हम चंद्रमा के एक ही पहलू को देखते हैं, कभी भी पृथ्वी से इसके दूसरे पहलू की झलक नहीं मिलती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी द्वारा ज्वारीय रूप से लॉक्ड है।
चंद्रमा हर 28 दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा करता है और 28 दिनों में ही अपनी धुरी पर पूरी तरह से परिभ्रमण करता है।
महत्वपूर्ण शब्दावली
क्षुद्र ग्रह | एक छोटी चट्टानी वस्तु जो सूर्य की परिक्रमा करती है। हमारे सौर मंडल में अधिकांश क्षुद्रग्रह मुख्य क्षुद्रग्रह पेटी, मंगल और बृहस्पति के बीच के क्षेत्र में पाए जाते हैं। लेकिन वे सौर मंडल के आसपास अन्य स्थानों में भी पाये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए कुछ क्षुद्रग्रह, सूर्य की परिक्रमा ऐसे पथ में करते हैं जो उन्हें पृथ्वी के निकट ले जाता है। |
धूमकेतु | धूमकेतु, सूर्य की परिक्रमा करता है, जैसे क्षुद्रग्रह । लेकिन धूमकेतु बर्फ और धूल से बने होते हैं चट्टान से नहीं। धूमकेतु आमतौर पर किव्पर बेल्ट में उत्पन्न होते हैं जो नेपच्यून की कक्षा से परे है। |
उल्कापिंड (Meteoroid) | कभी-कभी एक क्षुद्रग्रह दूसरे में मिल सकता है। इससे क्षुद्रग्रह के छोटे टुकड़े टूट सकते हैं। उन टुकड़ों को उल्कापिंड कहा जाता है। उल्कापिंड धूमकेतु से भी बन सकते हैं। |
उल्का (Meteors) | यदि कोई उल्कापिंड पृथ्वी के काफी करीब आता है और पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो यह वाष्पीकृत होकर उल्का में बदल जाता है: आकाश में प्रकाश की एक लकीरकी तरहा उनकी उपस्थिति के कारण, प्रकाश की इन लकीरों को कभी-कभी जलते हुते तारे ” कहा जाता है। लेकिन उल्का वास्तव में तारे नहीं हैं।
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उल्कापिंड (Meteorite) | कभी-कभी उल्कापिंड वायुमंडल में पूरी तरह से वाष्पीकृत नहीं होते हैं। वास्तव में, कभी-कभी वे पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करके पूरी तरह जलते नहीं और जब वे पृथ्वी पर गिरते हैं, तो उन्हें उल्कापिंड (Meteorite) कहा जाता है। |
पृथ्वी का विकास:
लगभग 4500 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ, इसकी सटीक जानकारी प्राप्त कर पाना संभव नहीं है। पृथ्वी की संरचना के बारे में ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप तरंगों आदि से साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
पृथ्वी की संकेंद्रित परतें हैं भूपर्पटी (crust, मेंटल ( mantle) और क्रोड (core)
जायंट इंपैक्ट के कारण पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा या फिर उर्जा उत्पन्न हुई और इससे विभेदन का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ । विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी अनेक परतों में अलग हो गई। पृथ्वी के धरातल से लेकर क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं।
भूपर्पटी से क्रोड तक, पदार्थ का घनत्व बढ़ता है।
पृथ्वी सौर मंडल का पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है।
नीला ग्रह बाहरी स्थान से पृथ्वी नीली दिखाई देती है क्योंकि इसकी दो-तिहाई सतह जल से आच्छादित है।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना:
पृथ्वी के आंतरिक भाग की संरचना, कई संकेंद्रित परतों से बनी है।
जब हम रेडियोधर्मी पदार्थों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी के केंद्र की ओर बढ़ते हैं तो तापमान और दाब बढ़ जाता है।
मोटे तौर पर तीन परतों की पहचान की जा सकती है:
- भूपर्पटी
- मेंटल
- क्रोड या कोर
नोट: विभिन्न सीमा नामों को याद रखने की ट्रिक: ऊपर से नीचे तक क्रमबद्ध रूप से मोहरोविक, रेपिटी, गुटेनबर्ग और लेहमैन असम्बद्धताओं के लिए मे राम गाइड लक्ष्मण ( May Ram Guide Lakshman)
पृथ्वी की रासायनिक संरचना:
लौह, पृथ्वी का सबसे प्रचुर तत्व है, इसके बाद क्रमश: ऑक्सीजन,सिलिकॉन, और मैग्नीशियम ।
लेकिन अगर हम केवल भूपर्पटी के बारे में बात करते हैं, तो ऑक्सीजन सबसे प्रचुर तत्व है और उसके बाद क्रमशः सिलिकॉन, एल्यूमीनियम और लोहा ।
पृथ्वी का भू-चुंबकीय क्षेत्र
यह एक चुंबकीय द्विध्रुवीय क्षेत्र है जो वर्तमान में पृथ्वी के घूर्णी अक्ष के संबंध में लगभग 11 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है, जैसे कि पृथ्वी के केंद्र में उस कोण पर एक बार चुंबक (Bar magnet) रखा गया हो।
भू-चुंबकीय क्षेत्र एक गतिशील क्षेत्र है और यह स्थान और समय के साथ बदलता है।
इस चुंबकीय क्षेत्र और इसकी विविधताओं के अध्ययन से हमें पृथ्वी की धातुओं के बारे में बेहतर समझ मिलती है।
भू-चुंबकीय क्षेत्र के कारणः
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, पृथ्वी के बाहरी कोर में पिघले हुए लौह मिश्र धातुओं के संचरण से उत्पन्न होता है। कोर के भीतर तापमान, दाब और संरचना का अंतर, पिघली हुई धातु में संवहन धाराओं का कारण बनता है।
तरल लोह का यह प्रवाह विद्युत धाराओं को उत्पन्न करता है, जो बदले में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं। इस प्रभाव को डायनमो प्रभाव के रूप में जाना जाता है।
भूचुंबकीय उत्क्रमण
भू-चुंबकीय उत्क्रमण एक ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र में ऐसा परिवर्तन है जिससे चुंबकीय उत्तर और चुंबकीय दक्षिण की स्थिति परस्पर बदल जाती है। यह कुछ सौ हजार वर्षों के चक्र में होता है।
भू-चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता, ध्रुवों के पास सबसे अधिक और भूमध्य रेखा के पास कमजोर होती है ।
भू-चुंबकीय ध्रुव
भूचुंबकीय ध्रुव, प्रतिव्यासांत बिंदु हैं जहाँ एक सबसे सटीक दिव्ध्रुव की धुरी, पृथ्वी की सतह को काटती है। इसके विपरीत, वास्तविक पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव प्रतिव्यासांत नहीं होते हैं, अर्थात, जिस रेखा पर वे स्थित होते हैं, वह पृथ्वी के केंद्र से नहीं गुजरती है।
यदि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र एक परिपूर्ण दिव्ध्रुव होता, तो भू-चुंबकीय ध्रुवों पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ लंबवत होंगी, और वे उत्तर और दक्षिण चुंबकीय ध्रुवों के साथ मेल खाएंगी। हालाँकि, सन्निकटता अपूर्ण है, और इसीलिए चुंबकीय और भू-चुंबकीय ध्रुव कुछ दूरी पर स्थित होते हैं।
भूचुंबकीय क्षेत्र का महत्व:
यह क्षेत्र एक ढाल के रूप में कार्य करता है, जो सूर्य से निकलने वाली सौर पवनों को रोकता है।
पवन में आवेशित कण होते हैं जो ग्रहीय जीवन को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
हालांकि, कुछ कण, ध्रुवों की ओर चुंबकीय क्षेत्र द्वारा निर्देशित होते हुए, हमारे ग्रह में प्रवेश कर लेते हैं, जिससे अद्भुत रोशनी उत्पन्न होती है, जिसे ध्रुवीय रोशनी (Polar light) के रूप में जाना जाता है।
दिशा सूचक यंत्र के उपयोग से पथ-प्रदर्शन (navigation) में मदद करता है।
मैग्नेटो धारणा: कुछ जानवर लंबी दूरी पर प्रवास करते समय इस चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग कर सकते हैं।
पेलियो-चुंबकत्व का अध्ययन हमें ग्रह की सतह पर भू-चुंबकत्व के पिछले विवरण और चट्टानों के काल के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
पेलियोमैग्नेटिक अध्ययनों से सागर नितल प्रसार तथा टेक्टोनिक्स विवर्तनीकि सिद्धांतों को विकसित करने में भी मदद मिली है।
पृथ्वी के चारों ओर मैग्नेटोस्फीयर के निर्माण का कारण भू-चुंबकीय क्षेत्र है।
चुंबकीय मंडल:
चुम्बकीय मंडल (Magnetosphere) पृथ्वी ( या किसी अन्य ग्रह या तारे) के चारों ओर अंतरिक्ष का एक क्षेत्र है जिसमें आवेशित कण, भू-चुंबकीय क्षेत्र (या उस शरीर के चुंबकीय क्षेत्र) से प्रभावित होते हैं।
ये सौर पवनों (सूर्य द्वारा उत्सर्जित आयनों और इलेक्ट्रॉनों) के कणों को पृथ्वी से सटे प्लाज्मा पर्यावरण में पहुंचा देता है।
यह सूर्य की तरफ 60,000 किमी तक फैला हुआ है और विपरीत दिशा में काफी हद तक है।
इसकी सीमा को मैग्नेटोपॉज़ के रूप में जाना जाता है, जिसके बाहर एक विक्षुब्ध चुंबकीय क्षेत्र है जिसे मैग्नेटो-शीथ(magneto- sheath) के रूप में जाना जाता है।
इसमें वेन एलन विकिरण पट्टी हैं जिसमें उच्च ऊर्जा वाले आवेशित कण होते हैं ।
निचली पट्टी में इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा से 1000 से 5000 किमी तक फैले होते हैं।
ऊपरी बेल्ट में मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो 15000 से 25000 किमी तक फैले हुये होते हैं।
चुंबकीय झंझा:
चुंबकीय क्षेत्र की तीव्र भिन्नता की अवधि को चुंबकीय झंझा कहा जाता है।
ये तब आते हैं जब सौर पवनों के मजबूत झोंके पृथ्वी के चुंबकीय मंडल से टकराते हैं।
इससे पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष में विद्युत धाराओं का निर्माण होता है। इन्हें रिंग धाराओं के रूप में जाना जाता है और वे ज्यादातर भूमध्य रेखा पर केंद्रित होते हैं।
ये तूफान और धाराएं हमारे कृत्रिम उपग्रहों और लंबी दूरी के रेडियो संचार (जो आयनमंडल के कारण संभव हो पाता है) को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
उपग्रहों और रेडियो संचार पर निर्भर, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर भी प्रभाव पड़ता है।
ऑरोरा
कभी-कभी इलेक्ट्रॉन और आयन, मैग्नेटोस्फीयर से ऊपरी वायुमंडल में आ जाते हैं और वायुमंडल में नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं को आवेशित करते हैं। ये आवेशित अणु, प्रकाश उत्पन्न करते हैं जिसे हम ऑरोरा के रूप में जानते हैं। ऑरोरा ज्यादातर ध्रुवों के आसपास देखे जाते हैं क्योंकि वहां भू-चुंबकीय क्षेत्र की उच्चतम तीव्रता होती है।
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के ऑरोरा को ऑरोरा बोरेलिस कहा जाता है। उनके दक्षिणी समकक्ष, जो दक्षिणी गोलार्ध में अंटार्कटिक को रोशन करते हैं, ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस के रूप में जाने जाते हैं।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना की सूचनाओं के स्त्रोत
प्रत्यक्ष स्रोत: खनन क्षेत्र: सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस धरातल चट्टान या चट्टानें जो हमें खनन क्षेत्रों से प्राप्त होती हैं। दक्षिण अफ्रीका में सोने की खदानें,3 – 4 किमी जितनी गहरी हैं। इस गहराई से आगे जाना संभव नहीं है क्योंकि इस गहराई पर बहुत गर्मी होती है । इसके माध्यम से हमें पता चलता है कि तापमान और दाब, धरातल की बढ़ती गहराई के साथ बढ़ते जाते हैं और आंतरिक सामग्री का घनत्व भी गहराई के साथ बढ़ता रहता है।
परियोजनायें: वैज्ञानिक दुनिया की दो बड़ी परियोजनाओं जैसे “डीप ओशन ड्रिलिंग प्रोजेक्ट ” और “इंटीग्रेटेड ओशन ड्रिलिंग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। आर्कटिक महासागर के कोला में सबसे गहरी ड्रिल, अब तक 12 किमी की गहराई तक पहुंच गई है। ऐसे और कई गहरी ड्रिलिंग परियोजनाओं से विभिन्न गहराई पर एकत्रित सामग्री के विश्लेषण के माध्यम से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई हैं।
ज्वालामुखी का विस्फोट: प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने का एक और स्रोत है। जैसे ही ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान पिघला हुआ पदार्थ (मैग्मा पृथ्वी की सतह पर आता है, यह प्रयोगशाला विश्लेषण के लिए उपलब्ध हो जाता है।
अप्रत्यक्ष स्रोत:
उल्का: उल्का में पाई गई सामग्री और संरचना पृथ्वी के समान होती है। वे ठोस ग्रह हैं जो हमारे ग्रह के समान, या उसी तरह की सामग्रियों से विकसित होते हैं। इसलिए, ये पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानकारी का एक स्रोत बन गये है।
गुरुत्वाकर्षण विसंगति: गुरुत्वाकर्षण मान, सामग्री के द्रव्यमान के अनुसार भिन्न होता है। पृथ्वी के भीतरी द्रव्यमान का असमान वितरण इस मान को प्रभावित करता है। विभिन्न स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण का अलग अलग मान कई अन्य कारकों से प्रभावित होता है। इस तरह के अंतर को गुरुत्वाकर्षण विसंगति कहा जाता है। गुरुत्वाकर्षण विसंगतियाँ हमें पृथ्वी की पर्पटी में द्रव्यमान के वितरण के बारे में जानकारी देती हैं।
चुंबकीय क्षेत्र: चुंबकीय सर्वेक्षण भूपर्पटी भाग में चुंबकीय पदार्थों के वितरण के बारे में भी जानकारी प्रदान करते हैं। भूकंपीय गतिविधि / भूकक भूकंप पृथ्वी की धरातल के तीव्र झटके है । झटकों का कारण पृथ्वी की सबसे बाहरी परत में होने वाली हलचलें हैं।
स्थलमंडल का विकास: