छत्तीसगढ़ शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक और संसदीय प्रणाली पर आधारित है, जिसमें तीन अंग होते हैं:
व्यवस्थापिका: विधान सभा, जो राज्य के कानून बनाने वाली इकाई है।
कार्यपालिका: राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद, जो राज्य को प्रशासित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
न्यायपालिका: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, जो राज्य का सर्वोच्च न्यायालय है और जिले की अदालतें।
लोक प्रशासन
अर्थ:
लोक प्रशासन सार्वजनिक मामलों का प्रबंधन और राजनीतिक निर्णयों का कार्यान्वयन है। यह नागरिकों को सेवाएं प्रदान करना, कानूनों को लागू करना और सार्वजनिक नीति को लागू करना भी शामिल करता है।
क्षेत्र:
लोक प्रशासन के क्षेत्र में शामिल हैं:
सरकारी एजेंसियां और विभाग
सार्वजनिक उद्यम
गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ)
अंतरराष्ट्रीय संगठन
प्रकृति:
लोक प्रशासन की प्रकृति है:
सार्वजनिक: यह नागरिकों को सेवा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
राजनीतिक रूप से प्रभावित: यह राजनीतिक निर्णयों से प्रभावित होता है।
जटिल: इसमें विभिन्न हितधारकों और प्रक्रियाओं का प्रबंधन शामिल है।
स्थितिजन्य: यह विभिन्न संदर्भों और स्थितियों के अनुकूल होता है।
महत्व:
लोक प्रशासन निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
यह नागरिकों को आवश्यक सेवाएं प्रदान करता है।
कानूनों और नीतियों को लागू करके सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखता है।
आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देता है।
भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को रोकता है।
नागरिकों की आवाज सरकार तक पहुंचाता है।
छत्तीसगढ़ शासन की व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका के बारे में जानकारी के साथ, छत्तीसगढ़ के लोक प्रशासन के अर्थ, क्षेत्र, प्रकृति, और महत्व के बारे में निम्नलिखित विवरण हैं:
- छत्तीसगढ़ शासन की व्यवस्थापिका:
- राज्यपाल (Governor): छत्तीसगढ़ राज्य का राज्यपाल भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। राज्यपाल राज्य के सर्वोच्च कार्यकारी पदाधिकारी होते हैं।
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मुख्यमंत्री (Chief Minister): मुख्यमंत्री राज्य के नाम पर चुने जाते हैं और राज्य की कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं।
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परिषद नेता (Council of Ministers): मुख्यमंत्री के नेतृत्व में उनके साथ मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य होते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों के मंत्रालयों के प्रमुख होते हैं।
- छत्तीसगढ़ कार्यपालिका (Executive):
- कार्यपालिका राज्य सरकार की निष्पादनशील शाखा होती है, जो नियमित सरकारी काम को निष्पादित करती है। इसमें संविधान के अनुसार कार्यरत होते हैं।
- छत्तीसगढ़ न्यायपालिका (Judiciary):
- छत्तीसगढ़ न्यायपालिका विभाग न्याय की संविधानिक शाखा होती है। यह सुनिश्चित करती है कि कानूनी प्रावधानों का पालन किया जाता है और न्याय की प्रदान की जाती है।
- छत्तीसगढ़ के लोक प्रशासन का अर्थ, क्षेत्र, प्रकृति, और महत्व:
- अर्थ: छत्तीसगढ़ का लोक प्रशासन उसके विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। यह सरकारी सेवाओं को प्रबंधित करने, विकास कार्यों को निष्पादित करने, और न्याय प्रदान करने में संलग्न होता है।
– क्षेत्र: छत्तीसगढ़ शासन का क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य की सीमाओं के अनुसार होता है।
- प्रकृति: छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक सौंदर्य और जलवायु उत्तर भारतीय राज्यों में प्रसिद्ध हैं। यहाँ की अद्वितीय प्राकृतिक संपदा का संरक्षण और विकास महत्वपूर्ण है।
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महत्व: छत्तीसगढ़ के लोक प्रशासन का महत्व विकास और समृद्धि के माध्यम से राज्य की जनता के जीवन को सुधारने में और सरकारी सेवाओं के प्रभावी प्रदान करने में है। यहाँ की सरकार स्थानीय जनता के विकास और कल्याण के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों का अनुसरण करती है।
उदारीकरण के अधीन लोक प्रशासन और निजी प्रशासन । नवीन लोक प्रशासन, विकास प्रशासन व तुलनात्मक लोक प्रशासन। लोक प्रशासन में नए आयाम। राज्य बनाम बाजार। उदारीकरण के अधीन लोक प्रशासन और निजी प्रशासन
उदारीकरण की नीतियों ने लोक और निजी क्षेत्रों के बीच की सीमाओं को धुंधला कर दिया है।
लोक प्रशासन: उदारीकरण के बाद, लोक प्रशासन को अधिक निजी क्षेत्र की प्रथाओं और तकनीकों को अपनाने के लिए मजबूर किया गया है, जैसे कि ग्राहक-केंद्रितता, जवाबदेही और दक्षता।
निजी प्रशासन: निजी संगठनों ने लोक सेक्टर से कुछ जिम्मेदारियों को संभाला है, जैसे सार्वजनिक सेवाओं का प्रावधान और विनियमन।
नवीन लोक प्रशासन, विकास प्रशासन और तुलनात्मक लोक प्रशासन
नवीन लोक प्रशासन: 1980 के दशक में उभरा एक दृष्टिकोण जो बाजार आधारित और उद्यमशीलता सिद्धांतों पर जोर देता है। यह नवाचार, जवाबदेही और नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देता है।
विकास प्रशासन: कम विकसित देशों में प्रशासन के अध्ययन पर केंद्रित एक दृष्टिकोण जो आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के तरीकों का पता लगाता है।
तुलनात्मक लोक प्रशासन: विभिन्न देशों के प्रशासन प्रणालियों की तुलना करता है, उनकी ताकत और कमजोरियों की पहचान करता है और सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करता है।
लोक प्रशासन में नए आयाम
सूचना प्रौद्योगिकी: प्रौद्योगिकी लोक प्रशासन को बदल रही है, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने, नागरिकों से जुड़ने और सेवाओं को अधिक सुलभ बनाने में मदद करती है।
नागरिक जुड़ाव: नागरिक अब प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अधिक शामिल हो रहे हैं, निर्णय लेने में भाग ले रहे हैं और सेवाओं की मांग कर रहे हैं जो उनकी जरूरतों को पूरा करती हैं।
नैतिकता और जवाबदेही: लोक प्रशासन में नैतिकता और जवाबदेही एक बढ़ती हुई चिंता है, क्योंकि नागरिक और हितधारक पारदर्शिता और जवाबदेही की अधिक मांग करते हैं।
राज्य बनाम बाजार
राज्य की भूमिका: उदारीकरण के बावजूद, राज्य अभी भी सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान, विनियमन और सामाजिक कल्याण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बाजार की भूमिका: बाजार कुछ सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान में तेजी से शामिल हो रहा है, प्रतियोगिता और दक्षता ला रहा है।
राज्य-बाजार संबंध: राज्य और बाजार के बीच संबंध जटिल और गतिशील है, जिसमें दोनों क्षेत्र अक्सर सहयोग करते हैं और प्रतिस्पर्धा करते हैं।
उदारीकरण के अधीन लोक प्रशासन और निजी प्रशासन:
- उदारीकरण के साथ, लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के बीच की सीमा कम हो जाती है।
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लोक प्रशासन अधिक महत्वपूर्ण होता है, जिसमें सरकार विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करती है और लोगों के हित में काम करती है।
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निजी प्रशासन का क्षेत्र भी बढ़ जाता है, लेकिन साथ ही साथ, सरकार उसकी निगरानी और नियंत्रण में रहती है।
नवीन लोक प्रशासन, विकास प्रशासन और तुलनात्मक लोक प्रशासन:
- नवीन लोक प्रशासन का मतलब वह तरीका है जिसमें सरकार नई, अद्यतन और प्रभावी तकनीकों, तथ्यों और नीतियों का उपयोग करती है।
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विकास प्रशासन उन संगठनों और प्रक्रियाओं को संदेशित करता है जो सामाजिक और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
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तुलनात्मक लोक प्रशासन तरीकों को समालोचनात्मक रूप से आकलन करता है और सर्वोत्तम तकनीकों का चयन करने में मदद करता है।
लोक प्रशासन में नए आयाम:
- नए आयाम लोक प्रशासन की दृष्टि से समग्र उत्थान, समर्थन और न्याय के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
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इनमें सरकारी कार्यों की प्रभावीता, नागरिक संबंध, पारदर्शिता, लोकतंत्रीय शासन, और सामाजिक न्याय शामिल हो सकते हैं।
राज्य बनाम बाजार:
- राज्य बनाम बाजार का विवाद सामाजिक और आर्थिक नीतियों में आधारित होता है।
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राज्य नीतियाँ सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं, जबकि बाजारी नीतियाँ अधिकतम आर्थिक प्रगति के लिए बाजारी शक्ति को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं।
विधि का शासन। संगठन – सिद्धान्त, उपागम, संरचना। प्रबंध नेतृत्व, नीति निर्धारण, निर्णय निर्माण विधि का शासन
विधि का शासन एक सिद्धांत है जो कानून के शासन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण पर आधारित है। इसका अर्थ है कि:
कानून सर्वोच्च है और सभी नागरिकों पर लागू होता है, चाहे उनका दर्जा या शक्ति कुछ भी हो।
कानून निष्पक्ष और निरंतर रूप से लागू किया जाता है।
नागरिकों को कानून के तहत अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की गारंटी दी जाती है।
संगठन
सिद्धांत
एक स्पष्ट उद्देश्य और लक्ष्यों के साथ-साथ एक संरचित पदानुक्रम होना चाहिए।
जिम्मेदारियों और अधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित और सौंपा जाना चाहिए।
कार्य प्रभावी ढंग से और कुशलता से पूरा करने के लिए संसाधनों को कुशलतापूर्वक आवंटित किया जाना चाहिए।
संगठन को अनुकूलन योग्य और परिवर्तनशील होना चाहिए।
उपागम
वैज्ञानिक प्रबंधन: कार्य में दक्षता पर ध्यान केंद्रित करता है।
व्यवहारात्मक दृष्टिकोण: मानवीय कारकों पर जोर देता है।
आकस्मिक दृष्टिकोण: संगठनों को उनकी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित करता है।
संरचना
रेखा संगठन: एक स्पष्ट कमांड संरचना के साथ एक पदानुक्रम।
कार्यात्मक संगठन: विशेषताओं के आधार पर विभागों में विभाजित।
मैट्रिक्स संगठन: दो या अधिक आयामों के साथ एक जटिल संरचना।
प्रबंध
नेतृत्व
कर्मचारियों को प्रेरित करना, निर्देशित करना और प्रेरित करना।
निर्णय लेना और ज़िम्मेदारी लेना।
एक सकारात्मक और सहायक कार्य वातावरण बनाना।
नीति निर्धारण
संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों को निर्धारित करना।
रणनीतियों और प्रक्रियाओं को विकसित करना।
नीतियों की निगरानी करना और उनका मूल्यांकन करना।
निर्णय निर्माण
विकल्पों की पहचान और मूल्यांकन।
सूचित निर्णय लेने के लिए डेटा और साक्ष्य का उपयोग।
निर्णयों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
विधि का शासन (Rule of Law) एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है जो एक विवेकपूर्ण, न्यायमूलक, और विधिमान समाज की आधारशिला होता है। यह सिद्धान्त वहाँ की विधि को सर्वोच्च मानक मानता है, जिसे सभी लोगों, समाजी वर्गों, और सरकारी अधिकारियों को मान्य करना चाहिए। विधि का शासन निम्नलिखित मुख्य तत्वों पर आधारित होता है:
- संगठन (Organization):
- सिद्धान्त (Principle): विधि का शासन का मूल सिद्धान्त है कि सभी व्यक्तियों और संस्थाओं को विधि के अधीन चलना चाहिए, और कोई भी व्यक्ति, समूह, या सरकार उसके ऊपर नहीं होता है।
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उपागम (Approach): विधि का शासन का उपागम है न्याय का नियमन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मानकों का समान रूप से पालन करना।
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संरचना (Framework): इसकी संरचना में, संविधान, कानून, और न्यायिक प्रणाली का विशेष महत्व होता है।
- प्रबंध नेतृत्व (Leadership):
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नीति निर्धारण (Policy Making): सरकार और सांसदों के माध्यम से विधि का शासन नीतियों का निर्धारण करता है जो समाज के हित में हों।
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निर्णय निर्माण (Decision Making): न्यायिक और कानूनी निर्णयों के अधिकार विधि के शासन के तहत रहते हैं, जो समाज के हित में सजग और न्यायमूलक होते हैं।
विधि का शासन सभी व्यक्तियों के लिए समान और न्यायमूलक नियमों के तहत समाज की सुरक्षा, स्थिरता, और विकास की सुनिश्चित करता है। यह सिद्धान्त सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देता है और विकास के प्रति सबकी समर्थन और सहयोग बढ़ाता है।
प्रशासनिक प्रबंध के उपकरण समन्वय, प्रत्यायोजन, संचार, पर्यवेक्षण, अभिप्रेरणा। प्रशासनिक सुधार, सुशासन, ई-गवर्नेस, नौकरशाही। जिला प्रशासन। प्रशासनिक प्रबंध के उपकरण
समन्वय: विभिन्न विभागों और इकाइयों के कार्यों को एकीकृत करने की प्रक्रिया।
प्रत्यायोजन: प्राधिकरण को अधीनस्थों को सौंपने की प्रक्रिया।
संचार: संगठन के भीतर और बाहर जानकारी का आदान-प्रदान।
पर्यवेक्षण: कर्मचारियों के प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन की प्रक्रिया।
अभिप्रेरणा: कर्मचारियों को उच्च प्रदर्शन के लिए प्रेरित करने की प्रक्रिया।
प्रशासनिक सुधार
प्रशासनिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सुधार के उद्देश्य से की गई पहल।
इसमें संरचनात्मक परिवर्तन, प्रौद्योगिकी का उपयोग और प्रबंधकीय प्रथाओं में संशोधन शामिल हो सकते हैं।
सुशासन
प्रभावी, जवाबदेह और पारदर्शी सरकार के सिद्धांत।
इसमें कानून के शासन, भ्रष्टाचार नियंत्रण और सार्वजनिक भागीदारी शामिल है।
ई-गवर्नेस
सरकारी सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रदान करने का उपयोग।
इसमें ऑनलाइन पोर्टल, मोबाइल ऐप और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
नौकरशाही
प्रशासनिक प्रबंध के भीतर सार्वजनिक कर्मचारियों का पदानुक्रमित संगठन।
यह विशेषज्ञता, औपचारिकता और सिविल सेवा के सिद्धांतों पर आधारित है।
जिला प्रशासन
जिला स्तर पर सरकार के प्रशासनिक ढांचे का संदर्भ देता है।
यह आम तौर पर कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में होता है और इसमें विभिन्न विभाग और एजेंसियां शामिल होती हैं।
प्रशासनिक प्रबंध के उपकरणों में समन्वय, प्रत्यायोजन, संचार, पर्यवेक्षण, और अभिप्रेरणा शामिल होते हैं, जो संगठन के विभिन्न कार्यों को संचालित करने में मदद करते हैं। ये उपकरण सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
- समन्वय (Coordination): समन्वय का मतलब है कार्यों को एकत्र करना और संगठित करना। यह सभी विभागों और कर्मचारियों के बीच सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करता है।
- प्रत्यायोजन (Planning): प्रत्यायोजन का मतलब है कार्यों की योजना बनाना, उनके लक्ष्य और माध्यमों का निर्धारण करना, और उन्हें कार्यान्वित करना।
- संचार (Communication): संचार का मतलब है संदेशों को प्रेषित करना और प्राप्त करना, जो संगठन के भीतर और बाहर अच्छे संचार के माध्यम से होता है।
- पर्यवेक्षण (Supervision): पर्यवेक्षण का मतलब है कार्यों की निगरानी और नियंत्रण करना, ताकि ये समय पर और निर्देशानुसार हों।
- अभिप्रेरणा (Motivation): अभिप्रेरणा का मतलब है कर्मचारियों को प्रेरित करना और उन्हें प्रेरित करने के लिए उत्साहित करना, ताकि वे अपने कार्य को उत्कृष्टता के साथ पूरा करें।
प्रशासनिक सुधार, सुशासन, ई-गवर्नेस, और नौकरशाही विभिन्न तरीकों से संगठन की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन्हें निम्नलिखित रूपों में प्रयोग किया जा सकता है:
– सुशासन (Good Governance): सुशासन का मतलब है संगठन के कार्यों को निष्पादित करने के लिए न्यायपूर्ण, पारदर्शी, और प्रशासनिक तकनीकों का उपयोग करना।
– ई-गवर्नेस (E-Governance): ई-गवर्नेस का मतलब है इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उ
पयोग करके सरकारी सेवाओं को प्रभावी और सुलभ बनाना।
– नौकरशाही (Bureaucracy): नौकरशाही का मतलब है संगठन के कार्यों को नियमन करने के लिए विशेषज्ञता और पेशेवरता का उपयोग करना।
- जिला प्रशासन (District Administration): जिला प्रशासन का मतलब है संगठन के स्तर पर क्षेत्रीय स्तर पर सरकारी कार्यों को निष्पादित करना, जिसमें विभिन्न विभागों का संयोजन और प्रबंधन शामिल होता है।
भारत में प्रशासन पर नियन्त्रण संसदीय, वित्तीय, न्यायिक एवं कार्यपालिक। लोकपाल एवं लोक आयुक्त। सूचना का अधिकार। पंचायत एवं नगरपालिकाएं। संसदीय अध्यक्षात्मक, एकात्मक-संघात्मक शासन। शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त। छत्तीसगढ़ का प्रशासनिक ढांचा। प्रशासन पर नियंत्रण
संसदीय
संसद प्रशासन पर सर्वोच्च प्राधिकरण है।
कानून पारित करके और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराकर प्रशासन को नियंत्रित करता है।
वित्तीय
संसद बजट को मंजूरी देती है, जो सरकार के खर्च को नियंत्रित करता है।
वित्त समिति सरकार के खर्च की जांच करती है।
न्यायिक
न्यायालय प्रशासनिक कार्यों की वैधता की समीक्षा कर सकते हैं।
भ्रष्टाचार और दुरुपयोग के मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सकते हैं।
कार्यपालिक
सरकार प्रशासन की निगरानी और उसके कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।
मंत्री प्रशासनिक विभागों के प्रमुख होते हैं।
लोकपाल और लोक आयुक्त
लोकपाल एक स्वतंत्र संस्था है जो सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करती है।
लोक आयुक्त राज्य स्तर पर लोकपाल की भूमिका निभाता है।
सूचना का अधिकार
नागरिकों को सरकार से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है।
यह कानून प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाता है।
पंचायत और नगरपालिकाएं
स्थानीय स्वशासन इकाइयाँ जो स्थानीय स्तर पर प्रशासन को नियंत्रित करती हैं।
विकास योजनाएँ बनाते हैं, सेवाएँ प्रदान करते हैं और नागरिकों की शिकायतों का निवारण करते हैं।
संसदीय अध्यक्षात्मक, एकात्मक-संघात्मक शासन
संसदीय अध्यक्षात्मक: कार्यपालिका संसद के प्रति जवाबदेह होती है। प्रधान मंत्री संसद का प्रमुख होता है।
एकात्मक-संघात्मक: केंद्र सरकार के पास मुख्य शक्तियाँ होती हैं, लेकिन राज्यों को कुछ स्वायत्तता भी होती है।
शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत
सरकार की शक्तियों को कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शाखाओं के बीच विभाजित किया गया है।
यह शक्तियों के एकाधिकार को रोकने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
छत्तीसगढ़ का प्रशासनिक ढांचा
राज्यपाल: राज्य का संवैधानिक प्रमुख है।
मुख्यमंत्री: सरकार का प्रमुख है और अन्य मंत्रियों की अध्यक्षता करता है।
विधान सभा: राज्य की विधायी शाखा है।
उच्च न्यायालय: राज्य की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है।
पंचायत और नगर निकाय: स्थानीय स्तर पर प्रशासन को नियंत्रित करते हैं।
भारत में प्रशासन पर नियंत्रण संसदीय, वित्तीय, न्यायिक और कार्यपालिका तंत्रों द्वारा होता है। यहाँ तक कि लोकपाल और लोक आयुक्त जैसे संगठन भी अधिकारियों के कार्यों का निगरानी करते हैं।
- संसदीय नियंत्रण: संसद भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संगठन है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं। संसद से संबंधित विधियों और नीतियों का निर्माण और परिवर्तन होता है।
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वित्तीय नियंत्रण: वित्त मंत्रालय और वित्तीय संस्थाएं प्रशासनिक और नियामक कार्य करती हैं। यह संस्थाएं राज्य और केंद्र सरकार के बजट, कर, और वित्तीय नीतियों को प्रबंधित करती हैं।
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न्यायिक नियंत्रण: न्यायिक प्रणाली द्वारा कानूनी मामलों का निर्णय और न्यायिक निगरानी किया जाता है। उच्चतम न्यायालय भारतीय संविधान की संरक्षा और कानूनी विवादों के निर्णय लेता है।
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कार्यपालिका नियंत्रण: केंद्रीय और राज्य सरकारों के माध्यम से नियंत्रित होता है, जो केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्य मंत्रिपरिषद के द्वारा निर्देशित किया जाता है।
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लोकपाल और लोक आयुक्त: लोकपाल और लोक आयुक्त भ्रष्टाचार और अन्य शिकायतों की जाँच के लिए नियुक्त होते हैं, ताकि सार्वजनिक निगरानी और विश्वास स्थापित किया जा सके।
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सूचना का अधिकार: भारतीय नागरिकों को सूचना का अधिकार है, जो उन्हें सरकारी निर्णयों और कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
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पंचायत और नगरपालिकाएं: पंचायती राज और नगरपालिकाएं स्थानीय स्तर पर प्रशासन का काम करती हैं, जो स्थानीय लोगों के हित में विभिन्न सेवाएं प्रदान करती हैं।
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संसदीय और एकात्मक-संघात्मक शासन: संसदीय शासन में संसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल की संवादात्मक रोल होती है, जबकि एकात्मक-संघात्मक शासन में राष्ट्रीय सरकार केंद्र और राज्य सरकारों को प्रभावी रूप से समन्वित करती है।
शक्ति पृथक
्करण का सिद्धान्त: भारत में प्रशासनिक शक्तियों का पृथक्करण के सिद्धान्त के अनुसार, विभिन्न स्तरों पर सत्ताएं स्थानीय स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर बाँटी जाती हैं।
- छत्तीसगढ़ का प्रशासनिक ढांचा: छत्तीसगढ़ राज्य में प्रशासनिक ढांचा भारतीय संविधान और उपनियमों के अनुसार संचालित होता है, जिसमें राज्य सरकार, जिला प्रशासन, पंचायत और अन्य स्थानीय प्रशासनिक संगठन शामिल हैं।