महिलाओं के कानूनी अधिकार – एक संपूर्ण गाइड
1. घरेलू हिंसा से संरक्षण (Protection from Domestic Violence Act, 2005)
यह अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है – शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक या मौखिक हिंसा।
महिला को सुरक्षा अधिकारी, चिकित्सा सुविधा, रहने की जगह और अदालत से सुरक्षा आदेश मिल सकते हैं।
2. दहेज निषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act, 1961)
इस कानून के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध हैं। यदि किसी महिला को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है, तो वह FIR दर्ज करा सकती है।
3. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा (POSH Act, 2013)
यह कानून कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है। हर संगठन में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाना अनिवार्य है।
4. विवाह और तलाक के अधिकार (Hindu Marriage Act, 1955; Special Marriage Act, 1954)
महिला को विवाह, तलाक, भरण-पोषण, और बच्चों की अभिरक्षा से संबंधित अधिकार मिलते हैं। यदि पति प्रताड़ित करता है या विवाह टूट गया है, तो महिला तलाक और गुज़ारा भत्ते के लिए दावा कर सकती है।
5. कार्यस्थल पर मातृत्व लाभ (Maternity Benefit Act, 1961)
कामकाजी महिलाओं को 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश, मेडिकल बोनस और सुरक्षित कार्य स्थितियों का अधिकार है।
6. गिरफ्तारी से सुरक्षा (CrPC धारा 46 और 160)
कोई महिला सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के गिरफ्तार नहीं की जा सकती। महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही की जानी चाहिए।
7. संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकार (Hindu Succession Act, 1956)
इस कानून के अनुसार बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार है, जैसे बेटों को मिलता है। संशोधन 2005 के बाद यह अधिकार और भी स्पष्ट हुआ है।
8. मुफ्त कानूनी सहायता (Legal Services Authorities Act, 1987)
महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार है, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में संपर्क किया जा सकता है।
9. हेल्पलाइन और शिकायत केंद्र
– 1091 – महिला हेल्पलाइन नंबर
– वन स्टॉप सेंटर – तुरंत सहायता (पुलिस, कानूनी, चिकित्सा)
महिलाओं के कानूनी अधिकार
18 साल की उम्र के बाद लड़की बालिग हो जाती है, बालिग होने के बाद उसे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का हक मिल जाता है। कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ भी करने को मजबूर नहीं कर सकता, यहाँ तक कि अभिभावक भी नहीं। बंद रखने, आगे पढ़ने से रोकने या जबरदस्ती शादी करने को मजबूर करने पर इसका विरोध कर सकती है, वह अदालत में इसके विरूद्ध लड़ाई लड़ सकती है। अगर हालत अनुकूल नहीं है तो परिवार से अलग रहने का फैसला ले सकती है।
पैत्रिक जायदाद में हिन्दू कानून के तहत लड़की और लड़के को बराबर का हक है। जरूरी नहीं कि शादी के बाद आप अपना नाम या उपनाम बदले। यदि आप चाहें तो विवाहपूर्व का नाम, उपनाम, विवाह के बाद भी जारी रख सकती हैं। अपने वेतन / अपनी कमाई पर आपका पूरा हक है, उसे अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकती हैं। आप केवल अपने नाम पर बैंक में खाता खोल सकती हैं, अनपढ़ महिलाएं भी अंगूठा लगाकर अपना खाता खोल सकती हैं।
आपको अपनी शादी के समय और बाद में माता-पिता से और ससुराल में जो कुछ भी मिला है वह स्त्री धन है और उस पर आपका पूरा अधिकार है। पति के पास जो भी जायदाद है जैसे खेती की जमीन या घर वगैरह, वह पत्नी के या दोनों के संयुक्त नाम पर भी रजिस्टर हो सकती है। राशन कार्ड पत्नी या पति किसी के भी नाम पर बन सकता है।
स्कूल में बच्चे का दाखिला कराते वक्त मां का नाम भी अभिभावक के रूप में देना आवश्यक है। अगर आपको अनचाहा गर्भ ठहर जाये तो आप किसी भी सरकारी अस्पताल में जाकर गर्भपात करा सकती हैं। 1971 में बने गर्भपात कानून के तहत् कोई भी गैर शादी-शुदा औरत गर्भपात करवा सकती है, इसके लिए उसे किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
अगर आपके और आपके पति के बीच कोई विवाद चल रहा है तो भी पति आपको घर से बेदखल नहीं कर सकता। शादी के बाद घर पर आपका भी उतना ही हक है जितना आपके पति का। माता-पिता का तलाक हो जाने के बाद भी बच्चे का अपने पिता की जायदाद में हक खत्म नहीं होता।
कानूनी तौर पर बच्चों का असली पालक पिता होता है, मां केवल उनकी देखभाल के लिये होती है। अगर पिता बच्चों को नहीं देख रहा है तो मां अदालत में मुकदमा दायर करके अपने बच्चों की माँग कर सकती है।
अगर पति खर्चा नहीं देता और औरत व उसके बच्चे बेसहारा हो जाते हैं, तो धारा 125 सीआरपीसी के तहत महिला को गुजारा खर्च पाने का अधिकार है।
“समान वेतन कानून 1976” के तहत स्त्री-पुरूष को समान कार्य के लिए समान वेतन देना अनिवार्य है। मालिक औरत के साथ भेदभाव नहीं कर सकता।
यदि आपका यौन शोषण हुआ है, तो चुप न रहें, तुरंत एफआईआर दर्ज कराएं। बलात्कार की स्थिति में 24 घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण करवाएं और सबूत को नष्ट न करें।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत आप शिकायत दर्ज कर सकती हैं और कानूनी कार्यवाही करवा सकती हैं। एफआईआर की एक प्रति आपको निःशुल्क मिलनी चाहिए।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, समान पारिश्रमिक अधिनियम, भरण-पोषण अधिकार, बालकों के संरक्षण से संबंधित अनेक कानून महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
हर महिला को अपनी संपत्ति रखने, खरीदने, बेचने और वसीयत करने का पूरा हक है। विधवा महिला यदि दूसरी शादी भी कर ले, तब भी उसे पति से मिली संपत्ति पर पूरा अधिकार है।
यदि पुलिस गिरफ्तार करती है, तो पुलिस को कारण बताना आवश्यक है। गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना आवश्यक है। महिलाओं को महिलाओं के कमरे में ही रखा जाएगा।
गिरफ्तारी जमानतीय हो या गैर-जमानतीय, उसके अनुसार जमानत मिल सकती है और इसे लेने के लिए पैसे देना आवश्यक नहीं होता, केवल मुचलका भरना होता है।
इन सभी अधिकारों का ज्ञान होना हर महिला के लिए आवश्यक है ताकि वह अपने साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ खड़ी हो सके।
महिलाओं के कानूनी अधिकार
1. संविधानिक अधिकार (Fundamental Rights)
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता – पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकार।
- अनुच्छेद 15: लिंग के आधार पर भेदभाव निषिद्ध।
- अनुच्छेद 16: सार्वजनिक नियुक्तियों में समान अवसर।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
- अनुच्छेद 39(a)(d): राज्य महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन और जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त साधन सुनिश्चित करेगा।
- अनुच्छेद 42: मातृत्व राहत और उचित कार्य स्थिति।
2. महत्वपूर्ण कानून (Key Legislations)
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – विवाह, तलाक, और गुज़ारा भत्ता से संबंधित अधिकार।
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961 – दहेज लेना और देना दोनों अपराध।
- गृह हिंसा अधिनियम, 2005 – घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा।
- कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (POSH) अधिनियम, 2013 – कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं – धारा 354 (शारीरिक छेड़छाड़), 376 (बलात्कार), 509 (शब्दों/हावभावों से अपमान)।
3. कार्यस्थल पर अधिकार
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 – 26 सप्ताह की मातृत्व छुट्टी का प्रावधान।
- POSH अधिनियम – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 – पुरुषों और महिलाओं के लिए समान वेतन।
4. सुरक्षा और राहत
- फ्री कानूनी सहायता – सभी महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार है (विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987)।
- पुलिस में महिला अधिकारी के समक्ष बयान देने का अधिकार।
- रात में गिरफ्तारी से सुरक्षा (महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता)।
- फास्ट ट्रैक कोर्ट – महिलाओं से जुड़े मामलों की शीघ्र सुनवाई।
5. अन्य प्रमुख अधिकार
- संपत्ति अधिकार – हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन (2005) के अनुसार बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार।
- विधवा पुनर्विवाह का अधिकार।
- बिना पति की सहमति के गर्भपात (20 सप्ताह तक) का अधिकार – मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम।
- बाल विवाह निषेध – बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत विवाह की न्यूनतम आयु: लड़कियों के लिए 18 वर्ष।
6. ऑनलाइन सुरक्षा और साइबर अपराध से सुरक्षा
- आईटी अधिनियम और IPC की विभिन्न धाराएं महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए।
- साइबर बुलिंग, मॉर्फिंग, पीछा करना (Cyberstalking), धमकी देना आदि अपराध हैं।
- राष्ट्रीय महिला आयोग और साइबर क्राइम पोर्टल के माध्यम से शिकायत कर सकती हैं।
7. शिकायत और सहारा प्रणाली
वन स्टॉप सेंटर (OSC) – एक ही स्थान पर चिकित्सा, काउंसलिंग, कानूनी सहायता और आश्रय।
महिला हेल्पलाइन (181) और पुलिस हेल्पलाइन (112)।
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW)।
राज्य महिला आयोग।
पुलिस स्टेशन में महिला हेल्प डेस्क।