भारत का संविधानिक विकास (1773-1950)
1773: रेगुलेटिंग एक्ट
भारत में ब्रिटिश शासन का पहला लिखित संविधान।
वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का पहला गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।
एक केंद्रीय सरकार की स्थापना की गई जिसे सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडीकेचर कहा जाता है।
1781: करनवालिस सुधार
न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग किया गया।
जिला और प्रभागीय न्यायालयों की स्थापना की गई।
1793: परमानेंट सेटलमेंट
बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि राजस्व निश्चित किया गया।
जमींदारों को भूमि का स्थायी स्वामित्व दिया गया।
1833: चार्टर अधिनियम
ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया।
भारत में एक कानून आयोग की स्थापना की गई।
भारतीय सिविल सेवा की स्थापना की गई।
1857: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक विद्रोह जिसने संविधानिक सुधारों की मांग की।
1858: भारत सरकार अधिनियम
ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित की गई।
भारत के लिए एक राज्य सचिव और एक भारतीय परिषद की नियुक्ति की गई।
1861: भारतीय परिषद अधिनियम
भारतीय परिषद के पास कानून बनाने की सीमित शक्तियाँ थीं।
गैर-सरकारी सदस्यों को परिषद में नियुक्त किया गया था।
1909: भारतीय परिषद अधिनियम (मॉर्ले-मिंटो सुधार)
मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना की गई।
केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में वृद्धि की गई।
1919: भारतीय सरकार अधिनियम (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार)
द्वि-शासन की प्रणाली लागू की गई, जिसमें कुछ विषयों को केंद्र द्वारा और अन्य को प्रांतों द्वारा नियंत्रित किया गया।
केंद्रीय विधानसभा और प्रांतीय विधानसभाओं का आकार बढ़ाया गया और उनमें निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाई गई।
1935: भारतीय सरकार अधिनियम
प्रांतीय स्वायत्तता प्रदान की गई।
अखिल भारतीय संघ की रूपरेखा तैयार की गई।
एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।
1946: भारतीय राष्ट्रीय सेना के मुकदमे
स्वतंत्रता सेनानियों के मुकदमे ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी भावना को बढ़ा दिया।
1947: भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
भारत दो स्वतंत्र देशों, भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया।
1949: संविधान सभा द्वारा संविधान का मसौदा तैयार किया गया
एक निर्वाचित संविधान सभा ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया।
26 नवंबर, 1949: संविधान को अपनाया गया
संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया।
26 जनवरी, 1950: संविधान लागू हुआ
भारत एक गणतंत्र बना और संविधान लागू हुआ।
मुस्लिमों में सुधार:
मुस्लिमों में सुधार की प्रक्रिया भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण और लंबे समय तक चलने वाले प्रक्रिया रही है। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी मुस्लिम समुदाय ने अपने अधिकारों की मांग की और देश के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई।
अलीगढ़ आंदोलन:
अलीगढ़ आंदोलन 1920 में आल इंडिया मुस्लिम एडुकेशन कांग्रेस के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था मुस्लिम समुदाय के शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करना।
आजाद हिन्द फौज:
आजाद हिन्द फौज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुस्लिमों के द्वारा बनाई गई थी। इसमें मुस्लिम सैनिकों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी और भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया।
स्वतंत्रता और भारत का विभाजन:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उत्तरार्ध में, 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इससे पहले भारत का विभाजन किया गया। इस प्रक्रिया को द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने शुरू किया। विभाजन के बाद, भारत को दो अलग-अलग राष्ट्रों में विभाजित किया गया – भारत और पाकिस्तान। इस विभाजन के दौरान भारतीय समुदायों के बीच हिंसात्मक दंगे हुए और लाखों लोगों की हत्या हुई।
रियासतों का विलीनीकरण:
रियासतों का विलीनीकरण भारत में स्वतंत्रता संग्राम के बाद शुरू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय गणराज्य के रूप में भारत को एकीकृत करना। इस कार्यक्रम के अंतर्गत, भारतीय राज्यों को संघ के साथ मिलाया गया और उन्हें भारतीय संविधान के अनुसार पुनर्गठित किया गया।
भारत का संविधानिक विकास 1773 से 1950 तक का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि इस अवधि में भारत के संविधान के निर्माण का मार्ग तय हुआ। यहां भारत के संविधानिक विकास की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है:
- 1773: पर्लियामेंट ने प्रथम पिट्स भारतीय कानून को पारित किया, जिससे वह ब्रिटिश प्रशासन द्वारा भारत पर कानूनी नियंत्रण स्थापित कर सके।
- 1858: भारत को सीपी डी आयुक्त और भारतीय दरबार के अधिकारी के रूप में विभाजित किया गया और ब्रिटिश राज का प्रारम्भ किया गया।
- 1909: मोर्ली-मिंटो की सुधारात्मक योजना के अनुसार, भारत में एक निर्वाचन प्रणाली की स्थापना की गई।
- 1919: मोंटेग्यू-चेल्म्स आयोग की रिपोर्ट के आधार पर, मोंटेग्यू-चेल्म्स सुधार प्रस्ताव पारित किया गया, जिसने भारत में प्राथमिक स्वराज्य के अधिकार को स्थापित किया।
- 1935: भारतीय संविधान का प्रस्तावित आयोग की रिपोर्ट के आधार पर, भारतीय संविधान अधिनियम 1935 पारित किया गया, जिससे भारत में प्राथमिक स्वराज्य की योजना लागू हो गई।
- 1947: भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, और ब्रिटिश शासन का समापन हुआ।
- 1948-49: भारतीय संविधान सभा का गठन किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान का निर्माण करना था।
- 1949: भारतीय संविधान अप्रूवल हुआ और 26 नवंबर, 1949 को संविधान की धारा 395 (आ) के अनुसार, यह संविधान शक्ति प्राप्त हुआ।
- 1950: भारतीय संविधान राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो गया, और भारतीय संघ गणराज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही, भारत गणराज्य का उद्घाटन हुआ।
यह भारत के संविधानिक विकास का संक्षिप्त इतिहास है, जिसमें विभिन्न चरणों और घटनाओं के माध्यम से भारतीय संविधान का निर्माण और लागू होना दिखाया गया है।
संविधान का निर्माण एवं मूल विशेषताएं, प्रस्तावना, संविधान की प्रकृति, मूलभूत अधिकार और कर्तव्य, फुल जानकारी संविधान का निर्माण और मूल विशेषताएं
भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। संविधान का निर्माण एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, जो 1946 में संविधान सभा के गठन से शुरू हुई थी।
संविधान की मूल विशेषताओं में शामिल हैं:
लिखित और व्यापक: यह एक लिखित दस्तावेज़ है जो सरकार के सभी पहलुओं को कवर करता है।
सर्वोच्च कानून: यह देश का सर्वोच्च कानून है, और सभी अन्य कानूनों को इससे मेल खाना चाहिए।
लचीला और कठोर: इसमें संशोधन के विभिन्न प्रावधान हैं, जिससे इसे समय के साथ अनुकूलित किया जा सकता है, लेकिन कुछ प्रावधान संशोधन से परे हैं।
धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक: यह किसी भी धर्म की स्थापना नहीं करता है और सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है।
संघीय ढांचा: यह देश को राज्यों के एक संघ के रूप में स्थापित करता है, प्रत्येक राज्य की अपनी सरकार होती है।
प्रस्तावना
संविधान की प्रस्तावना इसके मूल उद्देश्यों और लक्ष्यों को व्यक्त करती है:
एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य स्थापित करना
न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देना
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र सुरक्षित करना
एकता और अखंडता बनाए रखना
संविधान की प्रकृति
भारतीय संविधान को आमतौर पर अर्ध-संघीय माना जाता है, जिसमें केंद्र सरकार के पास कुछ शक्तियां होती हैं और राज्य सरकारों के पास अन्य शक्तियां होती हैं। हालाँकि, केंद्र सरकार को संविधान पर सर्वोच्च सत्ता का अधिकार है।
मूलभूत अधिकार और कर्तव्य
संविधान नागरिकों को निम्नलिखित मूलभूत अधिकार प्रदान करता है:
समता का अधिकार: सभी नागरिकों को समान रूप से कानून के समक्ष माना जाना चाहिए।
स्वतंत्रता का अधिकार: अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सभा और आंदोलन की स्वतंत्रता, किसी भी संघ या संघ बनाने की स्वतंत्रता, और निवास करने और स्थापित होने की स्वतंत्रता।
शोषण के विरुद्ध अधिकार: बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम पर प्रतिबंध।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: सभी नागरिकों को अपने धर्म का अभ्यास करने की स्वतंत्रता है।
शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकार: सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, और सभी नागरिकों को अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा करने का अधिकार है।
संविधान नागरिकों पर कई कर्तव्यों को भी थोपता है, जिनमें शामिल हैं:
संविधान और कानूनों का पालन करना
राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना
अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना
सहिष्णुता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना
पर्यावरण की रक्षा करना
संविधान का निर्माण एवं मूल विशेषताएं:
- प्रस्तावना:
संविधान का निर्माण भारतीय संविधान सभा द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, सामाजिक, धार्मिक, और न्यायप्रिय समाज की नींव रखना था।
- संविधान की प्रकृति:
भारतीय संविधान का मूल स्वरूप एक संघीय गणराज्य का है, जो एक संघ राज्य (केंद्र) और राज्य राज्यों (राज्य) के संघ में विभाजित है। इसमें विभिन्न संविधानिक निर्णयों के लिए विभाजन विधि का उपयोग किया जाता है।
- मूलभूत अधिकार और कर्तव्य:
भारतीय संविधान में नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख है। इसमें मौलिक अधिकार जैसे कि स्वतंत्रता, भाषा, धर्म, संगठन, और जीवन के अन्य पहलुओं के साथ-साथ सामाजिक और नागरिक कर्तव्यों के लिए भी मार्गदर्शन दिया गया है।
- संविधान के अन्य विशेषताएं:
भारतीय संविधान की अन्य विशेषताएं में उसका सामाजिक और आर्थिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, गणराज्यीय लोकतंत्र, स्वतंत्रता के सिद्धांत, न्यायप्रणाली के माध्यम से न्याय, और समर्थन और उत्थान के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के साथ-साथ मानवीय और मौलिक अधिकारों का समावेश है।
इस प्रकार, भारतीय संविधान का निर्माण एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और समर्थनशील गणराज्य के लिए एक संघीय संविधान के रूप में किया गया था।
राज्य नीति के निर्देशक तत्व, संघीय कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका।फुल जानकारी राज्य नीति के निर्देशक तत्व (DPSP)
भार राज्य नीति के निर्देशक तत्व (DPSP)
भारतीय संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य नीति के निर्देशक तत्व वर्णित हैं। ये ऐसे निर्देश हैं जो राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं कि सरकार देश के नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करती है। ये निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन यह अपेक्षा की जाती है कि राज्य इन्हें लागू करने के लिए उचित कदम उठाएगा।
DPSP के प्रमुख बिंदु:
गरीबी और असमानता को दूर करना
कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देना
श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित करना
शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
पर्यावरण की रक्षा
महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा
संघीय कार्यपालिका
भारतीय संविधान में संघीय कार्यपालिका की अध्यक्षता राष्ट्रपति करता है। राष्ट्रपति को संसद द्वारा निर्वाचित किया जाता है और एक नाममात्र का प्रमुख होता है। कार्यकारी शक्ति का वास्तविक अभ्यास प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है।
संघीय कार्यपालिका की प्रमुख शक्तियाँ:
कानून बनाने और लागू करने के लिए।
विदेश नीति का संचालन करना।
सशस्त्र बलों की कमान।
आपात स्थितियों की घोषणा करना।
न्यायाधीशों और राजनयिकों की नियुक्ति करना।
व्यवस्थापिका
भारतीय संसद संघीय व्यवस्थापिका है। इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (निचला सदन) और राज्य सभा (ऊपरी सदन)। संसद कानून बनाने और सरकार की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार है।
व्यवस्थापिका की प्रमुख शक्तियाँ:
कानून बनाना।
सरकार पर बहस करना और उसकी निगरानी करना।
बजट पास करना।
संवैधानिक संशोधन पारित करना।
राष्ट्रपति का चुनाव करना।
न्यायपालिका
भारतीय न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों की एक प्रणाली है। सुप्रीम कोर्ट भारत का सर्वोच्च न्यायालय है और संविधान की व्याख्या करने के लिए जिम्मेदार है।
न्यायपालिका की प्रमुख शक्तियाँ:
कानूनों की व्याख्या करना।
विवादों का समाधान करना।
सरकार के कार्यों की न्यायिक समीक्षा करना।
मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
राज्य नीति के निर्देशक तत्व, संघीय कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका:
- **राज्य नीति के निर्देशक तत्व (Legislature)**:
यह तत्व वह संस्था होती है जो नवीन कानूनों की निर्माण करने की प्रक्रिया को संचालित करती है। इसमें लोकसभा और राज्य सभा शामिल होते हैं। लोकसभा जनता के प्रतिनिधित्व करती है जबकि राज्य सभा राज्यों के प्रतिनिधित्व करती है।
- **संघीय कार्यपालिका (Executive)**:
यह तत्व सरकारी नीतियों और कानूनों को अमल में लाने और संचालित करने की जिम्मेदारी संभालता है। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और मंत्रिपरिषद् शामिल होते हैं।
- **व्यवस्थापिका (Judiciary)**:
यह तत्व न्यायपालिका की जिम्मेदारी संभालता है। इसका मुख्य कार्य न्याय प्रदान करना, कानूनों की व्याख्या करना, और संविधान के प्रावधानों का पालन करना है। सर्वोच्च न्यायालय इसका मुख्य अंग होता है, जिसके साथ राज्यों में उच्च न्यायालय भी होते हैं।
भारतीय संविधान में यह तीनों तत्व बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो सरकारी कार्यक्रमों को संचालित करते हैं, कानूनों को बनाते हैं, और न्याय प्रदान करते हैं। इन तीनों के तत्वों का सहयोग संविधान के सामान्य निर्देशक तत्व की प्रारूपात्मक एवं संविधानिक स्वरूप की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संविधानिक उपचार का अधिकार, जनहित याचिकाएं, न्यायिक सक्रियता, न्यायिक पुनर्विलोकन, महान्यायवादी। राज्य कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका, महाधिवक्ता। संघ राज्य संबंध-विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय। फुल जानकारी संविधानिक उपचार का अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का अधिकार देता है। इसे “संविधानिक उपचार का अधिकार” भी कहा जाता है।
जनहित याचिकाएं
जनहित याचिकाएं ऐसे मुकदमे हैं जो जनता के हित के मामले में दायर किए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति या संगठन जनहित याचिका दायर कर सकता है।
न्यायिक सक्रियता
न्यायिक सक्रियता वह सिद्धांत है जिसके तहत न्यायपालिका सामाजिक परिवर्तन और अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाती है।
न्यायिक पुनर्विलोकन
न्यायिक पुनर्विलोकन न्यायपालिका की वह शक्ति है जिसके द्वारा वह कार्यकारी और विधायी शाखाओं के कार्यों की समीक्षा और रद्द कर सकती है।
महान्यायवादी
महान्यायवादी भारत सरकार का सर्वोच्च कानूनी अधिकारी होता है। वह सरकार को कानूनी सलाह देता है और सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
राज्य कार्यपालिका
राज्य कार्यपालिका राज्य की सरकार है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है।
व्यवस्थापिका
व्यवस्थापिका राज्य की विधायी शाखा है, जो कानून बनाती है।
न्यायपालिका
न्यायपालिका राज्य की न्यायिक शाखा है, जो कानूनों की व्याख्या करती है और विवादों का समाधान करती है।
महाधिवक्ता
महाधिवक्ता राज्य सरकार का सर्वोच्च कानूनी अधिकारी होता है। वह सरकार को कानूनी सलाह देता है और उच्च न्यायालय में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
संघ राज्य संबंध
संघ राज्य संबंध केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच संबंध हैं। ये संबंध विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में विभाजित हैं।
विधायी संबंध: केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों ही विधायी शक्तियां रखती हैं, लेकिन कुछ विषय संविधान के तहत विशेष रूप से केंद्र या राज्यों को दिए गए हैं।
प्रशासनिक संबंध: केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्रशासनिक शक्तियां साझा करती हैं। कुछ क्षेत्रों में, केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में राज्य सरकारों का नियंत्रण होता है।
वित्तीय संबंध: केंद्र सरकार और राज्य सरकारें वित्तीय संसाधनों को साझा करती हैं। केंद्र सरकार राज्यों को कर राजस्व का एक हिस्सा देती है और राज्य अपनी आय के स्रोत भी रखते हैं।
संविधानिक उपचार का अधिकार:
संविधानिक उपचार का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत प्रावधानिक है। इसके अनुसार, नागरिक यदि अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं, तो वह उपचार की याचिका कर सकते हैं।
जनहित याचिकाएं:
जनहित याचिकाएं भारतीय न्यायप्रणाली में एक महत्वपूर्ण उपाय हैं। यह विशेष रूप से उन मामलों में प्रयुक्त होती हैं जो जनता के हित में हैं और सामाजिक, आर्थिक, या पर्यावरण से संबंधित हो सकते हैं। जनहित याचिकाएं न्यायिक प्रणाली में समर्थन और न्याय के प्राप्त होने के लिए प्रयास करती हैं।
न्यायिक सक्रियता:
न्यायिक सक्रियता का अधिकार उन न्यायिक निर्णयों के खिलाफ याचिका दायर करने की अनुमति देता है जो अधिकारिक प्राधिकरणों या सरकार के निर्णय के खिलाफ हो सकते हैं।
न्यायिक पुनर्विलोकन:
न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत प्रावधानिक है। इसके अनुसार, एक पक्ष यदि वह किसी न्यायिक निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह उस निर्णय का पुनर्विचार करवा सकता है।
महान्यायवादी:
महान्यायवादी वह व्यक्ति होता है जो न्यायपालिका में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि मुख्य वकील या सोलिसिटर जनरल। इन व्यक्तियों का काम न्यायपालिका की हस्तक्षेप करना और सरकार को कानूनी मामलों में प्रतिनिधित्व करना होता है।
संघ राज्य संबंध-विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय:
संघ राज्य संबंध-विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय नेतृत्व का संघीय कार्यपालिका में महत्वपूर्ण भूम
िका होता है। इन नेताओं की जिम्मेदारी संघ और राज्य सरकारों के बीच संबंधों को समायोजित करना, प्रशासनिक कार्यों का संचालन करना, और वित्तीय नीतियों को निर्धारित करना होता है।
अखिल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग ।फुल जानकारी अखिल भारतीय सेवाएँ (AIS)
अखिल भारतीय सेवाएँ (AIS) भारत सरकार के नौकरशाही ढाँचे का एक अभिन्न अंग हैं। इन सेवाओं की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 312(1) के तहत की गई है, और इनमें शामिल हैं:
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)
भारतीय पुलिस सेवा (IPS)
भारतीय वन सेवा (IFS)
अखिल भारतीय सेवाओं की विशेषताएँ:
पूरे भारत में सेवा
केन्द्रीय सरकार के अधीन
प्रतिष्ठित और चुनौतीपूर्ण कैरियर
प्रशासन और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है जो अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्र सरकार के अन्य समूह ‘A’ और ‘B’ पदों के लिए उम्मीदवारों की भर्ती के लिए जिम्मेदार है।
UPSC की भूमिका:
भर्ती परीक्षाएँ आयोजित करना और उनका मूल्यांकन करना
साक्षात्कारों और व्यक्तित्व परीक्षणों का आयोजन
चयनित उम्मीदवारों की अनुशंसा करना
भर्ती प्रक्रिया की निगरानी और मूल्यांकन
राज्य लोक सेवा आयोग (PSC)
राज्य लोक सेवा आयोग (PSC) प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र संवैधानिक निकाय हैं जो राज्य सरकार के विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों की भर्ती के लिए जिम्मेदार हैं।
PSC की भूमिका:
राज्य सरकार के पदों के लिए भर्ती परीक्षाएँ आयोजित करना और उनका मूल्यांकन करना
साक्षात्कारों और व्यक्तित्व परीक्षणों का आयोजन
चयनित उम्मीदवारों की अनुशंसा करना
भर्ती प्रक्रिया की निगरानी और मूल्यांकन
अखिल भारतीय सेवाओं, UPSC और PSC के बीच संबंध:
UPSC अखिल भारतीय सेवाओं के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित करता है।
संबंधित राज्य PSC राज्य सरकार के पदों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित करते हैं।
UPSC और PSC दोनों साक्षात्कार और व्यक्तित्व परीक्षण आयोजित करते हैं।
UPSC और PSC दोनों चयनित उम्मीदवारों की अनुशंसा करते हैं।
इस प्रकार, अखिल भारतीय सेवाएँ, UPSC और PSC भारत में सिविल सेवाओं में भर्ती और प्रशासन के लिए एक जुड़े हुए ढांचे का निर्माण करते हैं। ये संस्थान सार्वजनिक सेवा में प्रतिभाशाली और योग्य व्यक्तियों का चयन करने और उन्हें प्रशासन और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण हैं।
अखिल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग संबंधित शृंखला के अंतर्गत आते हैं। ये आयोग सरकारी सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करते हैं और उत्तीर्ण उम्मीदवारों को भर्ती के लिए चयन करते हैं। इनका प्राथमिक उद्देश्य सरकारी संस्थानों की क्षमता और प्रभाव को बढ़ावा देना होता है।
- अखिल भारतीय सेवाएं (All India Services):
अखिल भारतीय सेवाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 के तहत प्रावधानिक हैं। इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), और भारतीय विदेश सेवा (IFS) शामिल हैं। ये सेवाएं केंद्र और राज्य सरकारों के लिए काम करती हैं।
- संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission – UPSC):
संघ लोक सेवा आयोग भारत सरकार के अधीनस्थ एजेंसी है जो अखिल भारतीय सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- राज्य लोक सेवा आयोग (State Public Service Commission – SPSC):
राज्य लोक सेवा आयोग राज्य सरकारों के अधीनस्थ एजेंसी हैं जो राज्य की सरकारी सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करते हैं। प्रत्येक राज्य का अपना लोक सेवा आयोग होता है।
ये संघ और राज्य सरकारों के लिए केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारी सेवाओं की बेहतर नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनका काम उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता और कानूनीता में सुनिश्चित करना होता है।
आगे के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं:
- संघ राज्य संबंध-विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय (Inter-State Relations, Administrative, and Financial):
इस श्रेणी में संघ राज्य संबंध, प्रशासनिक और वित्तीय मुद्दे आते हैं जिनमें संघ और राज्य सरकारों के बीच संबंध, अन्तर-राज्य योजनाएं, केंद्रीय सरकारी योजनाओं के प्रभाव, और वित्तीय सहायता शामिल होती है।
- महाधिवक्ता (Attorney General):
महाधिवक्ता भारत सरकार का सबसे उच्च कानूनी उपाध्यक्ष होता है। वह केंद्रीय सरकार की कानूनी सलाहकार होते हैं और सरकारी नीतियों और कानूनी मामलों में सरकार की प्रतिनिधित्व करते हैं।
ये संघ और राज्य सरकारों के बीच संबंधों को समायोजित करने, कानूनी प्रणाली की व्यवस्था करने, और सरकारी सेवाओं को प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये आयोग और आयोगों का कार्य देश की सामर्थ्य और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
आपात् उपबंध, संविधानिक संशोधन, आधारभूत ढांचे की अवधारणा। फुल जानकारी आपात् उपबंध
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 352 से 360 के तहत आपात् उपबंध शामिल हैं, जो कार्यपालिका को देश में आपात स्थितियों से निपटने के लिए विशेष शक्तियां प्रदान करते हैं। ये उपबंध निम्नलिखित तीन प्रकार की आपात स्थितियों की घोषणा की अनुमति देते हैं:
राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352): जब राष्ट्रपति को मानते हैं कि भारत या उसके किसी हिस्से पर बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का खतरा है।
राज्य आपात (अनुच्छेद 356): जब राष्ट्रपति को मानते हैं कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार संचालित करने में असमर्थ है।
वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360): जब राष्ट्रपति को मानते हैं कि भारत या किसी भाग की वित्तीय स्थिरता खतरे में है।
आपातकाल की घोषणा करने से कार्यपालिका को नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित करने, संपत्ति का अधिग्रहण करने, और संविधान के कुछ हिस्सों को निलंबित करने की शक्ति मिलती है। हालाँकि, ये शक्तियां सीमित हैं और उनका उपयोग केवल आपातकाल के दौरान ही किया जा सकता है।
संविधानिक संशोधन
संविधानिक संशोधन संविधान में परिवर्तन और समायोजन हैं। उन्हें संसद द्वारा विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए, और राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होनी चाहिए।
भारतीय संविधान को कई बार संशोधित किया गया है, जिससे समाज की बदलती जरूरतों और परिस्थितियों को पूरा किया गया है। कुछ सबसे महत्वपूर्ण संशोधनों में शामिल हैं:
42वां संशोधन (1976): मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया और कार्यकारी शक्ति को बढ़ाया गया।
44वां संशोधन (1978): संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत स्थापित किया गया।
73वां और 74वां संशोधन (1992): पंचायती राज और नगरपालिका शासन को मजबूत किया गया।
91वां संशोधन (2000): संविधान में मौलिक शिक्षा के अधिकार को जोड़ा गया।
126वां संशोधन (2019): आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया।
आधारभूत संरचना की अवधारणा
आधारभूत संरचना भौतिक और संगठनात्मक सुविधाओं का एक नेटवर्क है जो किसी देश या क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। इसमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
भौतिक आधारभूत संरचना: परिवहन नेटवर्क (सड़क, रेल, हवाई अड्डे), ऊर्जा नेटवर्क (विद्युत ग्रिड, गैस पाइपलाइन), जल वितरण प्रणाली और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली।
संगठनात्मक आधारभूत संरचना: शासन प्रणाली, वित्तीय प्रणाली, शिक्षा प्रणाली और स्वास्थ्य प्रणाली।
एक मजबूत आधारभूत संरचना आर्थिक विकास, नौकरी सृजन और रहन-सहन के स्तर में सुधार का समर्थन करती है। यह देश के अंदर और बाहर लोगों और सामानों के आवागमन की सुविधा भी प्रदान करता है।
भारत सरकार ने आधारभूत संरचना विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। देश में परिवहन, ऊर्जा, जल संसाधन और शहरी विकास में प्रमुख निवेश किए जा रहे हैं।
आपात् उपबंध:
आपात् उपबंध या आपातकालीन उपबंध भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत प्रावधानिक है। इसके अनुसार, यदि देश में आपात स्थिति होती है, जैसे कि भारी आंतरिक या बाह्य दुर्घटना, भारत सरकार को आपात स्थिति के समय में केंद्र सरकार के लिए अत्यधिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य देश की सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना होता है।
संविधानिक संशोधन:
संविधानिक संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रावधानिक है। इसके अनुसार, संविधान को संशोधित किया जा सकता है जिसके लिए केंद्रीय और राज्य संसदों में विशेष बहस और उपचारित अधिसूचना की आवश्यकता होती है। संविधानिक संशोधन के माध्यम से नई प्रावधानिक विशेषताओं को जोड़ा जा सकता है या मौजूदा प्रावधानिक को संशोधित किया जा सकता है।
आधारभूत ढांचे की अवधारणा:
आधारभूत ढांचे भारतीय संविधान में समर्थित नीतियों और मूल्यों का मौलिक सेट होते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय संघ के विकास और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इन ढांचों में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, भारतीय समाज की भिन्नता का सम्मान, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा शामिल होती है। आधारभूत ढांचे भारतीय संविधान के मूल तत्व होते हैं जो राष्ट्र के संघर्षों, विकास के मार्ग, और संविधान के प्राधान्य को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।