🧠 George Berkeley: ‘Esse est percipi’ (होने का अर्थ है अनुभवित होना)
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बरकलि के अनुसार अस्तित्व केवल अनुभव की विषयवस्तु होने पर ही संभव है।
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यदि किसी वस्तु को कोई अनुभव (देखना, छूना, सूंघना, सुनना इत्यादि) नहीं करता — वह अस्तित्व में नहीं होती।
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जब कोई व्यक्ति अनुभव नहीं करता, तब वह अनुभूति अन्य आत्माओं (souls) या ईश्वर द्वारा की जाती है।
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इस प्रकार, सबका अस्तित्व हमेशा किसी द्वारा अनुभूति (perception) में रहता है।
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अस्तित्व और अनुभव में अटूट सम्बंध है। अनुभवहीन वस्तु अनदेखी नहीं की जा सकती, क्योंकि “होना = अनुभवित होना” है।
🧠 David Hume: इम्प्रेशन, आइडिया और संशयवाद (Skepticism)
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इम्प्रेशन (Impression): प्रत्यक्ष अनुभव जैसे गर्मी, प्रेम, दर्द — तीव्र एवं स्पष्ट।
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आइडिया (Idea): इम्प्रेशन की याद, स्मृति या विचार — हल्की एवं अस्पष्ट।
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आत्मा (soul) प्रत्यक्ष अनुभवों से ज्ञात नहीं होती; यह केवल विचारों और इम्प्रेशन्स का प्रवाह मात्र है।
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ईश्वर का अस्तित्व भी अनुभवातीत है, अत: ज्ञान का विषय नहीं।
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यह नया संशयवाद (skepticism) भावना देता है कि अनुभव ही ज्ञान का प्रमुख स्रोत है, परन्तु इससे गहन सत्य का ज्ञान संभव नहीं।
🧠 Immanuel Kant: Paralogism (आलोचनात्मक संश्लेष)
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बचाव:
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बुद्धिवाद (Rationalism): ज्ञान जन्मजात; लेकिन अनुभव का योगदान नकारा।
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अनुभववाद (Empiricism): ज्ञान केवल अनुभव आधारित; बुद्धि की भूमिका न्यून।
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कैंट ने कहा: ज्ञान के निर्माण में दोनों मिलकर कार्य करते हैं:
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अनुभव (Raw impressions) = कच्चा पदार्थ।
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बुद्धि (Intellect) ये प्रभाव को “स्थान” और “समय” में गूंथकर 12 श्रेणियों (categories) में रूपांतरित करती है।
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इस मिश्रण को कैंट ने Paralogism कहा — बाहरी अनुभव + आंतरिक बुद्धि = ज्ञान।
🧠 Georg Wilhelm Friedrich Hegel: परम आदर्शवाद (Absolute Idealism)
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Hegel ने दर्शन को सत्य की प्रकृति का निर्वाण और संज्ञानात्मक प्रक्रिया बताया।
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बुद्धिमत्ता (Intelligence) और विचार (Thought) को अभिन्न माना। वस्तुएँ केवल चेतना के विस्तार हैं।
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Conflict → Synthesis → Resolution की त्रिवेणी प्रक्रिया (He’s dialectic) ज्ञान को पूर्ण बनाती है।
→ “जो तर्कसंगत है, वही वास्तविक है; और जो वास्तविक है, वही तर्कसंगत है।”
🧠 F.H. Bradley: इंग्लिश आदर्शवाद
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Bradley के अनुसार, वास्तविकता एक अभिन्न संपूर्ण है और हमारा उद्देश्य इसे पहचानना है।
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सत्य भावनात्मक विरोधाभासों (inner conflicts) से मुक्त होता है।
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ज्ञान की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, सत्य की प्राप्ति की निरंतर इच्छा प्रमुख है।
🧠 G. E. Moore: यथार्थवाद (Realism / Objectivism)
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वस्तुएँ स्वायत्त और स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं — हमारे ज्ञान से निर्भर नहीं।
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अनुभव में जो गुण देखे जाते हैं, वे वस्तुओं में ही विद्यमान रहते हैं, न कि केवल मस्तिष्क में।
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विश्लेषणात्मक दर्शन (Analytic Philosophy) का प्रवर्तक: शब्दों और विचारों का स्पष्ट विश्लेषण करना।
🧠 Pragmatism एवं Instrumentalism (Peirce, James, Dewey)
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प्रैग्मेटिज़्म: सत्य की परीक्षा “प्रायोगिक परिणामों” (practical consequences) के आधार पर होती है।
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John Dewey की Instrumentalism: ज्ञान को केवल चिंतन का फल नहीं, बल्कि व्यवहार और क्रियान्वयन का माध्यम माना।
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शिक्षा, समाज और समझ विकसित होती है केवल करके देखकर (learning by doing)।
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🧠 A. J. Ayer: Logical Positivism (तर्कसंगत अनुभववाद)
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वाक्य वैध तभी है जब:
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वह व्यावहारिक सत्यापन (verifiable) हो।
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या स्वत: सत्यापित (analytically true) हो, जैसे “वृत्त 360° है”।
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ईश्वर, आत्मा, मुक्त इच्छा जैसे विषय अप्रमाणित (unverifiable) हैं -> इन्हें अस्पष्ट कथन (meaningless statements) माना।
🧠 Jean-Paul Sartre: अस्तित्ववाद (Existentialism)
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Sartre के अनुसार:
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“Existence precedes essence”: पहले व्यक्ति अस्तित्व में आता है, फिर स्वयं को परिभाषित करता है।
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स्वतंत्रता (Freedom) ही व्यक्ति की पहचान एवं दायित्व है।
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मानव को निर्धारित भविष्य नहीं, बल्कि अपनी पसंद और निर्णय से आकार देना होता है।
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मनुष्य को स्वतंत्रता की श्राप (cursed to be free) मिली है।