HomeBlogलोकायत या चार्वाक दर्शन: भारतीय नास्तिक दर्शन की व्याख्या

लोकायत या चार्वाक दर्शन: भारतीय नास्तिक दर्शन की व्याख्या

चार्वाक दर्शन (लोकायत दर्शन)

प्रमुख विशेषताएँ:

  1. चार तत्वों में विश्वास – पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु (आकाश को नहीं मानते)।

  2. आत्मा, परमात्मा, परलोक आदि को नहीं मानते – क्योंकि ये प्रत्यक्ष नहीं हैं।

  3. ज्ञान का स्रोत केवल प्रत्यक्ष – इंद्रियों से जो अनुभव होता है वही सच्चा ज्ञान है। अनुमान, शब्द, उपमान आदि को यह दर्शन खारिज करता है।

  4. ईश्वर का अस्तित्व नहीं मानते – क्योंकि ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं है। उनका मानना है कि सृष्टि चार भूतों के संयोग से बनी है।

  5. आत्मा की अमरता नहीं स्वीकारते – आत्मा केवल शरीर और चेतना का भौतिक संयोग है।

  6. हेडोनिज्म (सुखवाद) – “जब तक जियो, सुख से जियो। घी पीओ चाहे उधार लेकर पीओ।”

  7. मोक्ष की धारणा का खंडन – मोक्ष का कोई महत्व नहीं, मृत्यु ही अंतिम सत्य है।

आचार मीमांसा (नैतिक आलोचना):

चार्वाक दर्शन को नैतिकता के स्तर पर आलोचना मिली क्योंकि यह व्यक्तिगत सुख को ही सर्वोच्च मानता है और सामाजिक नैतिकता, भविष्य की चिंता, या दूसरों के हित की अनदेखी करता है।


जैन दर्शन

अनेकांतवाद (Anekantavada):

  1. सत्य बहुआयामी है – हर वस्तु में अनगिनत धर्म (गुण) होते हैं।

  2. स्वरूप धर्म – जो वस्तु का मूल गुण है (जैसे – मिट्टी का घड़ा)

  3. आगंतुक धर्म – जो बदलते रहते हैं (जैसे रंग, रूप)

स्यातवाद (Syadvada):

ज्ञान आंशिक, अपूर्ण और सापेक्ष होता है। इसलिए किसी विषय पर 7 प्रकार से कथन संभव हैं:

  1. स्यात् अस्ति – यह है

  2. स्यात् नास्ति – यह नहीं है

  3. स्यात् अस्ति च नास्ति – यह है और नहीं भी है

  4. स्यात् अवक्तव्य – यह अवर्णनीय है

  5. स्यात् अस्ति च अवक्तव्य – यह है और अवर्णनीय है

  6. स्यात् नास्ति च अवक्तव्य – यह नहीं है और अवर्णनीय है

  7. स्यात् अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य – यह है, नहीं है और अवर्णनीय भी है

जीव (आत्मा):

  1. बद्ध जीव (बांधा हुआ जीव) – स्थावर (एकेंद्रिय) और त्रस (बहु इंद्रिय)

  2. मुक्त जीव – जिसने मोक्ष प्राप्त किया है

  3. जीव अनंत शक्ति, ज्ञान, आनंद से युक्त होता है (अनंत चतुष्टय)

आचार मीमांसा – पंच महाव्रत:

  1. अहिंसा

  2. सत्य

  3. अस्तेय (चोरी न करना)

  4. ब्रह्मचर्य

  5. अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग)


सांख्य दर्शन

सत्कार्यवाद (Satkaryavada):

  1. कार्य कारण में निहित होता है – जैसे घड़ा मिट्टी में निहित होता है।

  2. कोई भी कार्य बिना कारण के उत्पन्न नहीं होता।

  3. कार्य और कारण एक ही तत्व के दो रूप हैं – जैसे आभूषण और सोना।

परिणामवाद और विकासवाद:

  • परिणामवाद: कारण में कार्य छिपा होता है और वह उसमें से निकलता है।

  • विकासवाद: प्रकृति के विकास की व्याख्या इस सिद्धांत से होती है।


निष्कर्ष:

दर्शन तत्ववाद आत्मा ईश्वर ज्ञान मोक्ष नैतिकता
चार्वाक चार तत्व (भौतिकवाद) केवल शरीर में नहीं प्रत्यक्ष मृत्यु = मोक्ष भोगवादी
जैन अनेक तत्व, अनेक धर्म अमूर्त, अनंत शक्तिशाली नहीं सापेक्ष (स्यातवाद) संभव, आत्मशुद्धि से पंच महाव्रत
सांख्य प्रकृति + पुरुष दो भिन्न तत्व नहीं अनुमान+प्रत्यक्ष पुरुष की प्रकृति से भिन्नता नैतिकता मुख्य नहीं

अगर आपको इन दर्शनों की तुलनात्मक तालिका, नोट्स, या पीडीएफ रूप चाहिए, तो बताएं।

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