थी । इसलिए उन्हें ठंडा रखने के लिए A.C. Area की आवष्यकता थी । एक अन्य Problem यह थी कि Tubes बार–2 खराब हो जाती थी जिसके कारण समय – 2 पर कार्य में रूकावट होती थी । इस Period मे Programming का Development नहीं हो पाया था। अतः Instruction को Computer में Load करना काफी मुष्किल था । इस Generation के कम्प्यूटर में Machine Language का Use किया जाता था । जिसे Binary Language (0 and 1) कहा जाता था। इस Language में सभी Instruction तथा इन दो Digits के Combination से ही बनती थी। इसलिए इन Computer को Operate करने के लिए Machine Language का Knowledge होना बहुत जरूरी था।

विशेषताऐं :-

(1) इनकी साइज काफी बड़ी होती थी।

(2) इनकी Processing Speed काफी धीमी थी ।

(3) इनकी Main Equipment Vacuum Tube था ।

(4) इनके लिए A.C. की आवष्यकता थी।

(5) इनको Operate करने के लिए binary Language का अच्छी जानकारी आवष्यक थी । इसलिए हर कोई इन्हें Operate नहीं कर पाता था।

(2) Second Generation Computers (1955-65) :- इस Generation के कम्प्यूटर में Vacuum Tube के स्थान पर Transistor का प्रयोग किया जाने लगा । Transistor, Vacuum Tube से साईज में छोटे होते थे। इनमें Power Consumption कम होता था तथा ये अधिक Reliable (विष्वसनीय) थे। इनके कारण कम्प्यूटर की Processing Speed पिछले Generation की अपेक्षा फास्ट हो गई थी। ये कम्प्यूटर Cost Wise भी सस्ते थे । अतः Scientific Calculation के साथ – 2 विभिन्न Company व Organization द्वारा Business Calculation में भी इनका प्रयोग किया जाने लगा।

विशेषताऐं :-

(1) इनकी साईज छोटी थी ।

(2) इसकी Processing Speed Fast थी ।

(3) Main Equipment Transistor थे ।

(4) ये लागत में सस्ते थे।

(5) इनमें Power Consumption कम होता था परन्तु इनके लिए भी A.C. की आवष्यकता थी ।

(6) इनमें Assembly Language का प्रयोग किया जाता था ।

 (3) Third Generation Computers (1965-75):- इस Generation के Computers में Main Equipment I.C. (Intergrated Circuit) का उपयोग किया जाने लगा। I.C. बहुत छोटी Silicon की Chip होती हैं। जिस पर हजारो Circuit Print होते हैं। Chip के प्रयोग से कम्प्यूटर का आकार बहुत छोटा तथा उसका मूल्य या लागत काफी कम हो गया। इस समय में D.E.C. (Digital Equipment Corporation) Mini Computer Market Launch | Third Generation में दो प्रकार के Computers का विकास हुआ | Mini Computer तथा Main Frame Computers.

विशेषताऐं :

(1) Storage Capacity वृद्धि ।

(2) Networking की सुविधा ।

(3) Time Sharing Technique का प्रयोग |

(4) High Level Language का Use (Basic, Fortran)

(5) Size में छोटे।

(6) कम किमत

(7) A.C. की आवष्यकता नहीं ।

(8) अधिक Capable Computer Programs जैसे Operating System का Use.

(4) Fourth Generation Computer :- Generation Computers LSI (Large Scale Intergrated Circuit) से बनी Microchip का प्रयोग किया जाने लगा। जिसे Micro Processor कहते हैं। Micro Processor से युक्त Computer भी Micro Computer कहलाने लगे। Micro Computer से Computer का व्यक्तिगत उपयोग बढ़ गया। इन Micro Computers को Personal Computer (PC) के नाम से भी जाना जाता हैं। Micro Processor की तकनीक के कारण ही और अधिक छोटे व तेज कम्प्यूटर बना पाना संभव हो सका । सुपर कम्प्यूटर का विकास भी इसी Generation के अन्तर्गत हुआ।

विशेषताऐं :-

(1) अधिक विष्वसनीय

(2) छोटा आकार

(3) L.S.I. तकनीक का प्रयोग

(4) Processing Speed सबसे अधिक

(5) Lower Cost

(6) More Storage Capacity

(7) Fourth Generation Language जैसे:- Fox Pro, Oracal, SQL, आदि का विकास हुआ ।

(5) Fifth Generation Computers :- इस Generation के कम्प्यूटर में Main Equipment V.L.S.I. (Very Large Scale Integrated Chip) हैं। इस Generation के कम्प्यूटर की सोचने की क्षमता, Decision लेने की क्षमता आदि का विकास किया जा रहा हैं। इस Generation के कम्प्यूटर अभी तक विकास की प्रक्रिया में हैं। ये मषीन समानान्तर (Parallel) होगी जो एक समय में कई कार्य कर सकेगी। इसके लिए इनमें Artificial Intelligence का Concept Use में लिया जा रहा हैं। इनमें प्रयुक्त भाषा भी विषेष होगी। जैसे Prolog, Lisp. इस प्रकार के कम्प्यूटर से कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा में बातचीत कर सकेगा। वर्तमान समय में कई Universities में इस तरह के कम्प्यूटर के विकास के लिए Research चल रही हैं।

विशेषताएं :-

(1) इनकी साईज थोड़ी बड़ी होगी।

(2) इनकी कीमत अधिक होगी।

(3) इनकी Data Storage Capacity तथा Processing Speed Fast होगी।

(4) इनकी मुख्यतः विषेषता यह हैं कि इनमें Artificial intelligence का प्रयोग करते हुए Decision लेने की Capacity होगी।

Fourth Gen.

Computers

Functioning of a Computer

Storage Device (Memory )

Data Processing & Information

(1) Data – किसी वस्तु से सम्बन्धित तथ्यों के संग्रह को डाटा कहा जाता हैं जैसे किसी विद्यार्थी के बारे में Raw Facts होगें Name, Roll No., Add etc. Data अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं होता हैं । Data को महत्वपूर्ण बनाने के लिए डाटा की Processing की जाती हैं डाटा वह हैं जिसकी कम्प्यूटर प्रोग्राम को आवष्यकता होती हैं। Data कोई Numeric Value, Character, Word था Special Symbol हो सकता हैं।

(2) Processing – Data को महत्वपूर्ण बनाने के लिए की गई क्रियाओं को डाटा processing कहा जाता हैं चूंकि कम्प्यूटर एक Electronic Machine हैं अतः इन क्रियाओं को Electronic Data Processing के अन्तर्गत कुछ कियाएं जैसे Calculation, Compression, Decision Making आदि Type के कार्य किए जाते हैं ।

(3) Information – किसी भी Process में डाटा को information कहा जाता हैं। जैसे यदि हम 35 के साथ Age word भी use में ले तो इससे पता चलता है कि यह किसी Person की Age हैं Information का Use Different Type के Decision लेने के लिए किया जाता हैं ।

  1. यह कम्प्यूटर के C.P.U. के अंदर स्थित होती हैं ।
  2. इसकी भण्डारण क्षमता सीमित होती हैं |
  3. इसकी गति कम होती हैं ।
  4. यह Memory Data Processing के दौरान
  5. यह स्थायी होती हैं ।
  6. यह Primary की अपेक्षा सस्ती हैं।

 

  1. यह C.P.U. के बाहर स्थित होता हैं ।
  2. इसकी भण्डारण क्षमता असीमित होती हैं ।
  3. इसमें सूचना पूनः प्राप्ति की गति अधिक होती हैं। उपयोग में ली जाती हैं ।
  4. यह Data Processing में भाग नहीं लेता हैं ।
  5. यह अस्थायी होती हैं ।
  6. यह मंहगी हैं ।

 

 (1) Primary Memory – Computer में यह Memory I.C. के रूप में उपस्थित होती हैं । Primary Memory Data को temporary Store करने का काम करती हैं ।

(A) RAM – (Random Access Memory)

(B) ROM – (Read only Memory)

 

(A) RAM – विषेषताएं

(1) इसका पूरा नाम Random Access Memory हैं |

(2) इसमें सूचनाओं को लिखा व पढ़ा जा सकता हैं।

(3) यह अस्थायी Memory हैं |

(4) यह Volatile होती हैं । अर्थात इसमें सूचनाएं तब तक संचित रहती हैं जब तक Computer ON हैं। Power Supply off होते ही पूरी RAM वापस खाली हो जाती हैं।

(5) यह दो प्रकार की होती हैं ।

(1) Dynamic RAM

(2) Static RAM

 (1) Dynamic or D RAM – गतिषील RAM में कुछ विषेष प्रकार के परिपथ होते हैं जो कि एक निष्चित समय अंतराल के बाद स्वतः ही संचित सूचनाओं को हटा देते हैं। इसका मतलब यह हैं कि यदि हमने डाटा हटाने का निर्देष नहीं भी दिया हैं तथा न ही कम्प्यूटर बन्द किया हैं तो भी इसमें संचित डाटा व सूचनाऐं स्वतः ही हट जाती हैं। इसके अलावा यह RAM होने के कारण Temporary (अस्थायी) तथा परीवर्तनषील मेमोरी हैं । गतिषील RAM या D RAM को कई भागों में बांटा जा सकता हैं जो कि उनके विकसित होने के समय पर आधारित हैं

(1) EDO-RAM:- Extended Data Input Output RAM

(2) S-D RAM:- Synchronous Dynamic RAM

(3) R-D RAM:- Rombus Dynamic RAM

(2) Static or SRAM – S RAM का कार्य बिल्कुल सामान्य RAM की तरह ही हैं यह एक अस्थायी मेमोरी हैं जिसमें स्टोर डाटा को हम जब चाहें हटा सकते हैं। यह एक परिवर्तनषील मेमोरी हैं इसमें संचित डाटा तब तक रहता हैं जब तक कम्प्यूटर चालू हैं जैसे ही हम कम्प्यूटर बन्द करते हैं या बिजली चली जाती हैं तो स्टोर डाटा स्वतः ही हट जाता हैं तथा पुनः कम्प्यूटर चालू करने पर RAM हमें एकदम खाली प्राप्त होती हैं। इसका मतलब यह हैं कि सिर्फ दो कारणों से RAM में स्थिर डाटा हटता हैं

(B) ROM विषेषताएं :-

(1) इसका पूरा नाम Read Only Memory हैं |

(2) इसमें सूचनाओं को सिर्फ पढ़ा जा सकता हैं।

(3) यह स्थायी होती हैं ।

(4) इसमें कम्प्यूटरके निर्माण के समय ही प्रोग्राम संग्रहित किये जाते हैं । यह प्रोग्राम BIOS (Basic Input Output System) होता हैं।

(5) यह एक Firmware हैं ।

(6) यह Non-Volatile होती हैं अर्थात इसमें सूचनाएं तब भी रहती हैं जब तक कम्प्यूटरहैं।

(7) यह तीन प्रकार की होती हैं ।

(a) PROM            (b) EROM            (c) EEPROM

(a) PROM – (Programmable Read Only Memory):- ये कुछ ऐसी रोम चिप होती हैं जिनमें कोई सूचना पूर्व संचित नहीं होती हैं तथा प्रयोक्ता जो भी इसमें संचित करना चाहता हैं, कर सकता हैं। ये प्रयोक्ता को डाटा संचित करने की सुविधा सिर्फ एक बार ही देता हैं अर्थात् प्रयोक्ता से जो सूचना एक बार संचित कर दी वो स्थाई रूप में संचित हो जाती हैं तथा फिर उनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं हैं ।

(b) EPROM – (Erasable Programmable Read Only Memory ) :- यह रोम न सिर्फ हमें सूचना संचित करने की सुविधा प्रदान करती हैं वरन् हम इस पर जब चाहे पुरानी सूचना हटाकर नई सूचना संचित कर सकते हैं। पुरानी सूचना हटाने तथा नई सूचना संचित करने के लिए कुछ विषेष प्रकार के उपकरण काम में लिए जाते हैं। इस रोम चिप में उपर की तरफ एक आरपार दिखने वाला कांच लगा होता हैं जहां से पराबैंगनी ( Ultraviolet) किरणों द्वारा डाटा को हटाया जाता हैं।

(c) EEPROM – ( Electrically Erasable Programmable Read Only Memory ) :- यह रोम भी (EPROM) की तरह पुनः काम आ सकने वाली होती हैं। इसमें संचित सूचनाओं को हटाने के लिए सामान्य विद्युत किरणों का ही प्रयोग किया जाता हैं।

Personal Computer (P.C.)

P.C. सामान्य उद्देष्य का Micro Computer हैं । यह जिस पर एक समय में एक व्यक्ति ही कार्य कर सकता हैं । यह User से निर्देष प्राप्त कर उन निर्देषों के अनुसार कार्य कर परिणाम देता हैं । सर्वप्रथम अमेरिका की IBM (International Business Machine) Company ने P.C. (I.B.M.P.C.) उसके इसी Company ने ही I.B.M. P.C./XT तथा IBM PC/AT का निर्माण किया ।

इस कम्पनी के कम्प्यूटरकी quality अच्छी मानी

विशेषताएं-

PC\XT हसनो 8088 नामक Micro Processor लगा हुआ था। इस प्रकार के कम्प्यूटरकी Storage Capacity 640KB थी। तथा Micro Processor bit का था। इसमें Floppy Drive की संख्या एक और दो थी । लेकिन इस प्रकार के कम्प्यूटर में हार्ड डिस्क होती थी। तथा गणना गति 10 से 12 MHZ तक होती थी । इनकी Memory 1 MB तक होती थी। तथा इसमें Data bus का आकार 8 bit तथा Address Bus का 20 Bit होता हैं ।

PC/AT इस प्रकार के कम्प्यूटर में 80286 नाम Micro Processor लगा हुआ था। इसमें कुछ अतिरिक्त गुण थे। जिसमें से एक Program Processor की गति को तेज करता धा । इस प्रकार के कम्प्यूटर में हार्ड डिस्क होती हैं। तथा गणना गति 16 से 20 MHZ होती थी । इसकी अधिकतम Memory 16 Bit तथा Address Bus का आकार 24 Bit का होता हैं ।

P.C. मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं ।

(1) Desk Top/Micro Computer

(2) Work Station

(3) Lap top

(4) Note Book

(5) PalmTop

 

 

 (1) Desk Top –

अधिकतर विद्यालयों घरों और व्यवसायों में प्रयोग किये जाने वाले P. C. Desk Top P.C. होते हैं | Market में P.C. के कई प्रकार के Moudle उपलब्ध हैं। जैसे IBMPC, IBM-PC/2, Apple II, IIe, IIIc, Pentium II, PIII, PIV इत्यादि । Desk Top P.C. को हम दो श्रेणियों में बॉट सकते हैं।

(1) Single User System

( 2 ) Multi User System

(1) Single User System – वे P.C. होते हैं जिन्हें अनेक व्यक्ति एक बार में काम में ले सकते हैं। ऐसे P.C. Network पर लगाये जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अलग-2 कम्प्यूटर पर कार्य करता हैं लेकिन सभी कम्प्यूटर आपस में जुड़े रहते हैं।

विशेषताएं

 (2) Work Station –

(1) यह Mini Computer तथा Micro Computer के बीच की Stage हैं ।

(2) इसका प्रयोग Individually (व्यक्ति) या Group में किया जा सकता हैं।

(3) इसकी Speed Desk Top Computer से अधिक होती हैं ।

(4) इनका प्रयोग Engineers, Architecture द्वारा किया जाता हैं ।

(5) इनमें अधिकतर Linux, Operating System काम में लेते हैं।

(3) Lap Top P.C. –

(1) ऐसे P.C. का वजन लगभग 4 से 10 Pond होता हैं। इन्हें अपनी गोद में रखकर भी कार्य किया जा सकता हैं।

(2) इनकी Screen छोटी होती हैं ।

(3) Key Board पर बटन होते हैं इस पर Track Ball होती है या sensor लगा होता है।

(4) यह कम जगह घेरता हैं। इन्हें प्रायः बैटरी से चलाया जाता हैं।

(5) इनका उपयोग कभी भी कहीं भी किया जा सकता हैं।

(6) इस कम्प्यूटर का प्रयोग Graphic, Fax, Information व Communication में ज्यादा होता हैं ।

(4) Note Book –

(1) यह एक Mobile Computing Technology हैं ।

(2) यह एक बैटरी Operating System हैं।

(3) यह भी एक लेप टॉप की तरह कभी भी कहीं भी उपयोग में लिए जा सकते हैं।

(4) इनकी स्पीड लेप टॉप से कम होती है ।

(5) यह Generally Information व Communication के काम आते हैं ।

(6) यह वजन व साईज में लेप टॉप से छोटे होते हैं।

(5) Palm Top P.C.-

(1) हथेली के आकार के P.C. को Palm Top कहते हैं।

(2) ये कम्प्यूटर केवल Data Store करता हैं ।

(3) इसके द्वारा Graphical Work नहीं किया जा सकता हैं।

(4) इसमें भी हम विभिन्न तरह की सूचनाएं जैसे Maps Share Market की स्थिति, Telephone Directory Address आदि Store करके रख सकते हैं।

(5) इसे भी Battery से चलाया जा सकता हैं। इसमें Calculator के समान ही छोटा Key Board व एक छोटी Screen होती हैं ।

Translator तीन प्रकार के होते हैं

  • Assembler
  • Compiler
  • Interpreter

High Level Language में लिखे प्रोग्राम को भी मषीन कोड में Convert करना पड़ता हैं। इसके लिए हम दो तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।

(1) पूरे प्रोग्राम को Convert करना तथा उसके बाद मषीन भाषा वाले प्रोग्राम को रन करना (Compiler)

(2) प्रत्येक निर्देष को एक-एक करके Execute करना यह Compiler कहलाते हैं । तथा दूसरी विधी से Conversion करने वाले Interpreter कहलाते हैं।

 

 

 (a) Compiler – High Level Language को मषीन भाषा में Convert करने के लिए Compiler का उपयोग किया जाता हैं। High Level Language में लिखे प्रोग्राम को Source Program तथा Conversion के बाद प्राप्त होने वाले Machine Program को Object Program कहते हैं । Source Program से Object Program में Conversion प्रक्रिया को Compilation कहते हैं । Compilation की प्रक्रिया में Compiler, Source Program को एक साथ Check करता हैं तथा पूरे प्रोग्राम को मषीन भाषा में रूपान्तरित कर देता हैं। विभिन्न भाषाओं के लिए भिन्न- 2 Compiler होते हैं। जैसे -: PASCAL Compiler, C Compiler, FORTRAN Compiler.

Compiler Source Program की प्रत्येक लाईन को चैक करता हैं तथा मषीन भाषा में Convert करता हैं। प्रत्येक निर्देष को चैक करते समय वह प्रोग्राम में से गलतियां भी निकालता हैं तथा उन्हें एक साथ Display करता हैं | Compilation की प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं होती जब तक की सभी गलतीयां समाप्त नहीं होती। एक बार किसी Source Program को Object Program में Convert करने के बाद बार – 2 Compiler की आवष्यकता नहीं होती हैं । Next Time हम Object Code को ही सीधे रन कर सकते हैं।

(b) Interpreter – यह एक अन्य प्रकार का Transalator हैं जो High Level Language में लिखे प्रोग्राम को मषीन भाषा में Convert करता हैं तथा साथ ही Execute भी कर देता हैं । Translation व Execution दोनो एक के बाद एक चलते रहते हैं। अर्थात् Interpreter एक लाईन को चैक करता हैं, Control Unit उस मषीन कोड को Execute करती हैं। यह क्रम प्रोग्राम के समाप्त होने तक चलता रहता हैं। जबकि Compiler पूरा प्रोग्राम एक साथ Convert हो जाता हैं और उससे उत्पन्न मषीन कोड को संचित करके पुनः सीधे ही काम में लिया जा सकता हैं। अतः प्रोग्राम को हर बारExecute करने के लिए बार – 2 Compilation जरूरी नहीं होता हैं ।

Interpreter में हर बार प्रोग्राम रन करने के लिए Source Code आवष्यक होता है जो हर बार Interpret होता है।

Interpreter के प्रयोग में भविष्य के लिए कोई मषीन कोड स्टोर नहीं होता क्योकि Conversion तथा Execution साथ-2 चलता हैं। अतः अगली बार जब भी निर्देष प्रयोग में आता हैं । उसे पुनः रूपान्तरित करना पड़ता हैं Interpreter Comipler की तुलना में सरल तथा शीघ्रता से प्रत्युतर देने वाला Translator हैं परन्तु Interpreter में समय अधिक लगता हैं।

(c) Assembler – यह Assembly Language में लिखे प्रोग्राम को मषीन भाषा में Convert करता हैं। प्रत्येक कम्प्यूटर की अपनी मषीन भाषा तथा Assembly Language होती हैं अतः विभिन्न प्रकार की मषीनो के लिए विभिन्न Converter को प्रयोग में लिया जाता हैं ।

(2) Application Software – किसी विषेष तथा निष्चित कार्यों को करने के लिए बनाये गये Software Application Software कहलाते हैं। इनकी कार्यक्षमता सीमित होती हैं। कार्य के आधार पर किसी भी Programming भाषा में इसका निर्माण किया जा सकता हैं। इसके द्वारा User को अपने कार्य करने में आसानी होती हैं। इनका प्रयोग करने के लिए User का कम्प्यूटर क्षेत्र में दक्ष होना आवष्यक नहीं होता है । Application Software अनेक प्रोग्राम के समूह होते हैं इसलिए उन्हें Application Software Package भी कहते हैं। उदाहरण के लिए किसी ऑफीस के कर्मचारियों का वेतन तैयार करने के लिए कम्प्यूटरके प्रोग्राम, किसी फेक्टरी में सामान्य Accounting के प्रोग्राम तथा किसी विषेष क्षेत्रों जैसे Application Software कहलाते हैं ।

ये दो प्रकार के होते हैं।

(i) General Purpose Application Software

(ii) Special Purpose Applcation software

 (i) General Purpose Application Software – इस तरह के Software किसी भी Field में उपयोग लिये जा सकते हैं। जैसे Ms-Word, Ms-Excel.

(ii) Special Purpose Application Software – इस तरह के प्रोग्राम किसी विषेष संस्था के लिये बनाये जाते हैं तथा उसी प्रकार की ही किसी अन्य संस्था में उपयोग हो सकते हैं अन्य क्षेत्रों में इनका उपयोग नहीं किया जा सकता हैं। जैसे- किसी फेक्टरी, दुकान आदि के लिए बनाये गये Programs |

General Purpose Application Software

(1) Word Processing – Word Processing एक प्रोग्राम हैं जिसमें Type Writer की तरह Typing का कार्य किया जाता हैं। Word Processing का मुख्य उद्देष्य कम्प्यूटर की सहायता से Document तैयार करना Editing करना Formating, Store तथा प्रिन्ट करना होता है। Document का अर्थ Letter, Menu, Report या अन्य किसी भी लिखित सामग्री से हैं। Word Processing का मुख्य लाभ हैं कि इसमें एक बार मैटर लिखने के बाद उसमें Editing तथा Formating करना आसान होता हैं। जबकि Typewriter में छोटी सी गलती होने पर उसे मिटाया नहीं जा सकता। कुछ समय पहले तक Word Processing के रूप में “Word Star” सबसे अधिक उपयोग में लिया जाता था। WORD STAR एक DOS BASE Package था परन्तु आजकल MS Word, Word Processing के लिए सबसे अधिक उपयोग में लिया जा रहा हैं। Ms-Word में WORD STAR की अपेक्षा कई सुविधाएं उपलब्ध हैं तथा सबसे मुख्य लाभ यह हैं कि यह एक GUI Based Application Software हैं ।

सामान्यतः किसी Word Processor के निम्नलिखित मुख्य कार्य होते हैं।

(1) Document को Type करना ।

(2) गलतीयों को सुधारना (Editing)

(3) Document को Memory में स्टोर करना ।

(4) Text की Formatting करना ।

(5) Spelling तथा Grammar Check करना ।

(6) Document Print करना ।

MS-Word में इसके अलावा और भी खूबिया मौजूद हैं जैसे – Mail Merge करना, Document में Auto Correction करना, Web Page बनाना Document निर्माण के लिए Wizard प्रयोग करना।

(2) Spread Sheet Program – Electronic Spread Sheet एक Table हैं । जो Column तथा Rows में विभाजित होते हैं। Spread Sheet Program Computer की Screen को एक बहुत बड़ी Work Sheet में बदल देते हैं। Work Sheet एक बड़ा पेज होता हैं जिसमें अनेको Rows तथा Columns द्वारा बहुत सारे Cells होते हैं । तथा प्रत्येक Cell में सूचनाएं अंकित होती हैं। अतः Work Sheet बहुत अधिक डाटा के अध्ययन के लिए बहुत उपयोगी हैं। Spread Sheet Programme मुख्यतः Tabular Work तथा Statical Work करने के लिए अधिक उपयोग में लिया जाता हैं। इसके अन्दर गणनाऐं करने के लिए कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं ।

इसे “ऐसा हो तो क्या हो” के प्रकार के अध्ययन में उपयोग किया जा सकता हैं। जैसे कि किसी व्यापार के प्रोग्राम में Tax Rate बढ़ जाए तो क्या प्रभाव रहेगा । यह आसानी से जाना जा सकता हैं। प्रारम्भ में Lotus 1-2-3 Spread Sheet Program बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ था जो कि Dos Base Appllication Software था। आजकल Ms-Excel का अधिक प्रयोग किया जाता हैं।

(1) Re Calculation

(2) Function

(3) Copy & Move

(4) Editing

(3) Data Base Management – Data Base Management Program सम्पूर्ण डाटा सुव्यवस्थित तरीके से स्टोर करने में सहायता करता हैं। किसी डाटा बेस में बहुत सारे Records होते हैं ये Record किसी व्यक्ति, Item आदि से सम्बन्धित Record हो सकते है। जैसे :- व्यक्तियों से संबधित डाटा बेस में केवल व्यक्तिओं से संबंधित Record ही होगें । अर्थात् अलग-2 प्रकार के विषय से Related Information के लिए अलग – 2 डाटा बेस फाईल बनाई जाती हैं।

जहां भी Tabular Form में Information Store करके रखा जाए तो वह पूरी टेबल डाटा बेस कहलाता हैं। इसमें Column होते हैं। जिन्हें Field कहते हैं। सबसे उपर वाली Row Header Row कहलाती हैं। तथा जो डाटा फीड करते हैं उसे Values कहते हैं। पूरी Values को जब एक साथ रखा जाता है तो उसे Record कहते हैं ।

किसी भी डाटा को Create करने से लेकर उसको Manage करने तक सारा काम Data Base Management System करता हैं । Data Base बनाने का मुख्य उद्देष्य सूचनाओं को एकत्रित करके उन पर विभिन्न प्रकार की Query करना होता हैं। वर्तमान में MS- Access, FoxPro, ORACLE आदि विभिन्न प्रकार के डाटा बेस Management Program का अत्यधिक प्रयोग किया जाता हैं।

Data Base Management के अंतर्गत निम्न कार्य किए जाते है :

(1) Data को विधिवत् रखना

(2) Data Base में नया डाटा जोड़ना

(3) पूराना डाटा देखना

(4) विषेष प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध कराना।

(5) डाटा के आधार पर विभिन्न निषकर्ष निकालना ।

(4) Presentation Graphics – Presentation शब्द का अर्थ अपनी बात को दूसरे के समझने के ढंग से हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी प्रस्तुती बातचीत के द्वारा लिखकर, चित्र बनाकर अथवा सुनाकर व्यक्त करता हैं। इनका उचित मिश्रण प्रस्तुती को और अधिक आर्कषक बना सकता हैं । यह प्रस्तुती किसी व्यवसाय में भविष्य की कार्य योजना पर आधारित हो सकती हैं। Presentation Graphics के अर्न्तगत Slide Show अधिक उपयोग में लिया जाता हैं। तथा इसके लिए सबसे अधिक उपयोग में लिया जाने वाला Software Ms-Power Point हैं । इस Software के द्वारा किसी कम्पनी से Related सभी तरह की सूचनाओं को अलग-2 Slide बनाकर तथा उनमें विभिन्न प्रकार Effect देकर Presentation तैयार किया जा सकता हैं।

विचारों के आदान-प्रदान के लिए भाषा की आवष्यकता होती हैं। देषों में सामान्य बातचीत के लिए विभिन्न प्राकृतिक भाषाओं का प्रयोग किया जाता हैं। जैसे हिन्दी, जर्मन आदि । ठीक उसी प्रकार यदि हम कम्प्यूटर से काम लेना चाहते हैं तो हमें उस भाषा का उपयोग करना होगा जो कम्प्यूटर आसानी से समझ सके । अतः कम्प्यूटर को उसकी भाषा में ही निर्देष देने पड़ते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला व शब्दलिपी होती हैं । अतः किसी भी भाषा का उपयोग करने के लिए उसकी वर्णमाला एवं व्याकरण का ज्ञान होना आवष्यक हैं। व्याकरण में उस भाषा से संबंधित नियमों के उपयोगो को बताया जाता हैं । ठीक उसी प्रकार कम्प्यूटर की विभिन्न भाषाओं को उपयोग में लेने वाला व्यक्ति उस भाषा के शब्द और संकेतो का प्रयोग करते हुए कम्प्यूटर से बातचीत करता हैं । वही कम्प्यूटर की भाषा अच्छी होती हैं। जिसे कम्प्यूटर पर काम करने वाला व्यक्ति आसानी से समझ सके और उसके अनुरूप प्रोग्राम बना सके।

कम्प्यूटर भाषाओं की तीन श्रेणीयां हैं :-

(1) Machine Language Or Binary Language

(2) Assembly Language/Symblolic Language

(3) High Level Language

Computer मषीन भाषा ही समझता हैं । यह भाषा कम्प्यूटर द्वारा आसानी से समझी जाती हैं परन्तु यह मनुष्य के लिए अत्यन्त कठिन हैं। अन्य दोनो भाषाएं हमारे लिए उपयुक्त हैं। Assembly Language में Numeric (चिन्हों) का उपयोग होता हैं। चिन्हों को याद रखना सुविधाजनक होता हैं । परन्तु कम्प्यूटर Assembly भाषा में लिखे गये निर्देषों को मषीन भाषा में परिवर्तित करना पड़ता हैं। मषीन व Assembly Languge दोनो ही निम्न स्तरीय भाषा हैं ।

(1) Machine Language – वह भाषा जो कम्प्यूटर सीधे ही समझ सकता हैं और उसमें लिखे निर्देषों को बिना किसी परिवर्तन के रन किया जा सकता हैं । मषीन भाषा कहलाती हैं । आरम्भिक कम्प्यूटर में सभी प्रोग्राम मषीन कोड में लिखे गये जिनका विकास उन कम्प्यूटर के निर्माताओं द्वारा किया गया था। प्रत्येक कम्प्यूटर की अपनी अलग भाषा होती थी। जो उसकी आन्तरिक संरचना पर आधारित होती थी। प्रोग्राम लिखने के लिए इस विषेष Machinary Language की समुचीत जानकारी होनी चाहिए । और साथ ही साथ काम में आने वाले कम्प्यूटर की भी ज्ञान होना चाहिए। इस भाषा में लिखे गये प्रोग्राम केवल उन्ही कम्प्यूटर पर प्रयोग कर सकते थे। जिनके लिए वह प्रोग्राम बनाया गया हैं। तथा उस कम्प्यूटर का Hardware का ज्ञान होना जरूरी था।

 

विषेषताएं

(1) मषीन भाषा का उपयोग करने पर कम्प्यूटर द्वारा कार्य तीव्र गति से सम्पन्न किया जाता हैं। क्योंकि कम्प्यूटर को CPU इस भाषा को सीधे समझने में सक्षम होता हैं। और भाषा का अनुवाद करने के लिए अन्य प्रोग्राम की आवष्यकता नहीं होती हैं ।

(2) इस भाषा द्वारा कम्यूटर के सभी भागों को निर्देष देकर व उनसे कार्य कराया जा सकता हैं।

दोष –

(1) मषीन पर आश्रित विभिन्न कम्यूटर का आंतरिक परिपथ Different होता हैं । अतः प्रत्येक कम्प्यूटर को संचालित करने के लिए विभिन्न विद्युत संकेतो की आवष्यकता होती हैं। एक कम्प्यूटर के लिए मषीन कोड में लिखा गया प्रोग्राम दूसरे कम्प्यूटर पर नहीं चलता।

(2) प्रोग्राम लिखना कठिन मषीनी भाषा को सीखना एक कठिन व मेहनत का कार्य हैं। मषीन कोड में प्रोग्राम लिखने से पूर्व कम्प्यूटर के आन्तरिक परिपथ व कार्य-प्रणाली का ज्ञान होना आवष्यक हैं। सामान्य लोग मषीन भाषा में लिखे प्रोग्राम को पढ़ व लिख ही नहीं सकते।

(3) गलती का पता लगाना कठिन == मषीन भाषा में लिखे गए प्रोग्राम में 0 तथा 1 की कई लम्बी पंक्तिया होती हैं। इस कारण गलती का पता लगाना बहुत कठीन होता हैं। यदि गलती से प्रोग्राम किसी स्थान में 0 के स्थान पर 1 लिख देता हैं तो इस गलती का पता लगाना एक कठीन कार्य हैं ।

(4) मषीन कोड में सुधार करना कठीन

(2) Assembly Language Or Symbolic Language. मषीन भाषा के प्रयोग में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए उनमें सुधार करके जो Language बनाई गई उसे Assembly Language कहते हैं। इस भाषा में कम्प्यूटर के गणीतीय तथा तार्किक दोनो प्रकार के कार्यो के लिए प्रतीको का उपयोग किया जाता हैं। आसानी से याद किये जा सकने वाले प्रतीको का उपयोग होने के कारण प्रोग्रामींग का कार्य अत्यन्त सरल हो गया । परन्तु कम्प्यूटर केवल Machinery Language ही समझ सकता हैं। अतः Assembly Language में दिये गये प्रोग्राम का Machine Language में अनुवाद करना आवष्यक हैं इस कार्य को करने के लिए कुछ विषेष प्रोग्राम को प्रयुक्त किया जाता हैं। जिन्हें Assembler कहते हैं ।

विषेषताएं

(1) समझने व उपयोग में आसान · चिन्हों का उपयोग होने के कारण इस भाषा के उपयोग के लिए समझना अत्यन्त सरल हैं ।

(2) समय व श्रम की बचत इस भाषा में प्रोग्राम लिखना Machine Laguage की अपेक्षा सरल होता हैं। इस कारण प्रोग्राम के समय व मेहनत में बहुत बचत होती हैं ।

(3) कार्य कुषलता में वृद्धि – Assembly Language में काम करने में समय की बचत होती थी तथा मषीन भाषा की अपेक्षा काम करना भी सरल होता हैं। जिससे ज्यादा समय तक शुद्धता से काम किया जा सकता हैं ।

दोष ·

(1) मषीन पर आश्रित

(2) मषीन का ज्ञान होना आवष्यक

(3) समय अधिक लगता हैं – Computer Machinery Language समझता हैं अतः Assembly Language को Machinery Language में परिवर्तित करने के लिए Assembler का उपयोग करना पड़ता हैं। जिससे कार्य पूरा होने में अधिक समय लगता हैं।

(3) High Level Language – वे भाषाएं जो सामान्य English Language के समान होती हैं और जिनमें लिखे गये निर्देष सीधे रन नहीं होते हैं। अर्थात् रन करने के लिए उन्हें मषीनी भाषा में Convert करना पड़ता हैं। High Level Language कहलाती हैं।

English Language का उपयोग होने के कारण यह अत्यन्त सरल होती हैं। तथा Machine dependent नहीं होती हैं। High Level Language जैसे :- Fortran, COBOL, BASIC, PASCAC Etc.

High Level Language में लिखे प्रोग्राम को रन करने के लिए कुछ विषेष प्रोग्राम को प्रयुक्त किया जाता हैं। जिन्हें Compiler तथा Interpeter कहते हैं ।

(1) मषीन पर निर्भरता नहीं

(2) सीखने व उपयोग में आसान

(3) गलती खोजना आसान (4) Programming सस्ती

(5) Good Documantation (6) रख रखाव आसान

दोष –

Processing में अधीक समय High Level Language को Machine Language में परिवर्तित करना।

4TH Generation Languages (4GL)

4 GL Languages High Level Languages ही होती हैं जिनमें 3rd Generation Language की अपेक्षा किसी कार्य को करने के लिए कम से कम Instruction की जरूरत रहती हैं। इसलिए 3rd GL की अपेक्षा 4 GL में Programer Fast गति से प्रोग्राम लिख सकता हैं अधिकतर 3rd GL Procedure Oriented Language होती हैं जबकि 4 GL Non Procedure होती हैं। प्रोग्राम को किसी कार्य को करने के लिए कोई Procedure देने की जरूरत नहीं होती हैं बल्कि सिर्फ यह Specify करना होता हैं कि क्या करना हैं । अतः 4GL में सिर्फ यह बताया जाता हैं कि क्या करना है यह बताने की आवष्यकता नहीं है कि उसे कैसे करना हैं।

जैसे अगर कोई प्रोग्राम किसी फाईल से कोई Data Screen पर Display करना चाहता है जैसे किसी particular Student का नाम। इस कार्य को करने के लिए Procedural Language में प्रोग्राम को कुछ Steps लिखने होगें

Step 1: Read Record from Master File

Step 2: If Matches with the desired record display the name

Step 3: If it does not match the desired record, Go to Step 1

जब कि किसी Non Prodecural Language में प्रोग्रामर को एक Single Instruction ही लिखना होगा। जैसे

Step 1 Get the name of desired student from master file

अधिकतर 4th GL File तथा Data base में से Information प्राप्त करने के लिए उपयोग में ली जाती हैं | SQL (Structured Quey Language) 4th GL का एक मुख्य उदाहरण हैं। अगर हम Rohan नाम के Student का Record Display करना चाहते हैं तो SQL में इसे निम्न प्रकार से लिखा जाएगा ।

Select Name from Master

Where Name = Rohan

 

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