प्रागैतिहासिक काल
मानव विकास का सबसे प्रारंभिक चरण, जिसमें लिखित इतिहास का अभाव है।
पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित, जिसमें उपकरण, हड्डियाँ और अवशेष शामिल हैं।
तीन मुख्य युगों में विभाजित:
- पत्थर युग (पुरापाषाण, मध्यपाषाण, नवपाषाण)
- तांबा युग
- कांस्य युग
सिंधु सभ्यता (लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व)
भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम ज्ञात सभ्यता।
सिंधु नदी घाटी में स्थित, जो वर्तमान पाकिस्तान और भारत में फैली हुई है।
प्रमुख शहर: हड़प्पा और मोहनजो-दड़ो।
उन्नत शहरी नियोजन, सीवरेज सिस्टम और लेखन प्रणाली से प्रतिष्ठित।
वैदिक सभ्यता (लगभग 1500-500 ईसा पूर्व)
आर्यों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित।
वेदों, पवित्र हिंदू ग्रंथों पर आधारित।
कृषि-आधारित समाज, जो पशुचारण और व्यापार में भी लगा हुआ था।
वर्णाश्रम व्यवस्था (सामाजिक वर्गों का पदानुक्रम) की शुरुआत देखी।
जैन धर्म
महावीर द्वारा छठी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित।
अहिंसा (हिंसा न करना) के सिद्धांत पर आधारित।
जैन धर्म तीन मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है: सही ज्ञान, सही आचरण और सही विश्वास।
मानते हैं कि आत्मा अविनाशी है और कर्म के नियम से बंधी है।
बौद्ध धर्म
सिद्धार्थ गौतम (गौतम बुद्ध) द्वारा छठी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित।
दुख के कारणों और इसके निवारण पर केंद्रित।
चार आर्य सत्य और आठ गुना मार्ग की शिक्षाएँ।
मानते हैं कि निर्वाण, दुख और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति, अंतिम लक्ष्य है।
जरा देर से, निम्नलिखित है:
- प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period):
- इस काल में मानव सभ्यता के प्रारंभिक रूपों का अध्ययन किया जाता है, जो इतिहास से पहले है।
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इसमें आधुनिक मानव के पूर्वजों के जीवन की जानकारी अधिकतर पुरातात्विक अध्ययनों से ही प्राप्त होती है।
- सिंधु सभ्यता (Indus Valley Civilization):
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सिंधु सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी हिस्से में स्थित थी।
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यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जो सन् 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच थी।
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सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, रोपड़, कालीबगन, और बनवाली से इस सभ्यता की खोज की गई है।
- वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization):
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वैदिक सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित थी और वेदों की रचना के समय उसका विकास हुआ।
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वेदों में वैदिक समय की जीवनशैली, सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएं दर्शाई गई हैं।
- जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म (Jainism and Buddhism):
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जैन धर्म: जैन धर्म की स्थापना भगवान महावीर जी द्वारा हुई थी। इसमें अहिंसा, अनेकांतवाद, और अपरिग्रह के सिद्धांत हैं।
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बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध द्वारा हुई थी। इसमें चार महासत्यों (चार्यार्य) के अनुसार जीने का मार्ग दिखाया गया है।
ये सभी संस्कृतियाँ और धर्म भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से हैं और उनका अध्ययन हमें हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करता है।
मगध साम्राज्य का उदय, मौर्य-राजनय तथा अर्थव्यवस्था, शुग, सातवाहन काल, गुप्त साम्राज्य, गुप्त-वाकाटक काल में कला, स्थापत्य, साहित्य तथा विज्ञान का विकास, दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश। मध्यकालीन भारतीय इतिहास, फुल जानकारी मगध साम्राज्य
उदय:
6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हर्यक वंश के साथ मगध साम्राज्य का उदय हुआ।
राजा बिंबिसार ने राजगृह को अपनी राजधानी बनाया और वैशाली संघ के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की और मगध के वर्चस्व का विस्तार किया।
अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने पाटलिपुत्र की स्थापना की, जो मगध की दूसरी राजधानी बन गई।
मौर्य-राजवंश
उदय:
4वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य की स्थापना की।
उन्होंने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भागों को शामिल करता था।
चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी बिंदुसार ने साम्राज्य का और विस्तार किया।
अर्थव्यवस्था:
मौर्य साम्राज्य एक समृद्ध अर्थव्यवस्था वाला था।
कृषि प्रमुख उद्योग था।
सरकारी नियंत्रित व्यापार और उद्योग अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करते थे।
सड़कें और नहरें व्यापार और परिवहन की सुविधा प्रदान करती थीं।
शुंग काल
2वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग वंश ने मगध पर शासन किया।
शुंगों ने बौद्ध धर्म की हिंसा का दमन किया।
उन्होंने विदर्भ और अंध्र प्रदेश पर भी शासन किया।
सातवाहन काल
1वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सातवाहन राजवंश ने मगध साम्राज्य के दक्षिणी हिस्सों पर शासन किया।
उन्होंने दक्कन पठार पर एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।
सातवाहन बौद्ध धर्म के संरक्षक थे।
गुप्त साम्राज्य
उदय:
4वीं शताब्दी ईसा पश्चात गुप्त वंश ने उत्तरी भारत पर शासन किया।
सम्राट समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जो अफगानिस्तान से बंगाल तक फैला हुआ था।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का “स्वर्ण युग” माना जाता है।
कला, स्थापत्य, साहित्य और विज्ञान
कला: गुप्त काल मूर्तिकला, पेंटिंग और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। अजंता और एलोरा की गुफाएं गुप्त कला की उत्कृष्ट कृतियां हैं।
स्थापत्य: गुप्त मंदिरों की विशेषता पिरामिड छत और खुले आंगन थे। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों का निर्माण गुप्त काल में किया गया था।
साहित्य: कालिदास, भवभूति और शूद्रक जैसे प्रसिद्ध संस्कृत कवि और नाटककार गुप्त काल में उत्कर्ष पर थे।
विज्ञान: आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे खगोलविदों और गणितज्ञों ने गुप्त काल में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
गुप्त-वाकाटक काल में कला, स्थापत्य, साहित्य और विज्ञान का विकास
वकाटक वंश ने गुप्त समकालीन के रूप में दक्कन में शासन किया।
वकाटक गुफा मंदिर कला और स्थापत्य में अद्वितीय हैं।
वत्सराज जैसे वकाटक राजा कला और साहित्य के संरक्षक थे।
दोनों राजवंशों ने वैज्ञानिक प्रगति का समर्थन किया, जिससे खगोल विज्ञान और गणित में महत्वपूर्ण विकास हुआ।
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश
चोल: तमिलनाडु में चोल साम्राज्य 9वीं से 13वीं शताब्दी तक शक्तिशाली था। वे अपने नौसैनिक कौशल और मंदिर निर्माण के लिए जाने जाते थे।
पाल्लव: पल्लवों ने 6वीं से 9वीं शताब्दी तक दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। वे महाबलिपुरम के रॉक-कट मंदिरों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।
चेर: चेर राजवंश ने केरल पर 8वीं से 12वीं शताब्दी तक शासन किया। वे अपने व्यापारिक कनेक्शनों और कलात्मक परंपरा के लिए जाने जाते थे।
काकतीय: काकतीयों ने 12वीं से 14वीं शताब्दी तक तेलंगाना पर शासन किया। वे अपने किले, मंदिर और सिंचाई प्रणालियों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।
विजयनगर: विजयनगर साम्राज्य 14वीं से 16वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य था। वे अपने मंदिरों, किलों और कलात्मक विरासत के लिए जाने जाते थे।
भारतीय इतिहास में मध्यकाल के दौरान, कई महत्वपूर्ण राजवंश और सांस्कृतिक उत्थान हुए। यहां आपको विस्तृत जानकारी दी जाएगी:
- मगध साम्राज्य का उदय:
- मगध साम्राज्य ने अपने उदय को आधिकारिक रूप से 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्राप्त किया।
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मगध के राजा बिम्बिसार, उनके पुत्र अजातशत्रु और उनके पोता शिशुनाग ने मगध का क्षेत्र बड़ा किया और सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने इसे विस्तारित किया।
- मौर्य-राजनीति और अर्थव्यवस्था:
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मौर्य साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य और उनके पुत्र सम्राट अशोक के शासनकाल में भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल था।
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मौर्य साम्राज्य ने प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक विकास और धार्मिक सहिष्णुता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- शुग, सातवाहन, गुप्त साम्राज्य, और गुप्त-वाकाटक काल:
- इन साम्राज्यों ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके शासनकाल में कला, साहित्य, विज्ञान, और धर्म का विकास हुआ।
- दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश:
- दक्षिण भारत में अनेक प्रमुख राजवंश थे, जैसे चोल, चेर, पांड्य, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चलुक्य, गंग, होयसल, विजयनगर, बहमणी आदि।
इन राजवंशों के काल में भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य, और विज्ञान का विकास हुआ। वे भारती
सल्तनत एवं मुगल काल, विजय नगर राज्य, भक्ति आन्दोलन, सूफीवाद, फुल जानकारी सल्तनत काल (1206-1526)
सल्तनत काल दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ शुरू हुआ, जो मध्य एशियाई तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा स्थापित की गई थी। इस काल को निम्नलिखित राजवंशों द्वारा चिह्नित किया गया था:
- गुलाम राजवंश: 1206-1290
- खिलजी राजवंश: 1290-1320
- तुगलक राजवंश: 1320-1414
- सैयद राजवंश: 1414-1451
- लोदी राजवंश: 1451-1526
मुख्य विशेषताएँ:
केंद्रीकृत प्रशासन और सैन्य शासन
इस्लाम का प्रसार और मिश्रित हिंदू-मुस्लिम संस्कृति का उदय
फारसी भाषा और संस्कृति का प्रभाव
भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार स्थायी सेना और नौकरशाही की स्थापना
मुगल काल (1526-1857)
मुगल काल की स्थापना ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर ने की थी, जो मध्य एशिया से आया था। मुगल शासन भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण काल में से एक था, जिसमें कला, साहित्य और वास्तुकला में समृद्धि देखी गई।
मुख्य विशेषताएँ:
केंद्रीकृत शासन और सम्राट की सर्वोच्च शक्ति
इस्लाम प्रमुख धर्म बना रहा, लेकिन हिंदुओं को भी सहिष्णुता दी गई
फारसी भाषा और संस्कृति का और अधिक प्रभाव
मुगल वास्तुकला का विकास, जैसे ताजमहल और लाल किला
भारतीय कला और साहित्य का स्वर्ण युग
विजय नगर राज्य (1336-1646)
विजय नगर दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य था जो तुंगभद्र नदी के तट पर स्थित था। इस राज्य की स्थापना संगम वंश के हरिहर और बुक्का द्वारा की गई थी।
मुख्य विशेषताएँ:
दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन
इस्लामिक आक्रमणकारियों के खिलाफ एक प्रमुख शक्ति
हिंदू धर्म और संस्कृति का केंद्र
विजयनगर वास्तुकला का विकास, जैसे विट्ठल मंदिर और हम्पी खंडहर
संस्कृत साहित्य और कन्नड़ साहित्य का संरक्षण
भक्ति आंदोलन (12वीं-17वीं शताब्दी)
भक्ति आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन था जो 12वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में शुरू हुआ और पूरे उपमहाद्वीप में फैल गया। इस आंदोलन ने भगवद् गीता और भागवत पुराण जैसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अध्ययन और भक्ति (भगवान के प्रति प्रेम) पर जोर दिया।
मुख्य विशेषताएँ:
व्यक्तिगत भक्ति पर जोर और मध्यस्थों की अस्वीकृति
सरलता और भगवान के साथ व्यक्तिगत संबंध
संतों और भक्त कवियों का उदय
विभिन्न सामाजिक और धार्मिक सुधारों को बढ़ावा दिया
सूफीवाद (12वीं-15वीं शताब्दी)
सूफीवाद इस्लाम की एक रहस्यवादी शाखा है जो 12वीं शताब्दी में भारत में प्रवेश किया। सूफीवाद ने ईश्वर के साथ मिलन और प्रेम पर जोर दिया, और ज़िक्र (ईश्वर का नाम जपना) और समाँ (संगीत और नृत्य के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना) जैसी प्रथाओं का पालन किया।
मुख्य विशेषताएँ:
ईश्वर के साथ व्यक्तिगत अनुभव पर ध्यान
प्रेम, सहिष्णुता और करुणा के सिद्धांत
खानकाहों (सूफी मठों) की स्थापना
भारतीय संस्कृति और इस्लामिक आस्था का मिश्रण
भारत में इस्लाम के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका
सल्तनत एवं मुगल काल:
- सल्तनत काल:
- सल्तनत काल भारतीय इतिहास में 12वीं सदी से 16वीं सदी तक के दौरान था।
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इस दौरान भारत में तुर्क-अफगान सल्तनतें स्थापित हुईं, जिनमें दिल्ली सल्तनत, खिलजी सल्तनत, तुगलक सल्तनत आदि शामिल हैं।
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इस काल में भारत में इस्लाम धर्म का प्रवेश हुआ और मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई।
- मुगल काल:
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मुगल काल भारतीय इतिहास के 16वीं सदी से 18वीं सदी के बीच का दौर है।
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बाबर की विजय के बाद सम्राट अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब आदि मुगल साम्राज्य के प्रमुख शासक थे।
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मुगल साम्राज्य भारत में सांस्कृतिक, कला, और साहित्यकी उन्नति का कारण बना।
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इस काल में अनेक प्रसिद्ध इमारतें, जैसे ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी, और चार मीनार आदि बनाई गईं।
विजयनगर राज्य:
- विजयनगर राज्य 14वीं से 17वीं सदी तक विजयनगर के नाम से जाना जाता था।
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यह राज्य दक्षिण भारत में स्थित था और इसकी राजधानी विजयनगर (हाल का हैंपी) थी।
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विजयनगर साम्राज्य ने विभिन्न भारतीय संस्कृतियों का संगम स्थापित किया और साहित्य, कला, और वास्तुकला में विकास किया।
भक्ति आन्दोलन और सूफीवाद:
- भक्ति आन्दोलन भारत में 8वीं से 17वीं सदी तक के दौरान हुआ। इसमें विभिन्न भक्त और संतों ने धार्मिक संस्कृति को नए रूप में प्रस्तुत किया।
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सूफीवाद इस्लामी सुफी संतों के धार्मिक और भावनात्मक उत्साह को व्यक्त करता है, जो भारत में 8वीं से 17वीं सदी में फैला।
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भक्ति आन्दोलन और सूफीवाद ने धर्म की एकता, समरसता, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।
क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य का विकास, मराठों का अभ्युदय, यूरोपियनों का आगमन तथा ब्रिटिश सर्वोच्चता स्थापित होने के कारक, ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार युद्ध एवं कूटनीति, ग्रामीण अर्थव्यवस्था-कृषि, फुल जानकारी क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य का विकास
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य को नया उत्कर्ष प्राप्त हुआ।
हिंदी: अमीर खुसरो और तुलसीदास के लेखन के साथ हिंदी साहित्य का उदय हुआ।
मराठी: संत ज्ञानेश्वर, नामदेव और एकनाथ ने मराठी भक्ति साहित्य को समृद्ध किया।
बंगाली: चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयायियों ने बंगाली भक्ति काव्य को जन्म दिया।
पंजाबी: गुरु नानक देव और उनके उत्तराधिकारियों ने सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की रचना की।
तमिल: कामराज और कंबन जैसे कवियों ने तमिल महाकाव्य और भक्ति साहित्य की रचना की।
मराठों का अभ्युदय
17वीं शताब्दी में मराठों का उदय हुआ, जो भारत के एक प्रमुख शक्ति बन गए।
शिवाजी महाराज: मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध पद्धतियों का उपयोग करते हुए मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761): अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व में अफगानों के हाथों मराठों की हार ने उनके साम्राज्य के विस्तार को रोक दिया।
ऐंग्लो-मराठा युद्ध: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच तीन युद्धों ने अंततः मराठा साम्राज्य के पतन का कारण बना।
यूरोपियनों का आगमन और ब्रिटिश सर्वोच्चता
16वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों जैसे पुर्तगाल, फ्रांस और नीदरलैंड के व्यापारी भारत आए।
ईस्ट इंडिया कंपनी: 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई, जिसने धीरे-धीरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
प्लासी का युद्ध (1757): रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिशों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया।
बक्सर का युद्ध (1764): ब्रिटिशों ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को हराया, जिसने उन्हें बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर नियंत्रण दे दिया।
भारत पर ब्रिटिश नियंत्रण: 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, ब्रिटेन ने भारत पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया, जिसे ब्रिटिश राज के रूप में जाना जाता है।
ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार
ब्रिटिशों ने युद्ध और कूटनीति के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
युद्ध: ब्रिटिशों ने मैसूर के शासकों, मराठों और सिखों जैसे भारतीय शक्तियों के खिलाफ युद्ध किए।
कूटनीति: ब्रिटिशों ने स्थानीय शासकों के साथ संधियाँ और समझौते किए, जिससे उन्हें भारत के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण प्राप्त करने की अनुमति मिली।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था – कृषि
भूमि राजस्व: ब्रिटिशों ने भारतीय किसानों से उच्च भूमि राजस्व वसूला, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ा।
व्यावसायिक खेती: ब्रिटिशों ने चाय, कॉफी और कपास जैसी नकदी फसलों की व्यावसायिक खेती को प्रोत्साहित किया।
कृषि अवसंरचना: ब्रिटिशों ने सिंचाई प्रणालियाँ और सड़कें बनाईं, जिससे कुछ हद तक कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई।
कृषि का पतन: बंगाल अकाल जैसे अकाल और भूमि राजस्व प्रणाली के दमनकारी स्वरूप के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पतन हुआ।
क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य का विकास:
- भारत में कई क्षेत्रीय भाषाएं हैं, जिनमें विभिन्न साहित्यिक परंपराएं और लेखक हैं।
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यहां क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य की विकास की अद्भुत प्रक्रिया है, जिसमें भाषा, संस्कृति, और समाज के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त किया जाता है।
मराठों का अभ्युदय:
- मराठों का अभ्युदय छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य भाग में स्थित अबुज़ माला पर्वतीय स्थल के चारधाम मंदिर के निकट स्थित मार्तंड सन्यासी से सम्बन्धित है।
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मराठा साम्राज्य का विकास छत्तीसगढ़ राज्य के क्षेत्र में हुआ था और यह एक प्रमुख सत्ताधारी राजवंश बन गया।
यूरोपियनों का आगमन तथा ब्रिटिश सर्वोच्चता स्थापित होने के कारक:
- यूरोपियों का आगमन भारतीय इतिहास के विभिन्न कारणों से हुआ, जैसे व्यापार, धर्म, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
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ब्रिटिश सर्वोच्चता की स्थापना भारत में व्यापार और शासन के लिए रणनीतिक लाभ के लिए की गई, जिसमें उत्पादन, व्यापार, और शक्ति का संचालन शामिल था।
ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार युद्ध एवं कूटनीति:
- ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित ब्रिटिश प्रांतियों के साथ विभिन्न संघर्षों के माध्यम से हुआ।
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यह युद्ध और कूटनीतिक उपाय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का शुरुआती दौर था।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था-कृषि:
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि होता है, जो भारतीय समाज के बड़े हिस्से के लिए महत्वपूर्ण है।
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भारत की अधिकां
-राजस्व व्यवस्था स्थाई बंदोबस्त, रैय्यतवाड़ी, महालवाडी, हस्तशिल्प उद्योगों का पतन, ईस्ट इंडिया कम्पनी के रियासतों के साथ संबंध, प्रशासनिक संरचना में परिवर्तन, 1858 के पश्चात नगरीय अर्थव्यवस्था रेलों का विकास, औद्योगीकरण, संवैधानिक विकास। सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन, राष्ट्रवाद का उदय, 1857 की क्रांति, फुल जानकारी ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव
आर्थिक प्रभाव
स्थायी बंदोबस्त (1793): बंगाल में भूमि कर व्यवस्था जो जमींदारों को स्थायी रूप से भूमि राजस्व का संग्रह करने का अधिकार देती थी।
रैय्यतवाड़ी (1802): दक्षिण भारत में भूमि कर व्यवस्था जो सीधे किसानों से कर एकत्र करती थी।
महालवाड़ी (1818): उत्तर भारत में भूमि कर व्यवस्था जो गांवों को एक इकाई मानती थी और संयुक्त रूप से कर एकत्र करती थी।
हस्तशिल्प उद्योगों का पतन: ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं के आयात ने पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों को नष्ट कर दिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के रियासतों के साथ संबंध: कंपनी ने रियासतों के साथ सहायक गठबंधन किया, जिसके तहत रियासतें ब्रिटिश अधिपत्य को स्वीकार करती थीं और कंपनी उनके बाहरी मामलों को नियंत्रित करती थी।
प्रशासनिक संरचना में परिवर्तन
सिविल सेवा: ब्रिटिश प्रशासकों की एक कुलीन सेवा जिसे भारतीयों से भर्ती नहीं किया जाता था।
न्यायपालिका: ब्रिटिश कानूनों पर आधारित एक नई न्यायपालिका व्यवस्था स्थापित की गई।
पुलिस: भारतीय पुलिस बल की स्थापना की गई।
शिक्षा: अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया गया।
सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन
ब्रह्म समाज (1828): एकेश्वरवाद और सामाजिक सुधार पर जोर देने वाला एक धार्मिक सुधार आंदोलन।
आर्य समाज (1875): हिंदू धर्म के वैदिक मूल्यों पर जोर देने वाला एक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन।
प्रार्थना समाज (1867): सामाजिक न्याय और धार्मिक सहिष्णुता पर जोर देने वाला एक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन।
रामकृष्ण मिशन (1897): हिंदू धर्म और वेदांत दर्शन के प्रसार पर जोर देने वाला एक आध्यात्मिक संगठन।
1858 के पश्चात
नगरीय अर्थव्यवस्था का विकास: शहरों का विस्तार और आधुनिकीकरण हुआ।
रेल का विकास: रेलवे ने व्यापार, परिवहन और संचार में क्रांति ला दी।
औद्योगीकरण: कुछ उद्योगों, जैसे कपड़ा, जूट और इस्पात में सीमित औद्योगिक विकास हुआ।
संवैधानिक विकास: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) और मुस्लिम लीग (1906) जैसे राजनीतिक संगठनों का उदय हुआ।
राष्ट्रवाद का उदय: भारतीय राष्ट्रवाद बढ़ा और स्वतंत्रता की मांग तेज हुई।
1857 की क्रांति
भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक विद्रोह जो दिल्ली और अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को गंभीर रूप से हिला दिया और इसके बाद ब्रिटिश नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जिसमें भारतीयों को सिविल सेवा में भर्ती करना और भारतीय विधान परिषदों की स्थापना शामिल थी।
– राजस्व व्यवस्था स्थाई बंदोबस्त, रैय्यतवाड़ी, महालवाड़ी:
- ब्रिटिश साम्राज्य के काल में भारत में राजस्व व्यवस्था का स्थाई बंदोबस्त प्रणाली लागू की गई, जिसमें किसानों को भूमि का किराया देने के लिए कार्यदाताओं से संबंधित समझौते किए गए।
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इस प्रणाली के अंतर्गत, रैय्यतवाड़ी और महालवाड़ी प्रणालियाँ व्यवस्थित की गईं, जिसमें रैय्यतवाड़ी किसान खेतों का नियंत्रण करते थे और महालवाड़ी व्यक्तिगत मालिकाना प्रणाली का हिस्सा थी।
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हस्तशिल्प उद्योगों का पतन:
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ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद, हस्तशिल्प उद्योगों का पतन हुआ, जो स्थानीय उत्पादन के प्रोत्साहन और विदेशी वस्त्रों के आगमन के कारण हुआ।
– ईस्ट इंडिया कम्पनी के रियासतों के साथ संबंध:
- ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद, ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपने आधिकार को विस्तारित किया और भारतीय रियासतों को अपने अधीन में कर लिया।
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प्रशासनिक संरचना में परिवर्तन:
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ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के साथ, भारतीय प्रशासनिक संरचना में परिवर्तन किए गए, जिसमें स्थानीय सरकारों के प्रभाव को कम किया गया।
– 1858 के पश्चात नगरीय अर्थव्यवस्था और रेलों का विकास:
- 1858 में ब्रिटिश सरकार ने भारत के प्रशासन का प्रभाव सीमित किया और नगरीय अर्थव्यवस्था का शुरुआती अवसर प्रदान किया।
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रेल्वे सेवा का आरंभ इसी समय हुआ, जिससे व्यापार और परिवहन को बढ़ावा मिला।
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औद्योगिकरण:
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ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में औद्योगिकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे विभिन्न उद्योगों का विकास हुआ और नई रोजगार की अवसर सृजित हुए।
– सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन:
- ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आदि विभिन्न सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों ने समाज में बदलाव लाने का कार्य किया।
– राष्ट्रवाद का उदय:
- 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद का उद