भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
28 दिसंबर, 1885 को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई।
इसकी स्थापना ए.ओ. ह्यूम, दादाभाई नौरोजी और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे भारतीय नेताओं और ब्रिटिश अधिकारियों के एक समूह द्वारा की गई थी।
इसका उद्देश्य भारतीयों के राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के लिए लड़ना था।
प्रारंभ में, कांग्रेस एक उदारवादी संगठन था, जो ब्रिटिश शासन के भीतर सुधारों की मांग करता था।
बंगाल का विभाजन
1905 में, ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा के लिए बंगाल प्रांत को दो भागों में विभाजित करने का निर्णय लिया।
इस निर्णय ने बंगालियों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया, जिन्होंने इसे “बंगाल भंग” कहा।
विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कांग्रेस और गरम दल के नेताओं ने किया, जिनमें बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और अरबिंदो घोष शामिल थे।
इस आंदोलन ने स्वदेशी आंदोलन और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को जन्म दिया।
स्वदेशी आंदोलन
बंगाल के विभाजन के विरोध में, कांग्रेस और गरम दल के नेताओं ने स्वदेशी आंदोलन शुरू किया।
इसका उद्देश्य ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करना और भारतीय वस्तुओं को बढ़ावा देना था।
आंदोलन में लोगों को विदेशी कपड़ों को त्यागने, स्वदेशी मिलों में काटे गए कपड़े पहनने और ब्रिटिश स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
स्वदेशी आंदोलन स्वराज (स्वशासन) के लिए बढ़ते संघर्ष का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव:
इसने भारतीयों में राष्ट्रवादी भावना को बढ़ाया।
इसने ब्रिटिश सरकार को बंगाल के विभाजन को वापस लेने के लिए मजबूर किया।
इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया।
इसने कांग्रेस और गरम दल के बीच विभाजन को जन्म दिया।
यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत की स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण संगठन थी। यह 1885 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन का एक हिस्सा के रूप में ब्रिटिश भारत के विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं द्वारा मुंबई में स्थापित की गई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय जनता को एक स्थायी प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करना था जिससे वे अपने अधिकारों की मांग कर सकें।
बंगाल का विभाजन:
बंगाल का विभाजन 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया था। इसमें बंगाल प्रांत को दो अलग-अलग प्रांतों में विभाजित किया गया था – पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल। इस निर्णय का प्रमुख उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा देना था। इसके परिणामस्वरूप, भारतीयों में विरोध और विभाजन का आंदोलन चला, जिसने बंगाल के विभाजन को रद्द कर दिया।
स्वदेशी आंदोलन:
स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पहलू था। यह आंदोलन 1905 में बंगाल के विभाजन के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ और ब्रिटिश शासन के विरोध में शुरू किया गया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश वस्त्रों के विरुद्ध हिंदी और स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करना और उनके बजाय भारतीय उत्पादों का प्रचार करना। इस आंदोलन ने भारतीय जनता की एकता को मजबूत किया और स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनाया।
साम्प्रदायिकता का उदय एवं विकास, क्रांतिकारी आन्दोलन, होमरूल आन्दोलन, गांधीवादी आन्दोलन, फुल जानकारी साम्प्रदायिकता का उदय एवं विकास
परिभाषा:
साम्प्रदायिकता एक ऐसी विचारधारा है जो धार्मिक या जातीय मतभेदों के आधार पर समुदायों को विभाजित करती है, जिससे संघर्ष और हिंसा भड़कती है।
उदय:
19वीं सदी के अंत में साम्प्रदायिकता का उदय हुआ, जिसका कारण औपनिवेशिक शासन की “फूट डालो और राज करो” नीति थी।
ब्रिटिशों ने विभिन्न समुदायों के बीच प्रतिनिधित्व और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया।
सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों ने भी समुदायों के बीच तनाव को जन्म दिया।
विकास:
20वीं सदी की शुरुआत में साम्प्रदायिकता एक संगठित राजनीतिक ताकत बन गई।
मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा जैसे संगठनों ने सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काया।
भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण ने साम्प्रदायिकता को और भी गहरा कर दिया।
क्रांतिकारी आन्दोलन
परिभाषा:
क्रांतिकारी आंदोलन एक ऐसा आंदोलन है जो हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का उपयोग करके राजनीतिक परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।
भारत में क्रांतिकारी आंदोलन:
19वीं सदी के उत्तरार्ध में क्रांतिकारी आंदोलन का उदय हुआ।
इसने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से हिंसक रणनीति अपनाई।
प्रमुख क्रांतिकारी समूह थे:
अनुशीलन समिति
गदर पार्टी
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
होमरूल आंदोलन
परिभाषा:
होमरूल आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसने भारत के लिए ब्रिटिश शासन के भीतर आंशिक स्वायत्तता या “होम रूल” की मांग की।
भारत में होमरूल आंदोलन:
1916 में आयरलैंड में होमरूल की मांग से प्रेरित होकर भारत में होमरूल आंदोलन शुरू हुआ।
बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट जैसे नेताओं ने इसके नेतृत्व किया।
आंदोलन का उद्देश्य भारत के लिए एक संवैधानिक विधानसभा और स्वशासन था।
गांधीवादी आंदोलन
परिभाषा:
गांधीवादी आंदोलन एक ऐसा अहिंसक आंदोलन था जिसने महात्मा गांधी के सिद्धांतों और रणनीतियों का पालन किया।
भारत में गांधीवादी आंदोलन:
1915 में वापस भारत लौटने के बाद गांधी ने गांधीवादी आंदोलन का नेतृत्व किया।
इस आंदोलन ने अहिंसा, सविनय अवज्ञा और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया।
प्रमुख गांधीवादी आंदोलन थे:
असहयोग आंदोलन (1920-22)
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34)
भारत छोड़ो आंदोलन (1942-47)
साम्प्रदायिकता का उदय एवं विकास:
साम्प्रदायिकता का उदय और विकास भारतीय समाज में विभाजन और संघर्ष का एक प्रमुख कारक रहा है। यह विभाजन धार्मिक, जातिगत, और सांस्कृतिक आधारों पर होता था और अक्सर राजनीतिक आंदोलनों का मुख्य कारक बनता रहा है।
क्रांतिकारी आंदोलन:
क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उदाहरणों में से एक था। इसमें भारतीयों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ उत्तेजना और विरोध प्रकट किया। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सत्ता को भारत से बाहर निकालना था। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं: सेपोय क्रांति, 1857 की क्रांति, और भारतीय राष्ट्रीय सेना के साथ महात्मा गांधी के आन्दोलन।
होमरूल आंदोलन:
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटक था। इसमें भारतीय नागरिकों ने ब्रिटिश राज के विरोध में विद्यमान होमरूल व्यवस्था का विरोध किया। इस आंदोलन के तहत, भारतीयों ने ब्रिटिश वस्त्रों का अंतिम सामूहिक उपयोग किया और उनके खिलाफ बाजार बंद किए।
गांधीवादी आंदोलन:
गांधीवादी आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था अहिंसा, सत्याग्रह, और सामंजस्य के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ना। इस आंदोलन का प्रमुख उदाहरण हैं: असहायवाद, नमक क्रांति, खिलाफत आंदोलन, और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन। गांधीवादी आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया और अंततः 1947 में भारत की स्वतंत्रता की राह दर्शाई।
भारत छोड़ो आंदोलन, मजदूर किसान एवं आदिवासी आआंदोलन, दलितों में सुधार आंदोलन, फुल जानकारी भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
पृष्ठभूमि:
दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन का कमजोर होना
क्रिप्स मिशन की विफलता
महात्मा गांधी का “अभी या कभी नहीं” का आह्वान
उद्देश्य:
ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करना
स्वराज की मांग करना
नेतृत्व:
महात्मा गांधी
जवाहरलाल नेहरू
सरदार वल्लभभाई पटेल
आंदोलन की रणनीति:
अहिंसक असहयोग
नागरिक अवज्ञा
हड़तालें और विरोध प्रदर्शन
प्रभाव:
बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ और दमन
राष्ट्रवाद का उदय और ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण मोड़
मजदूर किसान एवं आदिवासी आंदोलन (1920-1940)
पृष्ठभूमि:
औद्योगीकरण और कृषि में परिवर्तन
मजदूरों, किसानों और आदिवासियों का शोषण
उद्देश्य:
न्यूनतम वेतन, बेहतर कामकाजी परिस्थितियों और भूमि अधिकारों की मांग करना
सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दूर करना
नेतृत्व:
एन. एम. जोशी
साहनीदेव
तिलका मांझी
आंदोलन की रणनीति:
हड़तालें, जुलूस और विरोध प्रदर्शन
राजनीतिक दलों और ट्रेड यूनियनों का गठन
प्रभाव:
मजदूरों और किसानों के लिए अधिकारों का विस्तार
सामाजिक चेतना का उदय
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहयोगी शक्ति
दलितों में सुधार आंदोलन (19वीं और 20वीं शताब्दी)
पृष्ठभूमि:
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जाति व्यवस्था और छुआछूत
दलितों (अछूतों) का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हाशिए पर होना
उद्देश्य:
छुआछूत का उन्मूलन
दलितों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान
राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति
नेतृत्व:
ज्योतिबा फुले
डॉ. आंबेडकर
एम. के. गांधी
आंदोलन की रणनीति:
शिक्षा, स्वरोजगार और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना
राजनीतिक संगठनों का गठन
कानूनी और संवैधानिक उपायों की वकालत
प्रभाव:
छुआछूत का आंशिक उन्मूलन
शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक दलितों की पहुँच में वृद्धि
भारत के संविधान में दलितों के लिए सुरक्षा उपायों का समावेश
भारत छोड़ो आंदोलन:
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस आंदोलन को महात्मा गांधी ने नेतृत्व किया। यह आंदोलन 1942 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आरंभ किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत की पूरी स्वतंत्रता की मांग करना और ब्रिटिश सत्ता को भारत छोड़ने के लिए प्रेरित करना। यह आंदोलन गांधीवादी तकनीकों का एक अच्छा उदाहरण था जिसमें अहिंसा, सत्याग्रह, और सामंजस्य का प्रयोग किया गया।
मजदूर, किसान, और आदिवासी आंदोलन:
भारत में मजदूर, किसान, और आदिवासी आंदोलन विभिन्न समयों में होते रहे हैं और अपने अधिकारों की मांग करते रहे हैं। ये आंदोलन उनके जीवन के उच्चाधिकारों, भूमि, और सामाजिक स्थिति के लिए लड़ते हैं। उनकी मुख्य मांगें बेहतर कामकाजी शर्तें, उचित मूल्य और न्याय, और अपनी सामाजिक स्थिति के लिए समानता होती हैं।
दलितों में सुधार आंदोलन:
दलितों में सुधार आंदोलन भारत में दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ा जाने वाला संघर्ष था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था दलितों को समाज में समानता, न्याय, और सम्मान का अधिकार प्रदान करना। इस आंदोलन के दौरान विभिन्न दलित समुदायों ने अपने अधिकारों की मांग की और अन्याय के खिलाफ विरोध किया। भारत में अनेक दलित आंदोलनों ने समाज में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मुस्लिमों में सुधार:
मुस्लिमों में सुधार की प्रक्रिया भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण और लंबे समय तक चलने वाले प्रक्रिया रही है। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी मुस्लिम समुदाय ने अपने अधिकारों की मांग की और देश के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई।
अलीगढ़ आंदोलन:
अलीगढ़ आंदोलन 1920 में आल इंडिया मुस्लिम एडुकेशन कांग्रेस के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था मुस्लिम समुदाय के शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करना।
आजाद हिन्द फौज:
आजाद हिन्द फौज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुस्लिमों के द्वारा बनाई गई थी। इसमें मुस्लिम सैनिकों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी और भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया।
स्वतंत्रता और भारत का विभाजन:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उत्तरार्ध में, 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इससे पहले भारत का विभाजन किया गया। इस प्रक्रिया को द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने शुरू किया। विभाजन के बाद, भारत को दो अलग-अलग राष्ट्रों में विभाजित किया गया – भारत और पाकिस्तान। इस विभाजन के दौरान भारतीय समुदायों के बीच हिंसात्मक दंगे हुए और लाखों लोगों की हत्या हुई।
रियासतों का विलीनीकरण:
रियासतों का विलीनीकरण भारत में स्वतंत्रता संग्राम के बाद शुरू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय गणराज्य के रूप में भारत को एकीकृत करना। इस कार्यक्रम के अंतर्गत, भारतीय राज्यों को संघ के साथ मिलाया गया और उन्हें भारतीय संविधान के अनुसार पुनर्गठित किया गया।