HomeBlogपर्यावरण का अर्थ और इसके प्रमुख घटक – सरल हिंदी में समझें 

पर्यावरण का अर्थ और इसके प्रमुख घटक – सरल हिंदी में समझें 

पर्यावरण संरक्षण और भारत का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986: एक विस्तृत परिचय

प्रस्तावना

जैसे-जैसे मानव जीवन में तकनीकी और औद्योगिक विकास तेजी से बढ़ा, वैसे-वैसे पर्यावरणीय समस्याएँ भी विकराल रूप लेने लगीं। प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों की हानि, वनस्पति और जीव-जंतु का विनाश—ये सभी ऐसी समस्याएँ हैं, जो मानव जीवन के साथ-साथ पृथ्वी के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रही हैं। इसी संदर्भ में 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने स्टॉकहोम सम्मेलन का आयोजन किया, जहाँ विश्व के कई देशों ने मानवीय पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए। भारत ने भी इस सम्मेलन में भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता जताई। इस प्रतिबद्धता के अंतर्गत भारत सरकार ने 23 मई 1986 को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम लागू किया।

यह अधिनियम भारत में पर्यावरण संरक्षण का आधार स्तंभ माना जाता है, जो न केवल प्रदूषण नियंत्रण को सुनिश्चित करता है, बल्कि पर्यावरण से जुड़े अन्य कई महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल करता है।


पर्यावरण क्या है?

पर्यावरण शब्द का अर्थ है वह परिवेश या वातावरण जिसमें हम, हमारे साथ-साथ अन्य जीव-जंतु और पौधे रहते हैं, कार्य करते हैं और विकसित होते हैं। यह वायु, जल, भूमि, जीवमंडल, स्थलमंडल तथा सौर ऊर्जा से मिलकर बना होता है। पर्यावरण में इन तत्वों के बीच आपसी संबंध होते हैं जो जीवन को संचालित करते हैं। स्वस्थ पर्यावरण के बिना जीवन का निर्वाह संभव नहीं।

पर्यावरण संरक्षण का मतलब है इन सभी घटकों की रक्षा करना, जिससे कि जीवन के लिए अनुकूल और स्वस्थ वातावरण बना रहे।


भारत में पर्यावरण संरक्षण के संवैधानिक प्रावधान

भारत का संविधान पर्यावरण संरक्षण को एक महत्वपूर्ण विषय मानता है। संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार है, जिसमें स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार भी सम्मिलित है। प्रदूषण से भरा वातावरण धीरे-धीरे जीवन के अधिकार का हनन करता है।

इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 14 में समानता का अधिकार, अनुच्छेद 47 में स्वास्थ्य और पोषण स्तर को सुधारने का कर्तव्य, तथा अनुच्छेद 48-क में पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीवों की रक्षा के लिए राज्य की जिम्मेदारी निर्धारित की गई है। अनुच्छेद 51-क (छ) में प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य भी शामिल है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन करें।


पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का परिचय

भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए 23 मई 1986 को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम लागू किया। यह अधिनियम केंद्र सरकार को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करता है।

इस अधिनियम में कुल 4 अध्याय और 26 धाराएँ हैं, जो केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण प्रदूषकों के उत्सर्जन की सीमा निर्धारण, आपदाओं के प्रबंधन, पर्यावरण जांच और निरीक्षण के लिए पर्याप्त अधिकार देते हैं।


अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

1. केंद्र सरकार के अधिकार

केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियम बना सकती है, विभिन्न योजनाएँ लागू कर सकती है, प्रदूषण नियंत्रण के लिए मानक तय कर सकती है, और किसी क्षेत्र को औद्योगिक गतिविधियों के लिए प्रतिबंधित घोषित कर सकती है।

2. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण

कोई भी व्यक्ति, उद्योग या संस्था सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से अधिक प्रदूषण नहीं फैलाएगी। यदि ऐसा होता है तो उसे दंडित किया जा सकता है।

3. पर्यावरण प्राधिकरणों का गठन

केंद्र सरकार आवश्यक समझे तो अधिकारियों और प्राधिकरणों को नियुक्त कर सकती है, जिन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं। ये प्राधिकरण पर्यावरण प्रदूषण की घटनाओं का निवारण कर सकते हैं।

4. निरीक्षण और नमूना संग्रहण

केंद्र सरकार के अधिकारी किसी भी समय औद्योगिक इकाई या स्थानों का निरीक्षण कर सकते हैं और पर्यावरण से संबंधित नमूने (जल, वायु, मृदा) ले सकते हैं।

5. दंड और जुर्माना

इस अधिनियम का उल्लंघन करने वाले को पाँच वर्ष तक कारावास या 1 लाख रुपए तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि उल्लंघन लगातार होता रहे तो दंड की अवधि बढ़कर सात वर्ष हो सकती है।


राष्ट्रीय हरित अधिकरण का गठन

पर्यावरण संरक्षण के कार्यों की निगरानी और विवादों के निपटारे के लिए 18 अक्टूबर 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई। यह एक विशेष न्यायिक निकाय है जो पर्यावरण से संबंधित मामलों में त्वरित न्याय प्रदान करता है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अपने निर्णयों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाता है।


स्टॉकहोम सम्मेलन का महत्व

5 से 16 जून 1972 तक स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र का पहला पर्यावरण सम्मेलन था। इस सम्मेलन में 113 देशों ने भाग लिया और मानव पर्यावरण के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण समझौते किए।

स्टॉकहोम घोषणा पत्र में 26 सिद्धांत और 109 सुझाव दिए गए, जिनका उद्देश्य सतत विकास, संसाधनों का संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, समुद्री प्रदूषण रोकना, और पर्यावरण के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास को जोड़ना था।

इस सम्मेलन के बाद 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने का प्रमुख दिन है।


पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत की प्रमुख योजनाएँ

भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई योजनाएँ और अभियानों की शुरुआत की है, जिनमें प्रमुख हैं:

  • सौर ऊर्जा योजना – स्वच्छ और हरित ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना।

  • उज्जवला योजना – LPG कनेक्शन देकर परंपरागत जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना।

  • जल संरक्षण अभियान – वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण को बढ़ावा देना।

  • वन संरक्षण और वृक्षारोपण अभियान – वन क्षेत्रों का संरक्षण और विस्तार।

  • शहरी प्रदूषण नियंत्रण – वाहनों के उत्सर्जन मानकों को कड़ा करना।


पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

हालांकि भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए कानूनी और संस्थागत व्यवस्था मौजूद है, फिर भी प्रदूषण, अवैध कटाई, जल प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

भविष्य में हमें निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

  • जन जागरूकता बढ़ाना ताकि हर नागरिक पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार महसूस करे।

  • प्रदूषण नियंत्रण के लिए तकनीकी नवाचारों को अपनाना।

  • कड़े नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन।

  • सतत विकास को प्राथमिकता देना।

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग।


निष्कर्ष

पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का ही कर्तव्य नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का भी जिम्मेदारी है। भारत का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 इस दिशा में एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसके सफल क्रियान्वयन से ही हम स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण की प्राप्ति कर सकते हैं।

आज के विश्व में पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हुए हमें प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में जीवन यापन कर सकें।

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