Data Communication and Networks
Basic Elements of Communication System –
Communication का मुख्य उद्देष्य डाटा व सूचनाओं का आदान-प्रदान करना होता हैं । Data Communication के प्रभाव को तीन मुख्य विषेषतायें द्वारा प्रदर्षित किया जा सकता हैं।
(1) Delivery – इससे तात्पर्य डाटा को एक जगह से दूसरे जगह प्राप्त कराने से हैं।
(2) Accuracy – यह गुण डाटा की गुणवत्ता या डाटा के सही होने को दर्षाता हैं ।
(3) Timeliness – यह गुण डाटा के निष्चित समय में डिलीवर होने को दर्षाता हैं।
किसी Communication System में पांच तत्व होते हैं
(1) Message – संदेष Communication System में प्रस्तुत सूचनाओं या Data का समूह होता हैं ।
(2) Sender – प्रेषक अथवा स्त्रोत (source ) व्यक्ति प्रेषण हेतु डाटा प्रदान करता हैं । यह डाटा कोई फाईल, चित्र, ध्वनि अथवा कोई चलचित्र हो सकता हैं।
(3) Medium – संचरण माध्यम को Communication Channel भी कहते हैं । यह डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर Transmit करता हैं ।
(4) Receiver – प्रेषक (Sender) द्वारा प्रदत्त डाटा को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को प्राप्त कर्त्ता (Receiver) कहते हैं ।
(5) Protocol – Protocol वह प्रणाली हैं जो सम्पूर्ण संचार मॉडल की विविध devices के मध्य सामंजस्य स्थापित करती हैं और संबंध – विच्छेद भी करती हैं। डाटा के प्रेषण के बाद प्राप्तकर्ता प्रेषित डाटा को स्वीकार कर लेता हैं तो Protocol अंत में संचरण को समाप्त भी कर देता है । जिससे अगली संचरण क्रिया हो सके। संचार उपकरणों की भिन्न–भिन्न निर्माता कम्पनियाँ होती हैं जिससे किसी नेटवर्क पर अनेक निर्माताओं की डिवाइसेज हो सकती हैं। अतः असमान संकेतां को संचार डिवाइसेज (कम्प्यूटर) स्वीकार नहीं कर पाती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए संचार–उपरकणों की निर्माता कम्पनियां में सामंजस्य सीपित करते हुए एक सर्वमान्य संचार तकनीक के मानक हुए ही कम्प्यूटर नेटवर्क स्थापित किये जाते हैं।
स्चार प्रोटोकॉल निम्नलिखित बिन्दुओं को निर्धारित करता हैं:
(1) एक नेटवर्क में सभी कम्प्यूटरों और डिवाइसेज का भौतिक संयोजन किस प्रकार का हैं।
(2) संचरण के समय डाटा का संगठन किस रूप में हैं।
(3) प्राप्तकर्ता डिवाइस द्वारा डाटा प्राप्ति की सूचना प्रेषक तक किस प्रकार जायेगी।
(4) नेटवर्क में किसी त्रुटि अथवा व्यवधान को समाप्त करने की क्या विधि हैं।
अतः प्रोटोकॉल, नेटवर्क में संयोजित कम्प्यूटरों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिए सर्वमान्य नियमों का संकलन होता हैं।
Fundamentals of Computers & Information Technology
The Roll of Protocol in a Network
प्रोटोकॉल के उदाहरण (Example of Protocol) :- प्रोटोकॉल निर्धारित करने वाली संस्था ISO (International Standards Organization – इंटरनेषनल स्टेण्डर्ड ऑर्गनाइजेषन) ने निम्नलिखित प्रोटोकॉल्स प्रस्तुत किये हैं :
(1) X.12: यह प्रोटोकॉल विभिन्न कम्पनियां के मध्य दस्तावेजों के आदान-प्रदान सम्बन्धी कार्यों के लिये लागू किया जाता हैं।
(2) X.25: यह सार्वजनिक डाटा नेटवर्क के लिए इंटरफेस निर्धारित करता हैं ।
चूंकि Data Communication के अंतर्गत Data Transit किया जाता हैं अतः वह Electronic System जो डाटा को एक Point से दूसरे Point तक Transfer करता हैं उसे Data Communication System कहते हैं।
In its simplest form, a computer network is two or more computers sharing information across a common transmission medium.
Data Transmission Modes
Data को एक Point से दूसरे Point तक Transmit करने के तीन Modes हो सकते हैं :-
(1) Simplex (2) Half Duplex (3) Full Duplex
(1) Simplex – Simplex Transmission के अंतर्गत Communication केवल एक direction में होता हैं अर्थात् आपस में Connected devices या तो डाटा भेज सकते हैं या सिर्फ प्राप्त कर सकते हैं। जैसे Computer में Data Print Out के लिए Printer पर भेजना तथा Television Signal केवल प्राप्त कर सकना ।
इस तरह का Communication System बहुत ही कम उपयोग में लिया जाता हैं क्योंकि इसमें भेजने वाले को यह पता नहीं चल पाता हैं डाटा पहुंच चुका है या नहीं । कोई भी Communication System तभी Perfect होता हैं जब वह भेजे गये डाटा का Acknowledgement अथवा Error Message प्रदान करता हैं ।
(2) Half Duplex – Half Duplex System के अंतर्गत दोनों directions में Transmits किया जा सकता हैं। परन्तु एक समय में केवल एक तरफ ही Data Transmit कर सकते हैं । अतः Half Duplex Line के द्वारा Data alternatively भेजा या प्राप्त किया जा सकता हैं। इस तरह के सिस्टम में दो Wire की जरूरत पड़ती हैं। इस तरह का Transmission Voice
Communication के लिए अधिक उपयोग में लिया जा सकता हैं क्योंकि Voice Communication में एक समय में केवल एक व्यक्ति ही बोलता हैं। जैसे वायरलैस System, One way Traffic.
(3) Full Duplex – Half Duplex System के अंतर्गत Line को हर बार Reverse Direction में Turned करना पड़ता था इसके लिए एक Special Switching Circuit technique तथा कुछ अतिरिक्त समय की आवष्यकता होती थी । परन्तु High Speed Computer System में यह अतिरिक्त समय कम्प्यूटर की गति को कम कर देता हैं। कुछ application में दोनों direction में एक साथ Transmission की आवष्यकता रहती हैं । अतः इस तरह की स्थिति में Full duplex system use किया जाता हैं। जो सूचनाओं को एक साथ दोनों दिषाओं में भेज सकने की सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं | Full Duplex System ने कम्प्यूटर की कार्य क्षमता को बढ़ाया हैं क्योंकि इसमें Half Duplex की तरह अतिरिक्त समय की आवष्यकता नहीं होती। इसमें चार Wires Use में लिए जाते हैं ।
Communication Process में डाटा जिस माध्यम से भेजा जाता हैं उन्हें Communication Media कहते हैं । एक जगह से दूसरी जगह Information भेजने के लिए Media की जरूरत होती हैं। Telephone Line की तरह अन्य कई प्रकार के Communication Channels उपलब्ध हैं। मुख्य रूप से दो श्रेणियों में इसे वर्गीकृत किये गये हैं
(I) भौतिक संयोजन (Physical Line or Bounded)
(II) बेतार (Wireless or Unbounded)
(I) Physical Line or Bounded इस माध्यम में Computers को Network से अथवा परस्पर जोड़ने के लिए Coaxial Cable या Fibre Optic Cable का प्रयोग किया जाता हैं। Physical Line निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं :-
(1) Twisted Pair Cable – Cable Normal Telephone Communication Data Transmission (up to 1km.) के लिए उपयोग में ली जाती हैं। यह Cable Copper की बनी होती हैं । अर्थात् Plastic के आवरण में Copper के तारों का समूह होता हैं तथा इस Cable में दो तारें आपस में Twisted रहते हैं। यह Wires Terminals को Main Computer से Connect करने के लिए उपयोग में लिए जाते हैं। जो main Computer से कम दूरी पर होते हैं। इनकी Data Transfer Speed 9600 bps (bits per second ) तक प्राप्त की जा सकती हैं। दूरी 100 Metre से अधिक नही होनी चाहिये ।अधिक दूरी होने पर Data Transmission Speed 1200 bps हो सकती हैं।
Twisted Pair Wires data transmission का एक सबसे सस्ता और सरल माध्यम हैं। इनको Install करना तथा उपयोग में लेना बहुत आसान हैं परन्तु इनका उपयोग बहुत कम होता हैं। क्योंकि यह बहुत जल्दी Noise Signlas को पकड़ लेते हैं जिसमें Data Transmission में गलतियों की सम्भावना बढ़ जाती हैं। जैसे (Telephone wire)
(2) Co-axial Cable – Co-axial Cable विषेष तरीके से लपेटे हुए Wires का एक Group होता हैं जिसके द्वारा डाटा तेज गति से Transmit किया जा सकता हैं। इस केबल के बीच एक Copper Wire होता हैं जो PVC (Plastic) द्वारा ढ़का रहता हैं। उस Plastic Cover के उपर एक Copper की जाली की परत (Copper mesh) होती हैं। यह परत बाहर से मोटे Plastic Meterial (PVC) से ढकी रहती हैं। सारा डाटा सबसे अंदर वाले Copper Wire द्वारा Transmit किया जाता हैं तथा उसे डाटा को बाहरी जाली द्वारा सुरक्षित रखा जाता हैं।
Co-axial द्वारा High Band Width Data को Transmit किया जा सकता हैं इसकी Data Transmission Rate 10 Mbps तक हो सकती हैं इनका उपयोग लम्बी दूरी की Telephone Lines अथवा T.V. के लिए किया जा सकता हैं। इन केबल के द्वारा डाटा बिल्कुल सही तरीके से एक जगह से दूसरी जगह Transmit किया जाता हैं अर्थात् Data Transmission में आने वाली गलतियों को इस केबल द्वारा समाप्त कर दिया जाता हैं। इसमें distance बढ़ाना है तो बीच – 2 में amplifier लगाना होता हैं जिससे Weak Data को Strong करके आगे भेजा जा सकता हैं।
(3) Fiber Optic Cable – यह संचार माध्यम की एक आधुनिक तकनीक हैं। यह केबल बहुत पतले Glass Type Material (Fiber) के तारों से बना होता हैं जो Light (प्रकाष ) को 3,00,000 Km/Second की गति से Transmit करता हैं जो कि प्रकाष की गति होती हैं। इस Cable के कारण Data Transmission Rate बहुत Fast होती हैं। और भेजे गये Data में Error आने अथवा उसके समाप्त हो जाने की सम्भावना नहीं रहती हैं। चूंकि इस केबल में डाटा प्रकाष के रूप में चलता हैं अतः Electrical Signals के डाटा को Light Waves में Convert करना आवष्यक होता हैं । अतः इस कार्य के लिए Sender तथा Receiver दोनों के पास Convertors जो Electrical Signals को Light Singnal में तथा Light Signal को Electrical Signal में Convert करने वाले उपकरण लगे होने आवष्यक हैं। यह किसी Time या मौसम में सही रूप से कार्य कर पाता हैं
इस केबल द्वारा Data Transmission High Quality तथा High Speed से किया जाता हैं। इसके अंदर उपयोग में लिए जाने वाले Fiber के तार बालों जितने पतले यानि 0.8 Micrometer के होते हैं। इनको ज्यादा मोड़ना possible नहीं होता हैं। इस केबल द्वारा Analog तथा Digital दोनों तरह के Data Light के Form में Transmit किए जा सकते हैं। Fiber Optic Tranmission पर किसी भी प्रकार की Electric Magnetic रूकावट का प्रभाव नहीं पड़ता हैं, अतः इसे Noise तथा Data Disturbance में कमी आती हैं ।
इस Fiber Cables के दो Light Sources (साधन) उपलब्ध हैं
(1) LEDs (Light Emitting Diodes )
(2) Laser (Light Amplification by Stimulated Emission Radiation)
इन दोनों में laser Sources का उपयोग अधिक किया जाता हैं एवं सही है क्योंकि इसके 1Km. के दायरे में कार्य करने की Speed 2500 Mbps हैं जो कि LEDs से काफी गुना अधिक है जो 15 Mbps की ही Speed देता हैं। इन Cables में Data Transmission की Capacity Coaxial Cable का भार Fiber Optic Cable से 20 गुना अधिक होता हैं। इसमें Light को वापस Electric Signal में Convert करने के लिए PIN Diode { P. insulated N Channel} या APDE {Avalanche Photo diodes } का प्रयोग Converters के द्वारा किया जाता हैं।
(II) Wireless or Unbounded – इस माध्यम में किसी प्रकार का Network Cables के द्वारा नहीं किया जाता हैं बल्कि वायुमण्डल Electro Magnetic Energy को छोड़ा जाता हैं क्योंकि वायु में Electronic Energy का प्रवाह आसानी से हो पाता हैं । यह दो प्रकार में उपलब्ध है :-
(1) Microwave Transmission Micro Waves Transmission उच्च आवृति वाली Radio Waves के माध्यम से होता हैं। इस माध्यम का उपयोग करने पर हम केबल लगाने की समस्या से बच सकते हैं। Microwaves करीब 100 MHz से उपर एक सीधी रेखा में ही चल सकती हैं। अतः उनके मार्ग में कोई बाधा आने पर यह उसे पार नहीं कर सकती इसलिए यह आवष्यक हैं कि Transmitors व Receivers एक सीधी रेखा में हो। इसके लिए Transmitors व Receivers के बीच Repeaters का प्रयोग करते हैं। सामान्यता Repeaters 25 से 30 Km. की दूरी पर लगाये जाते हैं। Micro Waves Signals दूरी के साथ कमजोर होते जाते हैं। Repeaters उन Signals को Amplify करके आगे Retransmit करते हैं। Micro Waves System में Data Transmission Rate 10 Gega bits per second को सकती हैं। इस तरह के System Install करने के लिए अधिक Investment की जरूरत पड़ती हैं । अतः उनका अधिकतम उपयोग किसी बड़ी City में heavy Telephone Traffic को Manage करने में किया जाता हैं। इसकी Data Transmission Speed 250 Mbps की होती हैं Limited Area में और करीब 40 से 200 MHz Frequency bands और 2,50,000 Voice Channels एक समय में वायुमण्डल में उपलब्ध कराता हैं।
इसकी एक ही मुख्य समस्या हैं कि खराब मौसम अधिक बादल या ज्यादा तेज हवा चल रही हो तो यह कार्य नहीं करता हैं।
(2) Satellite Communication – Microwaves System में एक मुख्य समस्या थी की दो Stations के बीच कोई सरकार जैसे पहाड़ भवन आ जाने पर Communication Process Complete नहीं हो पाती हैं। इस कारण लम्बी दूरी के Transmission के लिए बहुत सारे Repeaters Stations की जरूरत पड़ती हैं जिससे कि Data Transmission Cost बढ़ जाती हैं। अतः लम्बी दूरी के संचार की समस्या को हल करने के लिए Communication Satellite का उपयोग किया जाता हैं। इस Communication में भी Microwaves Signals ही काम में ली जाते हैं। इनकी आवृति Microwaves Signals से अधिक होती हैं। Communication Satellite सामान्यता भूमध्य रेखा से 36000 Km. (22300 मील) की उंचाई पर एक कक्षा में स्थापित किया जाता हैं ।
एक Satellite को हम Microwaves Relay केन्द्र भी कह सकते हैं जो पृथ्वी से काफी उंचाई पर अंतरिक्ष में स्थित होता हैं। Satellite के इतनी उंचाई पर स्थित होने के कारण Line of Sight की समस्या हल हो जाती हैं। जब एक Station में कोई Data Transmit किया जाता हैं तो वह Satellite तक पहुंचते – 2 कमजोर हो जाता हैं । यह 6GHz की गति से भेजा जाता हैं। और उस कमजोर Signal को वापस amplify करे पृथ्वी पर दूसरे Station पर भेजता हैं । यह Data Satellite से 4 GHz की गति से पृथ्वी पर भेजा जाता हैं। एक Satellite से पृथ्वी के 1/3 हिस्से में Communication सम्भव हो सकता हैं । Satellite की Band Width अधिक होने से बहुत ही तीव्र गति से Data को Transmit किया जा सकता हैं । Satellite Signals Broadcast होता हैं इसलिए इसे कोई भी Receive कर सकता हैं । अतः सुविधा संबंधी कदम आवष्यक हो जाते हैं । Satellite द्वारा Transmission पर मौसम का भी प्रभाव पड़ता हैं । यह Satellite एक समय में करीब 1200 Voice Channels की सुविधा प्रदान करता हैं। और प्रत्येक Channels की कार्य गति 4800 bps की उपलब्ध होती हैं। यह करीब एक समय में 400 digital Channels Sypport करता हैं और कार्य गति 64 kbps की प्राप्त होती हैं ।
Data Transmission Speed
किसी भी डाटा को Transmit करने की Speed को एक Media में उपयोग किया जाता हैं और उस Transmission Speed की एक Unit जिसे Baud कहा जाता हैं में नापी जाती हैं । Baud को Bit/Second भी कहते हैं। जैसे 300 Baud की Rate को 300 Bit/Second भी कह सकते हैं । अतः कोई Terminal जो 30 Character Per Second की Speed से Data Transmit करता हैं तो हम कह सकते हैं कि वह 300 Baud की गति से कार्य कर रहा हैं । Transmission Speed के आधार पर Communication Channel को तीन मुख्य Category में Group किया गया हैं :-
(1) Narrow Band – यह सबसे कमजोर Media होता हैं और गति की दर बहुत धीमी होती हैं इसमें Data Transmission 45 से 300 bps तक की हो सकती हैं। जैसे :- Telegraph और Teletype में प्रयुक्त होती हैं।
(2) Voice Band – यह माध्यम गति का संचार होता हैं जिसमें 300 से 9600 kbps की दर से Transmission होता हैं । यह Voice Waves की गति के समान गति होती हैं, इसलिए इसे Voice band Transmission कहते हैं ।
(3) Broad Band – इसमें बहुत ज्यादा Volume तथा Speed से डाटा भेजा जा सकता हैं । यह 1 Million bps से अधिक गति की Speed Provide कर सकते हैं। जब बहुत से कम्प्यूटर को डाटा भेजना होता हैं तब उसका प्रयोग होता हैं। इसकी Cost बहुत ज्यादा होती हैं । यह गति Coaxial Cable, Fiber Optic cable और Microwave Media में संभव हैं।
Serial & Parallel Communication
(1) Parallel Transmission इसमें binary data को bits के समूह में संगठित कर लिया जाता हैं तथा इस संग्रहित डाटा को एक साथ Transmit किया जाता हैं। यह एक Wire के साथ बहुत से Wires Use में लेकर किया जाता हैं जिसमें हर Wire एक bit को ले जाता हैं या Transmit करता हैं । अर्थात् यदि 8 – bit भेजनी है तो 8 तारों का प्रयोग किया जायेगा। इसका उपयोग साधारणतया एक ही जगह पर स्थित Devices के बीच Data Transfer करने के लिए किया जाता हैं । जैसे Computer तथा Printer के बीच Parallel Communication Use में लिया जाता हैं इसलिए एक बार में ही सारा Data Transmit कर लिया जाता हैं ।
(2) Serial Transmission इस Transmission में एक Bit दूसरी bit का अनुसरण करती हैं। यह Long Distance में Data Transmission के लिए काम में आते हैं। दो Computer में Data Communication के लिए Serial Communication Use में लिया जाता हैं ।
Analog & Digital Transmission/Communication
किसी Transmission Medium में Data या Information को Electronic रूप में भेजना Signal कहलाता हैं ।
(i) Analog Signals – इसमें लगातार परन्तु परिवर्तित Electric Waves के द्वारा Data Transmission किया जाता हैं। अधिकतर Telephonic Circuit तथा कुछ Scientific Equipment Analog Transmission Use में लेते हैं। परन्तु Computer तथा उससे संबंधित विभिन्न उपकरण digital होते हैं। अतः उनके बीच Communication के लिए digital method उपयोग किया जाता हैं।
(ii) Digital Signals – इसमें Data Directly binary form ( 01 ) में Transmit किया जाता हैं। अगर दो Computer Devices के बीच analog media द्वारा Communication करवाना हैं तब कम्प्यूटर से निकलने वाले Digital data को Analog Form में Convert या Modulate करना आवष्यक होता हैं। किसी भी डाटा को Modulate या Convert करने के लिए Modem उपकरण की आवष्यकता होती हैं । अतः Digital Communication करने के लिए महंगें उपकरणों की जरूरत पड़ती है। तथा उन्हें दोनों पर लगाना आवष्यक होता हैं जिनके बीच Communication होना हैं।
MODEM (Modulation and Demodulation) दो कम्प्यूटर के बीच Communication कई तरीकों से किया जा सकता हैं। अगर कम्प्यूटर किसी Office Building या किसी University Campus आदि में स्थित है तो उन्हें Directly Connected किया जा सकता हैं । परन्तु अगर Computers एक दूसरे से बहुत अधिक दूरी पर स्थित होते हैं तो उनके बीच Communication करने के लिए Telephone Lines को उपयोग में लिया जाता हैं। जैसे Internet Telephone Lines सिर्फ analog Type के डाटा को Transmit कर सकती हैं। जबकि कम्प्यूटर सिर्फ digital संकेत ही समझता हैं।
Modem Computer Signals जो कि Digital Form में होते हैं उन्हें analog Signal में Convert करके Telephone Line के द्वारा Transmit करता हैं । modem analog Signals को प्राप्त करके उन्हें वापस Digital form में भी convert करता हैं ताकि data receive करने वाला कम्प्यूटर उसे accept कर सके। इस Process को Modulation तथा demodulation कहा जाता हैं। Modem में एक Codec ( Compressor & Decompressor) Chip लगी होती हैं जो कि एक Electric Circuit होती हैं जो Modulation और demodulation का काम करती हैं । यह दो प्रकार की तकनीकों का काम करता हैं
(1) PCM (Pulse Code Modulation) तकनीक जिसके द्वारा वह Data Transmission का कार्य करता हैं ।
(2) Delta Modulation Technique (DMT) Modem 2 प्रकार के होते हैं ।
(1) Land Line Modems
(2) Wire less Modems
(1) Land Line Modems – ये ऐसे modems होते हैं जो direct Telephone Line से जुड़ कर अपना काम करते हैं। Telephone Line से जुड़ने के लिए Modem के पास एक jack होता हैं। जिसको RJ-11 Jack कहा जाता हैं। इसी R3- 11 में Telephone Cable को लगाया जाता हैं। इनको 4 भागों में बांटा गया हैं :-
(a) Internet (b) External (c) PCMCIA (d) Voice /data/Fax
(a) Internal Modems यह CPU में Mother board पर Installl किए जाते हैं। ये CPU की शक्ति से Encoding व decoding का कार्य करते हैं।
(b) External Modems – ये भी वही काम करते हैं परन्तु ये कम्प्यूटर के बाहर install किए जाते हैं। यह Internet Modems से मंहगे होते हैं । यह Computer के Serial Port से DB-9 तथा DB-25 नाम के Connector द्वारा जुड़े जाते हैं। यह उस समय अधिक useful होता हैं। जब बहुत सारे User को एक Signal Modem की जरूरत होती हैं।
(c) PCMCIA – यह Modem Credit के Size के होते हैं और इनको Laptop में लगाया जाता हैं | PCMCIA का मतलब Personal computer Memory Card International Association हैं ।
(d) Voice/Fax/data – सभी Modems Voice / Fax / data की Facility देते हैं । परन्तु किसी Particular Special Type का काम करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता हैं।
(II) Wireless Modems – इसका Use Mobile Computing Devices में लिया जाता हैं। जो कि एक तरह से Radio Transmiters व Reccivers का काम करते हैं। इसका Generally Use Mobile Phones तथा Laptops में होता हैं । यह Modem Wireless Transmission Network से बाहर होने पर कार्य नहीं करता हैं ।
Synchronous and Asymchronous Transmission
(i) Synchronous Transmission Synchronous Transmission में डाटा फ्रेम के रूप में होता हैं जो कि विभिन्न Bytes के समहों से बना होता हैं। Receiver इस फ्रेम से Bytes को अलग कर लेता हैं | Synchronous Transmission को निम्न चित्र के माध्यम से दर्षाया गया हैं :
(ii) Acynchronous Transmission – Asynchronous Data Transmission में डाटा Bytes के साथ Stop Bit और Start Bit लगा दी जाती हैं जिसका उद्देष्य Receiver को प्रत्येक Byte के आरम्भ और समाप्त होने के बारे में सूचना देना हैं। इसमें Data Transfer Byte के रूप में होता हैं जैसे कि चित्र में दिखाया गया हैं:-
Data और Information के Transmission को Data Communication कहते हैं । Data CommunicationComputer Network की सहायता से किया जाता हैं। जब दो या दो से अधिक कम्प्यूटरकिसी Media (तार अथवा बेतार) कीसहायता से परस्पर संपर्क में होते हैं तो इस प्रकार की व्यवस्था Computer Network कहलाती हैं।
Comupter Network के लाभी :-
(1) Data को Electronic रूप में आदान-प्रदान से कार्य प्रणाली में तीव्रता आती हैं और समय की बचत होती हैं ।
(2) Hardware devices का अनेक Computers द्वारा सम्मिलित रूप से उपयोग होता है, इसलिए Computerisation की Cost कम आती हैं ।
(3) एक डाटा और Information को अनेक व्यक्ति एक बार में प्राप्त कर सकते हैं, जिससे Files को परस्पर आदान-प्रदान करने की आवष्यकता नहीं रहती हैं ।
Computer Networks को तीन प्रकार में बांटा गया हैं :-
(I) LAN (Local Area Network) – Lan y digital Communication Network Geographical Area में स्थित बहुत सारे Computer Terminals तथा अन्य Devices को आपस में Connect करता हैं । यह Limited Area 1,2 या 5 Km. का दायरा हो सकता हैं। जिससे एक जगह सू दूसरी जगह डाटा भेजा जा सके तथा अन्य Hardware Resources का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके। साधारणतया LAN छोटे Area जैसे Office Building/Campus, Institutions के अंतर्गत उपयोग में लिया जाता हैं। LAN के अंतर्गत सभी Computers कई तरीकों से जैसे Ring, Star, Bus आदि से आपस में Connect किए जा सकते हैं | LAN में विभिन्न Devices को एक Simple Cable द्वारा Directly Attech किया जा सकता हैं। LAN में Normally Cable Coaxial या Fiber Optic Cable ही उपयोग में ली जा सकती हैं। अतः LAN के अंतर्गत Transmission Speed बहुत Fast होती हैं। इसके मुख्यतः दो उद्देष्य हैं :-
(1) किसी संस्था में स्थित कम्प्यूटरको आपस में Connect करना जिससे वे मंहगें उपकरणों को Share कर सके। जैसे Printer, Magnetic Disk.
(2) आपस में Communication की सुविधा प्रदान करना । LAN में प्रयोग किए जाने वाले कुछ प्रमुख Protocol निम्नलिखित हैं :-
(1) Ethernet – यह Xerox Corporation द्वारा विकसित किया गया हैं। इसमें Coaxial Cable के द्वारा डाटा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते हैं।
(2) Omninet – यह CORVUS System द्वारा विकसित किया गया हैं। इस Network में विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटरका प्रयोग किया जाता हैं।
(II) MAN (Metropolitan Area Network) – लगभग 100 Km. के क्षेत्र में या एक बड़े शहर में की गयी Networking को MAN कहते हैं। इसमें कई LAN को आपस में जोड़ दिया जाता हैं। इसे एक शहर की विभिन्न इमारतों में स्थापित किया जा सकता हैं। जैसे • Television के Sets को Connect करके एक City की सीमा हेतु सीमित होता हैं।
(III) WAN (Wide Area Network ) – यह एक digital Communication System हैं। इसके अंतर्गत अलग-2 जगलें पर रखें Computers तथा अन्य Terminals को Connect करके Communication की सुविधा प्रदान की जाती हैं। यह Network LAN की तरह किसी भी क्षेत्र तक सीमित नहीं होता। इसे Zonal, Regional, National तथा International Level पर स्थापित किया जा सकता हैं । इस Communication Network को अंतर्गत Transmission के लिए Public System जैसे Telephone Link Microwaves तथा Satellite Link का उपयोग किया जाता हैं। LAN की अपेक्षा WAN की गति धीमी हैं ।
U.S. Department of Defence advance research Project Agency ARPANET WAN मुख्य उदाहण हैं ।
कुछ प्रमुख Wan Project निम्नलिखित है :-
(1) X.25 Protocal – यह धीमी गति का Protocol हैं। इसकी Bandwidth 50 kbps हैं।
(2) ATM (Asynchronous Transmission Mode) – यह सर्वाधिक उच्च Band width का Protocal हैं जिसकी गति 622 Mbps हैं।
INDONET – इसे कम्प्यूटर Maintenavce Corporation India (CMC) द्वारा 1985 में विकसित किया गया। यह तीन IBM/4361 का हैं, जिनमें से एक-2 मुम्बई कोलकता व चेन्नाई में स्थापित किया गया हैं, व अन्य एक PDP 11/44 दिल्ली में लगा हुआ हैं।
Difference Between LAN & WAN
Modulation Technics/Methods
Modulation तीन रूप प्रयोग में लिए जाते हैं
(1) Amplitude Modulation (AM)
(2) Frequency Modulation (FM)
(3) Phase Modulation ( PM )
(1) AM – यह सबसे Lower Level का Modulation होता हैं। इसमें digital data के दोनों Binary Values को Signal के दो विभिन्न Amplitude के द्वारा प्रदर्षित किया जाता हैं। इसमें Signal की Frequency तथा Phase स्थिर रखी जाती हैं। ध्वनि के लिए प्रयुक्त Lines में तकनीक का प्रयोग 1200 bps गति के लिए किया जाता हैं जो कि बहुत कम Speed हैं। परन्तु इस प्रकार के Signal Electric Spark तथा अन्य प्रकार के Noise Signals से अतिषीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। यनि disturbance बहुत ज्यादा आने की सम्भावना रहती हैं। इसमें Voltage को घटाया या बढ़ाया जा सकता हैं।
(2) FM – इसमें Digital Data को दो भिन्न – 2 आवृतियों द्वारा प्रदर्षित किया जाता हैं जबकि Signals का Amblitade तथा Phase स्थिर रखे जाते हैं इनका निर्माण सरल होता हैं तथा ये Noise या Order Disturbance को कम Absorb करता हैं या अपेक्षाकृत कम प्रभावित होने वाली होती हैं। यह मध्यम गति के Data Transmission के लिए यही तकनीक प्रयुक्त की जाती हैं। इसकी Speed 1200-2400 bps की होती हैं ।
Frequency Modulation
(3) PM – इसमें Digital Data को दो Binary Value को Signals के Phase में दो भिन्न विस्थापनों द्वारा प्रदर्षित किया जाता हैं यह तकनीक अधिक प्रभावी हैं तथा उच्च गति के Transmission (9600 bps or more ) के लिए प्रयुक्त की जाती हैं। इसमें Error और Disturbance कम से कम आने की सम्भावना रहती हैं। इसमें Angle को Check किया जाता हैं। 180° Angle बनता हैं तो वहां 0 bit होता हैं। और जहां पर हल्का सा Vibration होता हैं और Angle थोड़ा सा भी 45° या 30° बनता हैं तो वहां 1 bit होता हैं ।
Network Topologies or Network Structure
किसी Network में दो या दो से अधिक कम्प्यूटरकिसी माध्यम द्वारा Data Communication तथा Resource Sharing के उद्देष्य से आपस में जुड़े होते हैं । Networking में Topology का अर्थ हैं कि किसी तरह से सभी Computers आपस में एक दूसरे से जुड़े होते हैं । अतः किसी Network के Structure ही Network Topology कहलाती हैं। किसी Network Structure में कम्प्यूटरआपस में कई प्रकार से जुड़े हुए हो सकते हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :-
(I) Star Network – इसके अंतर्गत एक Main Computer होता हैं जो डाटा को Collect करता हैं जिसे सीधे विभिन्न Local Computers से जोड़ दिया जाता हैं । अर्थात् इस तरह के Network में विभिन्न Local Computer सीधे आपस में एक दूसरे से Connect नहीं होते हैं बल्कि वे केवल Main Computer सेज जुड़े रहते हैं एवं यदि उन्हें आपस में कोई Data Transmission करना है तो यह Main Computer के द्वारा ही किया जा सकता हैं। इसी Main Computer के द्वारा ही पूरे Network को Control किया जाता हैं।
लाभ (Advantage) –
(1) इसमें लाईन कम बिछानी पड़ती हैं जिससे Line की Cost सबसे कम आती हैं क्योंकि N-Modes को जोड़ने के लिए N-1 Lines की आवष्यकता होती हैं ।
(2) किन्हीं दो कम्प्यूटर के बीच Communication Time हमेषा Same रहता हैं । अर्थात् इसमें कम्प्यूटरकी संख्या बढ़ाये जाने पर एक कम्प्यूटरसे दूसरे कम्प्यूटरपर Information के आदान-प्रदान की गति प्रभावित नहीं होती क्योंकि दो कम्प्यूटरके बीच केवल Main Computer ही होता हैं ।
(3) यदि कोई कम्प्यूटरखराब होता हैं तो शेष Network इससे प्रभावित नहीं होगा।
हानि (Disadvantage) –
इसका मुख्य दोष यह हैं कि यदि किसी कारणवष Main Computer खराब हो जाये तो पूरा का पूरा Network Fail हो जाता हैं।
(II) Ring Network – इस प्रकार के Network में कोई Main Network नहीं होता हैं बल्कि Network के सभी कम्प्यूटरअपने आप में स्वतंत्र होते हैं जो कि अपने से संबंधित दोनों ओर के केन्द्रों को सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं। यदि nodes को किसी अन्य दूर स्थित nodes को Communication करना होता हैं तो यह कार्य इनके अगले node द्वारा एक Logical Path बनाकर आसानी से कर दिया जाता हैं। इस Network में सभी nodes एक दूसरे से जुड़कर Ring की आकृति बना लेते हैं यदि हम Network के किसी भी nodes से प्रारम्भ होकर चलना शुरू करे तो हम सभी nodes से होकर वापस उसी nodes तक पहुंच जाते हैं ।
जैसे कोई node कोई सूचना प्राप्त करता हैं तो उसे केवल यह निर्णय लेना होता हैं कि संबंधित सूचना उसके स्वयं के उपयोग हेतु दी गई हैं अथवा इसे किसी अन्य आगे के node को भेजना हैं एवं उस प्रकार से निर्णय लेकर यह Network अपना कार्य सम्पन्न कर लेता हैं। कोई भी Information किसी Comuter को भेजने के लिए उस Information के साथ उस Particular Computer का Address भी भेजा जाता हैं। इसमें 2 Way Communication हो सकता हैं और इसमें Reliability बढ़ जाती हैं ।
लाभ (Advantage) :-
(1) इसमें Data Transmission के लिए किसी Main Computer पर निर्भर नहीं होना पड़ता ।
(2) यदि किसी एक तरफ का node खराब हो जाए तो Data Transmission दूसरी दिषा की तरफ से भी किया जा सकता हैं।
(3) यह Network अच्छा कार्य करता हैं, क्योंकि इसमें कोई Main Computer की Controling नहीं होती।
हानि (Disadvantage) :-
(1) इसमें जितने अधिक nodes होगें Data Transmission में उतना ही अधिक समय लगेगा।
(2) इस Network पर कार्य करने के लिए अत्यन्त जटिल Software की आवष्यकता होती हैं जो यह पता लगा सके कि जो Information आई है उस node के लिए हैं या किसी और node के लिए हैं ।
(III) Bus Network इस Method में सभी node द्वारा एक Signal Transmission Medium Use में लिया जाता हैं सभी node एक Same Line से Attach रहते हैं जब कोई कम्प्यूटरकिसी दूसरे कम्प्यूटरको कोई संदेष भेजना चाहता हैं तो वह Message के साथ Destination Address Add कर देता हैं तथा यह check करता हैं कि Communication Line Free हैं या नहीं जैसे ही Line Free होती हैं तो वह Message को Line द्वारा Broad Cast कर देता हैं। जैसे – 2 Message Line में आगे बढ़ता है उसमें जुड़े हुए nodes उस Message को चैक करते हैं कि वह उनके लिए है या नहीं इस तरह Message Address Computer तक पहुंच जाता हैं तथा वह Computer Source Computer को वापस acknowledge भेजता हैं तथा line को Free कर देता हैं इसे Multi Point Network भी कहते हैं इस तरह का Method LAN में उपयुक्त रहता हैं जहां Computer एक Limited Area में Coonetied रहते हैं। अगर डाटा किसी भी node में नहीं मिलता हैं तो वह end point पर पहुंच कर Lost हो जाएगा।
लाभ (Advantage) :-
(1) इसमें Physical Line एक ही होती हैं । कोई भी डाटा एक ही लाईन से होकर जाता हैं।
(2) इसमें Network की विष्वसनीयता बढ़ जाती है क्योंकि अगर एक node Fail हो जाए तो Network की कार्य प्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(3) Network से अन्य कम्प्यूटरजोड़ना आसान होता हैं।
हानि (Disadvantage) :-
(1) Line से जुड़े हर कम्प्यूटरमें अच्छे Communication तथा निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।
(2) अगर Communication Line Fail हो जाये तो पूरा Network टूट जाता हैं।
(IV) Hybrid Network – इस प्रकार के Network का कोई निष्चित आवष्यकतानुसार Network Star, Ring में से किन्हीं दो या तीन Network को मिश्रीत करके बना सकते हैं अतः इस प्रकार के Network में मुख्यतः प्रत्येक संगठन विषेष की आवष्यकताओं के अनुरूप बनाए जाते हैं।
(V) Mesh or Completely Connected Network – इस तरह के Network में कोई भी node कभी भी कहीं से भी डाटा ले भी सकता हैं वह भेज भी सकता हैं अर्थात् सभी nodes एक दूसरे से विभिन्न अलग Communication Media द्वारा जुड़े रहते हैं। इस प्रकार के Network में कोई भी Main Computer नहीं होता हैं बल्कि सभी अपने आप में स्वतंत्र node होते हैं। इसमें सभी Computers के आपस में जुड़े होने के कारण इसे Point-to-point Network भी कहा जा सकता हैं। इसमें Data के आदान–प्रदान का निर्णय प्रत्येक कम्प्यूटरके द्वारा स्वयं किया जाता हैं।
लाभ (Advantages) :-
(1) यह Network सबसे अधिक विष्वसनीय हैं क्योंकि इसके अंतर्गत कोई भी एक Channel टूट जाता हैं तो भी पूरे Network का कार्य प्रणाली पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता हैं क्योंकि इससे इतनी Lines जुड़ी होती कि यह किसी से अपनी क्रियाओं को सम्पन्न कर सकते हैं ।
(2) इस प्रकार के Network में Data Transmission Speed सबसे Fast होती हैं। इसमें कोई Intellegent Softwares की जरूरत नहीं होती हैं जैसा की Ring या Star में था।
हानि (Disadvantage) :-
इस Network का मुख्य दोष यह होता हैं कि यह अत्यधिक मंहगी हैं क्योंकि सभी nodes को एक दूसरे से जोड़ने के लिए Communication Devices तथा Communication Media पर काफी व्यय करना पड़ता हैं।
(VI) Tree Network इस तरह के Network में nodes एक दूसरे से Hierarchical Format में जुड़े रहते हैं । उपरी node rood mode कहलाता हैं | Root node से जुड़े हुए उसके कुछ Child node हो भी सकते हैं या नहीं भी । Root Node उन Child node का Parent node कहलाता हैं। प्रत्येक Child node के भी Children हो सकते हैं। इस Tree Structure में प्रत्येक Node का एक Parent node अवष्य होता हैं | Tree Structure में सभी nodes Root node के decendents होते हैं। यह Relationship यह निष्चित करता हैं कि Tree में एक node से दूसरे node तक जाने का केवल एक Path होता हैं ।
Types of Connection :-
(1) Dial up Connectivity
(2) Leased Lines
(3) ISDN (Integrated Services Digital Network)
(1) Dial up Connectivity – Dial up एक ऐसी Service हैं जिसे Telephone की सुविधा उपलब्ध कराने वाली कम्पनी प्रदान करती हैं। यह Internet से Connect होने का सबसे Simple व सस्ता तरीका हैं। इस तरह की Connectivity के लिए एक कम्प्यूटरकी आवष्यकता होती हैं जिसमें एक मॉडम होना चाहिए जो Phone Line द्वारा कम्प्यूटरको Connect करेगा। कोई भी User ISP (Internet Service Provider) से Connect होने के लिए उस Exchange का Number Dial करता हैं इसके लिए हर User को ISP द्वारा Internet ok प्रदान किया जाता हैं। जिसके अंतर्गत उसे “User Name ” तथा “Password” दिये जाते हैं। जब हम PC पर Dial Up Method Use में लेते हैं तो हमारा Computer ISP से Communication Run करता हैं जिसके द्वारा हम Host Computer (ISP) को Internet पर जाने के लिए कहते हैं। इस तरह का Communication किसी घर या छोटे Office में अधिकर उपयोग में लिया जाता हैं। तथा इसकी Speed सबसे कम होती हैं। इसकी Band Width कम होती हैं, जो कि 0 से 400 Hz तक हो सकती हैं ।
(II) Leased Line Networking – यह भी एक Modem Base Connection हैं जिसे तभी उपयोग में लिया जाता हैं जब इसकी आवष्यकता होती हैं अर्थात् इस तरह के Communication में Telephone Line Lease पर ले ली जाती हैं। इसमें Telephone Exchange से Request कर एक Line Lease पर ले ली जाती हैं जिसे कोई दूसरा User काम में नहीं ले सकता इससे Data Transmissio Speed Fast हो जाती हैं । यह उन संस्थाओं द्वारा उपयोग में लिया जाता हैं जो Web Server Use में लेते हैं जहां बहुत अधिक मात्रा में mails आती जाती रहती हैं वहां के सभी User हर समय Internet से Connect रहते हैं क्योंकि उन्हें समय नई Information की आवष्यकता रहती हैं इसके लिए एक Permanent Connection की आवष्यकता रहती हैं इसके लिए एक Permanent Connection की आवष्यकता रहती हैं जो Higher Band Width पर Data Transmission की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। इसमें Circuits Switching Technic Use में लिया जाता हैं। इसमें भी Data Connectivity रखने के लिए जगह-2 पर Repeaters तथा Connectors लगा रखे होते हैं।
(III) ISDN – यह एक digital Telephone Service हैं। ISDN द्वारा आज के Analog Type के Telephone Network को Digital System में Convert किया जाता हैं। ISDN 128 kmps की गति से कार्य कर सकता हैं जो आज के analog Modem से 5 गुणा अधिक फास्ट हैं। ISDN Internet अथवा Remote LAN Connection पर डाटा Transfer की Speed को बहुत अधिक बढ़ा देता हैं जिससे Graphics, audio तथा Video Fast Speed से प्राप्त किये जा सकते हैं। ISDN Service कई प्रकार की होती हैं परन्तु सबसे अधिक प्रचलित Basic Rate Interface (BRI) हैं | BRI ISDN Telephone Line को तीन Digital Channels में divide कर देता हैं जिसमें दो B- Channel में divide कर देता हैं जिसमें दो B- Channel (Bearer Channel ) तथा एक D-Channel (Data Channel) कहलाती हैं। ये तानों Channels एक साथ कार्य कर सकती हैं अतः इस कारण Same Twisted Pair Cable Copper Telephone Line जो पहले एक बार केवल एक प्रकार का डाटा (Voice, Fax, Internet) ले जा सकती थी अब उसके द्वारा एक ही समय में तीनों कार्य एक साथ किए जा सकते हैं।
ISDN की कुछ विषेषतायें इस प्रकार हैं :-
(1) यह एक Standard Transmission Medium के Group का निर्माण करता हैं जो कि डाटा को अधिक तेजी से खोज सकता हैं।
(2) यह हर प्रकार के Information का व्यवस्थित करता हैं। जैसे – Voice, data, Moving image तथा Sound.
(3) यह सारी devices तथा सारे Telephone Numbers को एक ही Line पर व्यवस्थित करता हैं इस Service में आठ Telephone तथा Fax Machine साथ में जोड़े जा सकते हैं ।
(4) यह तीन Phone Cells को एक साथ Support कर कता हैं।
(5) यह Surtched Digital Connection का उपयोग करता हैं जिससे इसके आने वाला खर्चा भी बहुत कम हो जाता हैं।
Communication Processor – Data Communication Network में Network निर्माण का उद्देष्य आवष्यक डाटा को सही समय पर सही स्थान पर त्रुटि रहित तथा कम से कम लागत में पहुंचाना होता हैं इस कार्य को प्रभावी ढंग से करने के लिए Communication Processor की आवष्यकता होती हैं जिनमें प्रमुख हैं :-
(1) Multiplexer
(2) Coricentrator
(3) Front end Processor
(1) Multiplexer – The Method of dividing a Physical Channel into many Logical Channels is that a number of Independent Signals may be simultaneously Transmitted on it is known a Multiplexing. The Electronic device that Performs this task is known as Multiplexer.
प्रायः ऐसा होता हैं कि Communication Channels की क्षमता उस पर भेजे जाने वाले एक Signal से कहीं अधिक होती हैं। जैसे कि यदि किसी Channel की Band Width 9600 kbps हैं और Network Computer से जुड़े प्रत्येक Terminal की Data Transmission Rate 300 bps है तो ऐसे में एक बार में एक ही Terminal द्वारा पूर्ण channel का उपयोग किया जाता हैं तो Channel की क्षमता का पूरा सदुपयोग नहीं हो पाता हैं Channel एक मंहगा साधन हैं अतः उसके अधिकतम प्रयोग के लिए एक साथ एक से अधिक Signal प्रवारित करने के सुविधा हो तो यह सर्वोतम होता हैं। इस कार्य के लिए Multiplexer को उपयोग में लिया जाता है। इस कार्य के लिए जो एक Physical Channel को अनेक Logical Channel में बांट देता हैं। जिससे प्रत्येक में अलग- 2 Signal एक साथ भेजे जा सके। इस विधि को Multiplexing कहते हैं।
Multiplexing की मुख्य दो विधियां हैं –
(1) FDM (Frequency Division Multiplexing)
(2) TDM (Time Division Multiplexing )
(1) FDM – इसमें Media की सम्पूर्ण Band Width की अनेक छोटे तथा अलग – 2 Logical Band Gaps में बांट दिया जाता हैं प्रत्येक छोटी Band Width एक अलग Communication Line की तरह ही काम में ली जाती हैं । FDM का सर्वोत्तम उदाहरण Radio हैं। जिसमें विभिन्न Radio Stations को सुना जा सकता हैं। प्रत्येक Radio Stations को उपलब्ध Radio Frequency में से एक निष्चित Frequency Range निष्चित कर दी जाती हैं। इस प्रकार कई Radio Stations अपने ध्वनि Signals को एक साथ Broad Cast कर पाते हैं | Radio का Tuning System Station विषेष के Signal को अलग कर देता हैं। FDM के लिए Signal का Analog Form में दोना अनिवार्य हैं।
(2) TDM – किसी Communication Media की Bit Rate Digital Signal को भेजने के लिए आवष्यक Rate से सदैव अधिक ही रहती हैं इस तकनीक में Channel में उपलब्ध कुल समय को अनेक User के बीच बांट दिया जाता हैं और प्रत्येक का एक समय निर्धारित कर दिया जाता हैं। इस प्रकार प्रत्येक User केवल अपने समय में ही डाटा भेजता हैं। इस प्रकार इन Users द्वारा प्रेषित अनेकों Data Stream को मिलाकर डाटा भेजा जाता हैं जिससे Channel की क्षमता का पूर्ण उपयोग हो जाता हैं। इस Mix हुए Data को Receiver स्थान पर D-Multiplex करना पड़ता हैं । TDM तकनीक का प्रयोग Digital तथा Analog दोनो प्रकार के Signals की Multiplexing में किया जा सकता हैं।
(II) Concentrator – यह एक Intelligent Multiplexer हैं। इसमें यह क्षमता भी होती हैं कि भेजे जाने वाले Signal की संख्या घटा सके। इसके लिए Devices में Processing क्षमता होनी आवष्यक हैं। अतः Concentrator में Micro Processor का प्रयोग होता हैं। इसलिए यह कह सकते हैं कि Intelligent Multiplex ही Concentrator हैं। इनका उपयोग लम्बी दूरी के International Communication में किया जाता हैं । यह Rating तथा Error Control का काम भी करता हैं ।
(III) Front end Processor – Computer Network द्वारा Data Transmission में सूचना की गति के नियंत्रण की आवष्यकता होती हैं। इस कार्य को करने में ही मुख्य कम्प्यूटरकी काफी Processing क्षमता खर्च हो जाती हैं। इस कार्य को सुगम बनाने के लिए Front end, Processor का जन्म हुआ। यह एक अलग C.P.U. हैं जो केवल Network Processing के कार्य करता हैं जिससे मुख्य C.P.U. अपना कार्य बिना रूके कर सके।
Communicatin Software – अधिकतर Computer Application के कार्य करने के लिए appropriate Hardware तथा Software की आवष्यकता होती हैं। दो Computers के बीच Data Communication के उद्देष्य से Link Create करने के लिए कुछ Specialised Data Communication Software Use में लिये जाते हैं । Data Communication Software कई प्रकार के कार्य करता हैं। जिनमें प्रमुख हैं Data को Proper Speed से एक Point से दूसरे Point तक Transmit करना। Communication Software Transmit होने वाले डाटा के Check करके Transmission में आने वाली Error को Remove करते हैं। Communication Software किसी Communication Processor (Modem) को उपयोग में लेते हुए Link Connect तथा disconnect करते हैं। कुछ Communication Software किसी Network में Unauthorised Access को भी Control करते हैं । Communication Software Data को सही तरीके से किस तरह एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना हैं इसके लिए Computer System या Devices को निर्देष देते हैं।
Communication Protocols – A Protocol is a set of Rules & Procedures established to Control Transmission Between two Points so that the receiver can properly Interpret the bit Stream Transmitted by the Sender.
वे Processor जो Software में शामिल रहते हैं तथा जिन्हें वह Communication Software Data Transmission के लिए उपयोग में लेता हैं Communicatin Protocols कहलाता हैं ।
Roles of Protocol or Roles of Software (कार्य) :-
(1) Data का क्रम निर्धारण (Requencing) – किसी बड़े संदेष को छोटे-2 Blocks में बांटा जाता हैं। ये Block निष्चित आकार के Packets में और प्रत्येक Packets को डाटा Frame में विभाजित किया जाता हैं उसके साथ ही उनका क्रम निर्धारित कर दिया जाता हैं।
(It Refers tp breaking a long Transmission into Smaller Blocks & Maintaining Control i.e. a long Message is Split up into Smaller Packets of fixed size. These Packets are further Fragmented into data Frames.)
(2) Data का Path निर्धारण Source तथा Destination के बीच सर्वोत्तम path निर्धारण के लिए कुछ विषिष्ट Algorithim Use में लेते हैं ।
(3) Flow Control – यदि source Point Fast Speed से डाटा भेज रहा हैं जबकि Receiver Point Slow हैं तो वहां पर Flow Control की आवष्यकता होती हैं। जिससे डाटा के Lost होने की समस्या से बचा जा सकता हैं ।
(4) Error Control – Communication के दौरान डाटा में Error हो जाने पर उसे ज्ञात करना तथा Remove करने का कार्य Protocol द्वारा किया जाता हैं । साधारणतया किसी Frame में Error आ जाने पर मुझे वापस भेज दिया जाता हैं ।
(5) Connection Establishment अगर दो nodes या कम्प्यूटरको जोड़ना है तो सबसे पहले उसके कुछ Software चलाना पड़ता हैं जो कि Connection स्थापित करना पड़ता हैं उसके पश्चात् दूसरे कम्प्यूटरसे जुड़ा जा सकता हैं। जैसे Internet के द्वारा दूसरे कम्प्यूटरसे जुड़ना है तो सबसे पहले एक Software चलाना पड़ता हैं जो कि ISP से Internet की Connection की मांग करते हैं जब Internet का Connection प्राप्त हो जाता हैं तो उसके बाद दूसरे कम्प्यूटर से जुड़ा जा सकता हैं। इसमें भी Internet के द्वारा पूरी तरह से किसी एक कम्प्यूटरसे जुड़ा नहीं जाता इसके लिए एक और Software Use में लिया जाता हैं जिसे Telnet कहा जाता हैं। उसे चला कर उस Particular Computer का नम्बर डाला जाता हैं जिससे उसी कम्प्यूटर सेCon tion हो जाता हैं ।
Precedence (प्राथमिकता) & Order of Transmission – हर वे 2 Point जो Data Transmit कर रहे है उन्हें पता होता हैं कि कब किसे डाटा भेजना हैं, Receive करना हैं। ये निर्धारित करने का काम भी Protocol/Software करते हैं। ये File (First in First out) के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं इनके द्वारा ये भी decide किया जाता हैं कि कौनसा Data Important हैं उसे पहले भेजा जाए।
(7) Data Security – Data की सुरक्षा व गोपनीयता बनाये रखना भी Network Protocol की जिम्मेदारी हैं Data Unauthorised Person को प्रदान न हो सके इसके लिए Data Encsyption तथा Data Compression तकनीक काम में ली जाती हैं।
(8) Communication – Source तथा Receiver Stations के बीच link स्थापित करना Protocol का कार्य हैं ।
(9) Management – Data Transmission संबंधी सूचनाऐं रखना और उन्हें आवष्यकतानुसार उपलब्ध करना भी Data Communication Software का कार्य हैं। ये सूचनाऐं आर्थिक दृष्टि से आवष्यक होती हैं।
(10) Log Information – User में कब – 2 क्या – 2 काम किया हैं उसका Record बना कर रखा जाता हैं | Log File में वो सारी Information होती हैं जो user ने कब और क्या काम किया था उसे देख सकते हैं ।
OSI Model (Open System Interconnection)
पुराने समय में Computer Network के अपने स्वयं के Standards होते थे जो कि hardware Oriented थे जैसे IBM SNA (System Network Architechture) 1974 ✈ Launch ³ ¾ æ DEC (Digital Equipment Corporation) ने A80 में अपना Network बनाया जो DEC के कम्प्यूटरपर ही उपयोग में लिया जा सकता था। अतः एक Network का Communication Protocol किसी दूसरे Network के लिए उपयुक्त नहीं था । अतः विभिन्न Network के बीच Data Communication सम्भव नहीं था । इस समस्या के निदान के लिए ISO (International Standard Organisation) ने Network संरचना के लिए एक OSI Model Develop किया OSI Model के Protocol किन्हीं दो Network के बीच Data Transmission को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाए गये थे।
इस Model में Communication कार्यो को विभिन्न परतों ( Layers) में विभाजित किया जाता हैं। ये Layers होती हैं। प्रत्येक layers के स्वयं के कार्य तथा Protocols निर्धारित कर दिये गये हैं। प्रत्येक Layer अपने से उपर वाली Layer को निष्चित सेवाएं प्रदान करती हैं। किसी एक Network की कोई Layer दूसरे Network की उसी प्रकार की layer से Communication करती हैं। ये परतें (Layers) आपस में Vertually Connected रहती हैं यानि अदृष्य रूप से जुड़ी हुई रही हैं। ये layers हमेषा एक ही Sequence में रहती हैं ।
(1) Physical Layer The Physical layer Covers the Physical interface between devices. It defines the Electronic & Mechanical espects of interfacing to a Physical Medium for Transmitting data.
(2) Data Link Layer – This Layer is responsible For Establishing a error free Communication path between computers over the physical channel. It splits packets into data frames which are Transmitted requentially.
(3) Network Layer – The Message to be Transmitted if First Fragmented into packets at this layer. Then it performs requencing & Error Control of This pockets. Thus the routing decisions are taken at the network layer.
(4) Transport Layer – This layer Controls message flow between the sender and the receiver so that a fast sender does not over when a slow receiver with data.
(5) Session Layer The session layer provides means of establishing maintaining and terminating a session between two end users.
(6) Presentation Layer – This layer provides facilities to convert encoded transmitted data into display able form for being displayed on video terminal or primted on a printer.
(7) Application Layer – This is a user oriented layer. Which Provides services that directly support the end user of the network. The Offered services include the file transfers, remote file access, data base management etc.