HomeBlogशुद्ध छत्तीसगढ़ी लेखन आओ देकथन

शुद्ध छत्तीसगढ़ी लेखन आओ देकथन

कोनो न कोनो संदेश जरूर देथे, जेकर आज जरूरत घलोक हावय। एक समय रिहिसे जब साहित्य लेखन ह सिरिफ देश भक्ति, भुइयां-पानी, प्रकृति के तीरतखार अउ जादा होगे त अध्यात्म के आगू-पाछू घूमत राहय। फेर आज के लिखझ्या मन आज के बात ल लिखत हावयं। ‘परसार के गउंदन’ म कुल 13 कहानी के संग्रह हावय, जेमा शीर्षक कहानी परसार के गउंदन के संगे-संग गोबरहिन डोकरी, चुगलाहा, मनटोरा, लाली चुरी, ईनाम, दनगरा, मइके के सुरता, जंगल के पै, सुख के दिन, मया अउ माया, दुरपती अउ सइताहा शामिल हावय।

शीर्षक कहानी ‘परसार के गंऊदन’ ह आजकाल के लड़का मन संगती के चक्कर म परके बिगड़त जावत हावयं तेकर ऊपर आधारित हावय, त ‘गोबरहिन डोकरी’ ह सियान मन के अक्कल म चले के सीख देथे। कहानी ‘चुगलाहा’ ह अपन नांवेच ले जनवावत हावय के चारी-चुगली करने वाला मन के मारे चारोंमुड़ा के माहौल खराब हो जाथे, एकरे सेती सियान मन अइसन लोगन ले दुरिहा रहे के सोर देथें। ‘मनटोरा’ प्रेमकथा ऊपर आधारित हावय, जे ह अपन अवस्था के लोगन मनला प्रभावित करथे, चाहे वो ह लेखक होवत ते पाठक । ‘लाली चूरी’ बाल विवाह ऊपर आधारित हावय, जे ह आज घलोक हमर देश म अभिशाप के रूप म जिंदा रहिगे हावय, खास करके ग्रामीण क्षेत्र म जिहाँ शिक्षा के अँजोर अभी तक पहुंच नइ पाए हे। ए शिक्षा के कमी ल दुरिहा खेदार के ज्ञान के अँजोर ल प्रोत्साहित दे खातिर एक अउ कहानी के सिरजन करे गे हावय, जेकर नांव हे ‘ईनाम’।

अभी छत्तीसगढ़ राज अलग बने के बाद इहाँ जमीन के खरीदी-बिक्री ह भारी बाढ़गे हावय, अउ एकरे संग जमीन दलाल मन के संख्या अउ उत्पात घलो बाढ़गे हावय। जमीन दलाल मन के चाल-चरित्र ल उजागर करत एक कहानी के सिर्जन करे गे हवय, जेकर शीर्षक हे ‘दनगरा’। माईलोगिन मन चाहे कतकों बुढ़ा जावयं, फेर जब तीजा-पोरा के बेरा आथे त ‘मइके के सुरता’ अवस के करर्थे, इही भावना ल व्यक्त करत ये कहानी के सिजन करे गे हवय जेकर शीर्षक घलोक ‘मइके के सुरता’ हावय।

अभी हमर छत्तीसगढ़ म सबले बड़े समस्या के रूप म जेन उत्पात मचावत हावय वो हे ‘नक्सल’ समस्या। कोनो भी बौद्धिक वर्ग के आदमी अइसन समस्या ले अनजान नइ रेहे सकय, त भला एक संवेदनशील साहित्यकार कइसे एकर ले दुरिहा रहि सकथे, (पुनाराम साहू अंधियारखोर नवागढ़ बेमेतरा 491337 ) 7509018151

  1. गोबरहिन डोकरी
  2. मनटोरा
  3. चुगलाहा
  4. लाली चूरी
  5. परसार के गउंदन
  6. दनगरा
  7. मइके के सुरता
  8. दुरपती
  9. मया अउ माया
  10. सुख के दिन
  11. ईनाम
  12. जंगल के पै
  13. सइताहा

गोबरहिन डोकरी

गोधुली बेला म गांव डहर लहुंटत बरदी। गांव भर के गरवा ल हांकत बरदिहा अउ बरदिहा के पाछू म गोबर्हिन। येहा रोज के किस्सा आय। बिहनिया ले बरदिहा मन गांव के गरवा ल दइहान म सकेलथे अउ अलग-अलग टेन बना के चराय बर परिया कोती, बनडबरी कोती लेगथे। माई लोगिन मन गोबर बिने बर झऊंहा धर के निकलथे। गरवा के पाछू-पाछू उवत के बुड़त किंजरथे। जतके गरवा ततके गोबर्हिन ।

एकक चोता बर चिथो-चिथो होवत रिथे। रोज असन आजो जवान मोटियारी मन तो झऊंहा-झऊंहा गोबर ल मुड़ी म बोहे लिचलिच लिचलिच आवथे। उकरे पाछु म सुकवारो डोकरी ह सपटा भर खरसी-गोबर ल बोहे कोंघरे कोंघरे आवथे। जीये बर खाय ल लागथे अउ खाय बर कमाय ल, बपरी डोकरी ह कमा-कमा के आधा उमर पोहा डरिस। ओकर आगू हंसइया न पाछु रोवइया। दाउ दरोगा घर लकड़ी छेना बेच-बेच के जिनगी के गाड़ी घिरलावथे।

आज डोकरी हा आधा झऊंहा गोबर ल पाइस ताहन लकर-धकर घर आगे। कभू काल तो पाथे। झऊंहा ल बाहिर म खपल के अछरा म पछीना ल पोछत भीतर म खुसरिस। एक कुरिया के घर वहू बिन कपाट सकरी के। खटिया उधे रिहीस तेला गिराके बइठीस । थकहा जांगर एक सांहस हकन के सुरताइस।

डोकरी के निंद उमचिस त मुंधियार होगे रिहीस। चिमनी बार के आगी सिपचइस अउ अपन पुरती भात ल रांध घला डरिस। एक परोसना खाके आधा ल बासी बोर के खटिया म ढलंगे। डोकरी सुते-सुते मने मन गुनथे- ‘कब तक अइसने

के बताइस। डोकरी ल चोरहा टूरा मन उपर दया आगे। डोकरी किथे- मैं ह तहू मन ल बचाहू अउ ये मोहर ल घलो फेर मोर एक ठन सरत है। चोरहा मन पुछिस का सरत हे दाई। डोकरी किथे पकड़ाहूं त मैं, अउ बांच जाहू त ये मोहर ल गांव भर म बाट देहूं। चारो झन डोकरी के सरत ल मान के मोहर ल डोकरी ल धरा के अपन-अपन घर कोती टरक दिस। मुंदराहा होइस ताहन डोकरी ह मोहर के गठरी ल परवा म टांग के झऊंहा धरिस अउ निकलगे अपन बुता म। पहरादार मन डोकरी ल सियनहिन ए कहिके कांहि नइ किहिस। डोकरी ह झऊंहा भर गोबर बिन के आगे। घर के परवा म खोचाय मोहर ल गोबर म गिलिया के सइत दिस। वोतके बेरा बड़े दाउ के लठियारा मन घलो घरो-घर तलासी लेवत डोकरी घर आगे। सबो समान ल छिही-बिही करके खोजिन फेर नइ पाइस। लठियार मन के जाय के बाद डोकरी अपन बूता म लगगे। गिलीयाए गोबर ल धरके ओरी-ओरी बियारा के भाड़ी म छेना थोप डरिस। चोरहा टूरा मन सोचते रइगे। मोहर काहां कुलुप होगे। मोहर कहू जाय फेर उकर तो जीव बांचगे।

बड़े दाउ ह अपन पहरादार मन ल खिसयावत घर लहुंटगे। अउ फैसला करिस कि मोहर ह गांव म काकरो घर नइ मिलीस फेर मोहर गांव ले बाहिर गे नइहे। धरे होही त देख-देख के थोरे जिही। जिये बर चाउर दार बिसाय ल परही। कब तक बेचे बर नइ निकलही। गांव के बाहिर पाहरा लगा दव अवड्या-जवड्या सबके तलासी करे बर।

येती बर छेना सुखाइस ताहन गोबर्हिन डोकरी ह अपन सरत के मुताबिक एकक ठन छेना गांव भर म बांट दिस। छेना देके बेरा डोकरी ह कान म फुसुर- फुसुर करे। बड़े दाउ ह डोकरी ल छेना बाटत देखिस फेर वो का जानय कि छेना के भितरी म मोहर दबे हे तेला। गांव के मन मोहर बेचे बर निसंसो बजार जाय। अउ ए बात के पहरादार मन ल घलो गम नइ होय। वो मन सोचे छेना बेचे बर बजार जाथे। गांव के मन बजार ले अपन-अपन खाये पिये के समान ल बिसा के ले लाने ।

अइसन सियानी मति ले गांव भर बर दार-चाउर के जुगाड़ होगे। चोरहा मन के संगे-संग गांव वाले मन घलो डोकरी के अक्कल ले अपन जीव बचा लिस। एक ठन बुराई ले गांव भर के भलई होगे। अब अवइया असाढ़ के आवत ले तो जिनगी चल जही। गोबर्हिन डोकरी जेकर माथा म दिन भर गोबर छबड़ाय राहय ओकर मति लतो देख, दरिदरिन कस दिखे फेर गांव भर के दरिदरी ल दूरिहा दिस। गांव के मन डोकरी के जय जय गइस अउ दिन दुकाल ले निसफिकीर होगे।

भुलागे। बर-बिहाव झरे के बाद लछमन घर लहुटिस। ददा ह रिस के माने नइ बोलिस। भाई ह भाई के मया म गोठियालिस ।

सतरोहन ह अपन बाई ल हांक पारिस पानी बर। मनटोरा ह लोटा म पानी धर के निकलिस। लछमन ह अपन भाई बहु के चेहरा ल देखके ठाड़ सुखागे। सांस अरहजगे। तन पथरा होगे। मनटोरा घलो आंखी फारे देखते रइगे। ओतगे बेरा ओकर ददा ह आके दूनो के परचे कराथे बहु ये तोर कुरा ससुर आए मुड़ी ल ढांक के दुरिहा ले पांव पर ले। लछमन के मुड़ म टंगिया परगे, अपन मयारु ल छोटे भाई के बहु बने देखके। ओतका बेर ले लछमन के सुध-बुध हरागे। सुरता रिहिस त सिरिफ मनटोरा नाव। ये नाव ह लछमन ल बाय-बैरासु कस लगगे। एक नाव के पाछु अपन मयारु बरो दिस। ये नाम ल धरे लछमन ह बइहा होगे। धन-दौलत घर-दुवार कांहि के सुध नइहे। रमता जोगी होके घर दुवार ल तियाग दिस।

समरोहन अउ मनटोरा ह समाज म दाई-ददा के मान ल राखत बिधाता के लेखा मान के अपन घर संसार म रमगे। लछमन ह घर-परिवार ले दूरिहा-दूरिहा रई के बनेच दुरिहागे। दाउ के लइका होके जिहे दाना-पानी मिलथे बुता काम करत एक मुठा खात परे रिथे। ददा अउ भाई करा रितिस ह ओकर जतन पानी करतिस, फेर ओकर तो कोनो ठिकाना नइ राहत रिहिस। रमता जोगी बरोबर ए गांव ओ गांव बइहा-भूतहा कस भटकत राहय। धीरे-धीरे घरो के मन सोर-खबर ले बर छोड़ दिस। काबर कि घर ल रितिस तव अउ जादा दुख होतिस। जिहे ओकर मन सुख पावे तिहे रेहे राहय। अऊ आगू के किस्सा ल तो सरी गांव जानत हे।

कोतवाल के मुंह ले लछमन के अइसन किस्सा सुन के लइका मन मने-मन एक आसु रो डरिस। कोतवाल संग लइका मन अपन करनी के छिमा मांगे बर लछमन करा गिस। बगीचा म ओधे लछमन करा सबो लइका मन छिमा मांगिस फेर ओतो चिट-पोट काहि नइ करिस। कोतवाल ह ढकेल के हृत पारिस । लछमन के मुरदा देह पट ले भुइया म चितियागे अउ आज इही मेर लछमन अउ मनटारो के किस्सा तको सिरागे ।

बोरिया बांधा के उलट म बसे हे मनियारी गांव ह। इहा के लोगन मन दिन भर खेती किसानी म रमे रिथे। गांव के चारो मुड़ा उपजाऊ माटी हे ते पाय के सबो करा खेती-खार सपुरन रिहिस। किसानी के छोड़ कोनो दूसर बुता म कोनो नइ जात रिहिस। बोरिया बांधा के सेती मनियारी म कभू सुक्खा नइ परत रिहिस। तिर तखार के मन ऊहा के भुइया ल सोनहा काहय।

मनियारी म चइतु अउ चैनु नाव के दू भाई रिहिन। गांव के मन उकरे रद्दा म रेंग के किसानी के काम ल करे। दोनो भाई म चइतु ह जादा सियानी करय। चैनु ह भाई संग बुता म जावे जरूर फेर थोकन अललहा रिहिस। खातु-कचरा लेवई, दवा-पानी छिचई चैनु ल बने ओल्हावे नांगर धरे के पारी म एकाध हरिया जोते ताहन घाम लागथे भईया किके मेड़ म जाके सुत जाय। दोनो भाई के बटवारा होगे रिहिस तभो ले दोनो ह एक दूसर के काम म बरोबर मदद करे।

एक दिन दोनो भाई बियासी नांगर फांदे रिहिस। एक ठन खेत ल बियासिस ताहन थक गेव किके मेड़ म जाके सुतगे। अइसन सुतई सुतिस की निंद रट्ठा के परगे। चइतु ह जगाये बर गिस त चैनु ह निंद म बड़बड़ावत राहय। ये टूरा ह सपनावत होही किके जगाबे नइ करिस। चैनु ह सुते-सुते देखत हे कि चइतु ह बियासी के नांगर ल ढील के बांधा के पारे-पार घर आवत रिहिस। खांध म बियासी नांगर हाथ म तुतारी अउ बाही म खुमरी ल ओरमाय रिहिस। चइतु के बांधा ले उतरती होइस अउ ठुक ले ओती ले दू झन सहरिया के आति होइस। सहरिया ह चइतु ल रोकत किथे ये मिस्टर सुनो। आरो सुन के चइतु ठाढ़ होइस अउ पुछिस का तेरह सइताहा गांव म काकरो घर चिट्ठी अवइ साहज बात नोहे, वहु म सरकारी चिट्ठी।

काकरो घर म आथे तव गांव भर म सोर उड़ जथे। काबर अइस, काकर बर अइस गांव-गांव जान डारथे। फेर मंगतू गउटिया घर के चिट्ठी के सोर नइ उड़े। ऊंकर घर तो महीना पंदराही म चिट्ठी आतेच रिथे। चिट्ठी झोकत झोकत ओकर उम्मर पोहावथे।

गांव म कोनो पढ़े-लिखे ल नइ जानत रिहिस ते बखत ले ओकर घर म चट्ठी आवत हे। अब तो वोकर नानकुन टूरा रतनू ह चिट्ठी पढ़ डरथे। पोस्टमेन ह सइकिल के ठिनठिनी बजावत अइस अउ ठउका मंगतूच के दुवारी म सइकिल टेकाइस। मंगतू ह मुहाटी म चोंगी पियत बइठे रिहिस। अपन ह चिट्ठी ल नइ झोकिस रतनू ल किथे जात रे रतनू पेरन्हा खार के पेसी के चिट्ठी ल झोक। डोकरा ह पढ़े-लिखे नइहे फेर चिट्ठी के रंग ल देख के जान डारथे पेसी के हरे किके। रतनू ह चिट्ठी ल झोकिस। उदास मन ले काहत हे अऊ कतका दिन ले पेरही ये पेरन्हा खार के पेसी ह। मंगतू ह भले आधा उमर के होगे फेर ओकर मन म गजब बिस्वास भरे हे। रतनू ल समझावत किथे- हमर जियत भर लड़बो थाना कछेरी ल ये हर हमर पुरखा के चिन्हा ये।

मंगतू ह अपन आगू के दिन ला सोरियावत हे। सौ अक्कड़ के जोतनदार मंगतू गउटिया काहत लागय। नाव हे मंगतू फेर ओकर दान धरम ल गांव-गांव जानथे। मंगतू के दुवारी ले कोनो दुच्छा नइ लहुटत रिहिस। गजब खेती-खार अउ रुपिया पइसा वाला रिहिस। आदत बेवहार म देवता बरोबर माने गांव वाला मन। ओकर पुछे बिना गांव म एक ठन पाना नइ डोलत रिहिस। मेला मड़ई होवे चाहे रमायन

चुगलाहा

गांव ल तो सुनता अउ स‌द्भावना के ठउर केहे जाथे। नित-नियाव के आसन म बइठे गांव के सियान ह गांव भर ल सुमता के डोरी म बांधे रिथे। परेम के तुतारी ले गांव भर ल हॉकथे। कोनो ल दुख पिरा झन होवे किके गांवे म अपन मति अनुसार नियम बनाय रिथे। का अमीर का गरीब छोटे बड़े सबो ल सियान बबा ह एके लउठी म हाँके। अपन बखत म मानपुर गांव घलो सुनता अउ एकजुटता के मिसाल रिहिस, फेर का करबे सबो दिन एक बरोबर नइ राहय अब सियान ह सियाने होगे। नित-नियाव ह अब थाना कछेरी के होगे हे। गांव तिर म थाना का आगे थानादार बात-बात म गांव आ धमकथे।

दाउ ह अपन पाहरो म कभू थाना कछेरी नइ गे रिहिस फेर का करबे जब ले

नियतखोर कोतवाल अउ घूसखोर थानादार के जोड़ी भराय हे तब ले दाउ अउ गांव

वाला मन ल लिखरी लिखरी बात बर हवलदार करा खड़ा होय बर परथे। ओ दिन एक घर सास बहू के झगरा होइस परोसी ल आरो नइ लगिस। फेर चुगलाहा कोतवाल के कान म खजरी उमड़िस ते पाय के गांव भर के मन गम पागे। कोतवाल के करनी अतकेच भर नोहे। बाप बेटा के झगरा, कोनो के भइसी गवागे, कुकरी चोरी होगे, कोनो ल कुकुर चाब दिस अइसन-अइसन नान-नान बात म कोतवाल ह थाना वाला ल बलाके गांव के लोगन मन ल हलाकान करय। इही थाना कछेरी के सेती गांव के पंचइत अउ नित नियाव छिदीर-बिदीर होगे। हरेक बात म थाना आगे।

मातर के दिन के बात आए मदन अउ दया ह झगरा होइस। नसा के रोस म दूनों झन मारिक-मारा होइस। कोनो नइ छोड़ातिस त तो मुड़ी कान के फुटत ले हो जतिस। सियान मन छोड़ाइस अउ घर म ओइलइस। बिहनिया नसा उतरे के बाद

सुख के दिन बरसत पानी म नांगर जोतइया। घपटे अंधयारी म दउरी फंदइया। कतको जड़काला परय जांगर नइ कापय। कमइया ल कोन माटी म गढ़े हे गढ़इया ह तेन ल उही जाने। सिरतोन म विधाता ह बनि करड्या के तन अउ मन ल अलगेच बनाए हे तभे तो सुखमिन ह नारी परानी होके घर के नांगर ल थामहे हे। गांव के सब मरद मन के बरोबरी करत दिन भर म आधा अक्कड़ ल जोत डारथे। घर के सियानी के पागा बांधे सबे काम ल उरकावथे। सुखमिन ह जब ले सालिक घर आहे सुख ल जाने नही। सास के मुंह नइ देखे हे ससुर ह खटिया धरे हे। दू झन लइका ओकर कोरा म हे। ओकर घरवाला सालिक के पांच साल होगे कांहि आरो नइ मिलत हाबे। गांव म सब बनि करे बर परदेस जाए तेमा सालिक घलो जाए। पइसा-कउड़ी के जरवत राहे त गांव म कोनो न कोनो आत-जात रहे तेकर करा पठो देवे। अपन ह साल के साल पइसा-कउड़ी कमा के, खेती-किसानी के दिन म एकट्ठा गांव आए अउ अपन किसानी बुता ल करे। खेती-किसानी के काम सिराय के बाद फेर परदेस म बनी करे बर निकल जाय। आन दरी तो लगते असाढ़ म आ जात रिहिस फेर पांच बच्छर होगे आए नइहे। गांव के मन एकक करके घर लहुंटगे फेर सालिक के सोर पता नइहे। सुखमिन ह पुछथे गांव के मन ल किथे ए भट्ठा म नइहे, ओ भट्ठा म होही। उहां पता करिस त किथे इहो नइहे। सुखमिन ल संसो होगे काहां होही, कइसन हाल म होही। सोर पता ले बर कोनो डहर निकलतिस त घर म कोनो सियान नइहे। गांव के कोनो कोनो मन ल पुछिस त किथे सालिक ह बम्बई के कारखाना म कमात होही। अब सुखमिन ह सालिक ल खोजे बर जाही त घर-दुवारल कोन देखही। सुखमिन ह सालिक के आए के आस म घर के सियानी ल

मनटोरा

चइत बइसाख के महीना तो बर बिहाव के सिजन आय। जेती देखबे तेती गढ़वा बाजा ह बाजत रइथे। किथे न मांग फागुन म मंगनी जचनी, चइत बइसाख म बर-बिहाव अउ काम बुत ल उरका के सगा घर लाडू बरा बर रतियाव। चड़ती मंझनिया के बेरा आमा बगइचा के तिरे-तिर दू तीन ठन बइला गाड़ी आवत रिहिस। गाड़ी ह गजब सजे-धजे रिहिस। बइला के सिंग म चकमकी रंग लगाय, पीठ म मखमल के लादना लदाय अउ टोटा म कांसा के बड़े-बड़े घांघड़ा पहिराय। टोटा के घांघड़ा अउ पावं के घुंघरु के छमक छमक आरो ल पाके के लइका मन दोरदिर- दोरदिर देखे बर आथे। आगू पहुंच के देखथे तेमन पाछु वाला मन ल गोहर पार के बताथे।

वाहद रे … बरात गाड़ी आवथे … बरात गाड़ी …।

सबो लइका मन सकलाके एक ले सेक गोठ करथे एक झन किथे- आगू म वहिदे झांपी माड़े हे ते गाड़ी म दूलहा बइठे होही अउ वोकर संग ढेड़हा होही। दूसर लइका किथे- बीच के गाड़ी म बरतिया मन होही। वोतके बेरा ठुक ले पाछु गाड़ी ले मोहरी, निसान के आरो आथे। बाजा गाजा के आरो पाके सबो लइका मन गोहार पारके नाचे लगगे। इकर नचई-कुदई न देखके बरतिया टूरा मन घला मसतियागे। बगीचा के आमा छांव म गाड़ी ल रोक के बजनिया अउ बरतिया मन नाचे-कुदे ल लगगे। कोनो काहथे राँगोबती बजा, कोनो काहथे पानवाला बाबू बजा। फेर लइका मन के का ए पार अउ का ओ पार, सबो पार म बिकट नाचिस ।

गाड़ी बइला अउ भीड़-भड़क्का देख के बगइचा के रखवार लछमन ह घलो

सात

मईके के सुरता

फूफू के लिगरी म सातो ह भाई मन करा बांटा मांगे बर उमियागे। पंचइत सकेल के अपन ददा के जहिजाद म हिसा मांगिस। नित नियाव म लड़के सातो ह अपन ददा के जहिजाद म हिसा पा लिस। फेर बपरी के जीयत भर बर मइके के मया छुटगे। आगी लगे अइसन नियाव म जोन मया ल टोरथे। कीरा परय ऊकर मति म जेमन धन के पाछु मया जोरथे।

बिहाव के पाछु बेटी-माई ल मइके ले एक लोटा पानी के आस रइथे। तीजा पोरा अउ मातर मड़ई म नेवता हिकारी के अगोरा रइथे। तथे तो मइके के कुकुर ल घलो ससुरार म भाई बरोबर मान गवन करथे। सातो ह मुहांटी म बइठे-बइठे अपन तीजा लेवइया के अगोरा करत बइठे हे। येहु साल आए के आस तो नइ हे फेर का करबे सातो के मन मानबे नइ करय।

अपन दुवार म बइठे सातो ह सबो के लेगईया ल आवत-जावत देखत हे। सातो के मन के लालच के तेलई म मइके के सुरता डबके लागथे। सुरता म चुरत मन फुसुक-फुसुक रो परथे। गोहार पार के रोए म ओकरे फदित्ता होही। बपरी ल कोनो पुछ परही त का बताही। फूफू ह अपन लालच बर सातो के मति बिगाड़े

रिहिस। भाई-बहिनी अउ ननंद-भउजी के नता म जोझा पारे रिहिस। सातो ह मने मन अपन करम ल कोसत आजो तीजा लेवईया अगोरत हे।

सातो ह नहां खोर के बिहनिया ले तियार होगे। अलवा जलवा मुड़ी कोरे लकर-धकर नंदिया खड़ के पिपराही म आके बइठे हे। अवइया जवइया मन ल

गियारा

SCHOOL

ईनाम

जाड़ के दिन म स्कूल जाय बर लइका मन ल गजब मनाय बर लागथे।

बिहनिया ले जागय नहीं। जाग जही त नहाय नहीं अउ नहा लिही त पइसा धरे बिना

टरय नही। एकरे सेती तो कुंती ह किसन ल रोजे ठठाथे। मनायेक ल मनाथे घलो

नइच मानही त नंगत दोहनथे। दाई-ददा ह नइ पढ़े हन त का हागे फेर लइका ल

पढ़ाबो किके गजब साध मरथे। हजार नखरा करही तबले मनाके स्कूल पठोथे।

किसन के रोज के इही रोना राहे।

कुंती ह बिहनिया सबले आगू उठ के चुल्हा ल लिपही तेकर पाछु पानी भरही। तेकर पाछु किसन अउ ओकर ददा ल उठाथे। उठते साठ दूनों झन ल चाहा होना। किसन ह दाई चाहा देना काहते काहत उटथे। कुंती किथे मैं तोर बर चाहा लावथव ते जा के मुंह आंखी धो के आ जा। किसन बिना मुंह आंखी धोय चाहा म दतगे। ओकर ददा किथे ले काही नइ होय देदे। पी के धो लिही लइका जात ताए। कुंती किथे अइसने किके लइका ल मुड़ी म चघाय हस। देखबे अब नहाय बर कतका नखरा लगाही तेला।

सहिच म ए लइका बड़ घेक्खर हे। हव कही त हव नहीं त नहीच हे। किथे न अप्पत के देखे देवता हारे तइसने बरोबर कुंती ह किसन ले हार जथे। स्कूल के बेरा होगे किके सबे काम ल छोड़ के आगू ओकरे तियारी करथे। नहवा-खोरा के कपड़ा लत्ता पहिरा के ओला स्कूल अमरा के आथे तेकर पाछु घर के अंगना दुवारी ल बाहरथे। कोठा-कुरिया के गोबर-चिखल ल हेरही। कभू ओकर दाई पाके लेगे कभू ओर ददा ह सइकिल म चघा के लेगे। तिसरी कलास म आगे हवय तब ले

 

 

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