(a) CRT Monitor –
अधिकतर कम्प्यूटर में इस प्रकार का मॉनीटर काम में लिया जाता हैं । यह Television के समान ही कार्य करता हैं इस प्रकार के मॉनीटर में ज्यादातर CRT (Cathod Rays Tabe) Monitor काम में लेते हैं CRT Monitor में Phosphor Coated Screen होती हैं। जब इलेक्ट्रॉन इस Screen पर गिरते हैं तो Screen पर रोषनी दिखाई देती हैं। इसकी Picture quality अच्छी होती हैं।
Black & White Monitor को Monochrome कहते हैं | Monochrome Monitor में इलेक्ट्रॉन की एक किरण उत्पन्न होती हैं। जबकि रंगीन कम्प्यूटर में RGB (Red, Green, Blue) की तीन किरणे उत्पन्न होती हैं।
CRT Monitor की बनावट – CRT Monitor में सबसे पीछे एक Tube होती हैं जिसे CRT (Cathod Ray Tube) कहते हैं इसमें एक Filament लगा रहता हैं जो गर्म होता हैं । CRT के आगे की तरफ तीन Electron Gun होती हैं जिसमे से तीन अलग–2 रंग निकलते हैं इसमें आगे की तरफ एक Focusing Device होता हैं । यह Focusing Device Rays को एक सीधी रेखा में बनाए रखता हैं। इससे आगे की तरफ Magnetic Deflection Coil होती हैं जो Rays के direction को Decide करती हैं जो कि आगे कि तरफ Phosphor Coated Screen पर गिरती हैं जिससे यह Screen Glow करती हैं।
Mechanism – CRT Raster Graphic Theory पर कार्य करती हैं जिसमें Picture Tube में से वायु निकाल कर निर्वात कर लिया जाता हैं और Electron की पतली Beam छोड़ी जाती हैं ।
Filament के गर्म होने से Electron की Firing होती हैं | Filament को कम व तेज गर्म किया जा सकता हैं | Electron Guns Firing करने में काम आती हैं जिसमें से तीन अलग- 2 कलर निकलते हैं। ये Rays Focusing device में से गुजरती हैं जो इन्हें एक सीधी रेखा में बनाए रखता हैं ये Ray आगे magnetic Deflection Coil में से गुजरती हैं जिससे Rays का direction Decide होता हैं ।
जब Rays Screen पर गिरती हैं तो Phosphor Coated Screen Glow होती हैं। इसमें छोटे – 2 Pixels होते हैं प्रत्येक Pixels Electron की एक Beam में चमकता हैं । Screen के सभी Pixels को चमकाने के लिए Electron Beam Z आकृति में चलती हैं इसका मतलब यह 0,0 Position से Glow करना शुरू करती हैं व पूरी Screen के Pixels Glow करके अन्तिम सिरे से पुनः 0,0 स्थिती पर आ जाती हैं Electron Beam की Z आकृति की यह गति Raster कहलाती हैं।
Screen के Pixels कुछ देर तक ही चमकते हैं इसलिए लगातार चमकाने के लिए उन्हें बार- 2 Refresh करना पड़ता हैं। बार – 2 Refresh करने की दर Refresh Rate कहलाती हैं जो प्राय: 30 Times / Second होती हैं । Refresh Continue होने से ही Image दिखाई देती हैं Refresh Rate कम होने से Picture Tube हिलती या लहराती दिखाई देती हैं।
प्रत्येक Pixels की चमक Electron Beam की तीव्रता पर भी निर्भर करती हैं ।
Mechanism के आधार पर Monitor को दो भागों में बांटा गया हैं
(1) Random Scan Method Monitors
(2) Raster Scan Method Monitors
(1) Raster Scan Method – इस Method के अन्तर्गत Rays Screen के Starting से End तक Z Form में चलती रहती हैं तथा End Point पर पहुँचने के बाद वापस Starting पर पहुँच जाती हैं तथा पूरी Screen Refresh होती हैं। जहां Image बनानी हैं वहीं Area Glow होगा ।
(2) Random Scan Monitor – इसमें पूरी Screen Refresh नहीं करता हैं। उन Pixels को Glow करेगा जहां Image बनानी हैं इन्हें Vector Monitor व Vector Device Or Vector Display Monitor भी कहा जाता हैं।
(b) LCD – (Liquid Crystal Display) – यह एक Digital Display System हैं। जिसमें कांच की दो परतो के मध्य पारदर्षी द्रवीय पदार्थ होते हैं । LCD की बाहरी परत Tin Oxide द्वारा Coated होती है LCD Monitor अधिकाषतः लेप टॉप कम्प्यूटर में काम में लिये जाते हैं इस तरह की Screen Lap Top के अतिरिक्त Calculator, Videogame व Digital Camera में काम ली जाती हैं ।
लाभ –
(1) इसमें कम बिजली का उपयोग होता हैं ।
(2) इनका आकार छोटा होता हैं ।
हानि –
(1) यह अधिक मंहगा होता हैं ।
(2) Resolution अधिक अच्छा नहीं होता हैं ।
(c) प्लाजमा मॉनीटर (Plasma Monitor) – प्लाजमा मॉनीटर मोटाई में बिल्कुल पतला होता है जो शीषे (Glass) के दो शीट के बीच में एक विषेष प्रकार के गैस को डालकर बनाया जाता हैं । यह विषेष प्रकार का गैस नियोन (Neon) या जेनन (Xenon) होता हैं जब गैस को छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉड (Electrodes) के ग्रिड (grid) के माध्यम से विद्युतीकरण (Electrified) किया जाता हैं तब यह चमकता हैं। ग्रिड के विभिन्न बिन्दुओं पर जब एक विषेष माप कर वोल्टेज दिया जाता तब यह पिक्सेल के रूप में कार्य करता हैं तथा कोई आकृति (Image) प्रदर्षित होता हैं ।
(d) पेपर–व्हाइट (Paper White Monitor)- इस प्रकार का मॉनीटर कभी-कभी डॉक्यूमेन्ट डिजाइनर जैसे डेस्कटॉप पब्लिषिंग स्पेषलिस्ट, समाचार पत्र या पत्रिका कम्पोजिटर तथा वैसे लोग जो उच्च-क्वालिटी के छपे हुये डॉक्यूमेन्ट (Printed Documents) बनाते हैं, के द्वारा प्रयोग किया जाता हैं। पेपर – व्हाइट मॉनीटर मॉनीटर के श्वेत बैकग्राउन्ड तथा प्रदर्षित टैक्स या ग्राफिक्स के मध्य उच्च कन्ट्रास्ट (Contrast) बनाते हैं, जो सामान्यतः काला दिखता हैं। इसके एल.सी.डी. (LCD) संस्करण को पेज- व्हाइट मॉनीटर कहते हैं। पेज–व्हाइट मॉनीटर एक विषेष प्रकार की तकनीक प्रयोग करते हैं जिसे सुपरटविस्ट (Spuertwist) कहते हैं, जो अधिक कन्ट्रास्ट (Contrast ) बनाने में सक्षम होता हैं ।
(e) इलेक्ट्रोल्यूमिनेसेन्ट डिस्प्ले / मॉनीटर (Electroluminiscent Display or Monitor)- इस प्रकार का मॉनीटर LCD मॉनीटर के समान ही होते हैं। अंतर केवल इतना होता हैं कि इसमें ग्लास के दोनों शीट के मध्य फास्फोरेसेन्ट (Phosphorescent) फिल्म का प्रयोग किया जाता हैं। तारों के ग्रिड (grid) फिल्म (film) के माध्यम से धारा (Current) प्रवाहित करते हैं जिससे आकृति (Image) बनती हैं।
मॉनीटर के मुख्य लक्षण (Main Characteristics of a Monitor)
सामान्यतः एक मॉनीटर में कुछ लक्षण देखी जाती हैं जो मॉनीटर की कार्य क्षमता को निर्धारित करते हैं। ये लक्षण निम्नलिखित हैं-
रेजोल्यूषन (Resolution) – डिस्पले डिवाइस का महत्त्वपूर्ण लक्षण होता है – रेजोल्यूषन (Resolution ) या स्क्रीन के चित्र की स्पष्टता (Sharpness) अधिकतर डिस्पले (Display) डिवासेज में चित्र (Image) स्क्रीन के छोटे-छोटे (Dots) के चमकने से बनते हैं। स्क्रीन के ये छोटे-छोटे डॉट (Dots), पिक्सेल (Pixels) कहलाते हैं । यहाँ पिक्सेल (Pixel) शब्द पिक्चर एलिमेंट (Picture Element) का संक्षिप्त रूप हैं। स्क्रीन पर इकाई क्षेत्रफल में पिक्सेलों की संख्या रेजोल्यूषन (Resolution ) को व्यक्त करती हैं । स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सेल होगें, स्क्रीन का रेजोल्यूषन (Resolution ) भी उतना ही अधिक होगा अर्थात् चित्र उतना ही स्पष्ट होगा। एक डिस्पले रेजोल्यूषन माना 640 by 840 है तो इसका अर्थ हैं कि स्क्रीन 640 डॉट के स्तम्भ (Column) और 480 डॉट की पंक्तियों (Rows) से बनी हैं ।
टैक्सट के अक्षर कैरेक्टर (Character) स्क्रीन पर डॉट मैट्रिक्स (Dot Matrix ) विन्यास से बने होते हैं । समान्यतया मैट्रिक्स का आकार 5×7 = 35 पिक्सेल या 7 x 12 84 पिक्सेल के रूप में टैक्स्ट डिस्प्ले करने के लिए होता हैं। इस प्रकार एक स्क्रीन पर 65 कैरेक्टर की 25 पंक्तियाँ डिस्प्ले की जा सकती हैं। स्क्रीन पर हम इससे अधिक रेजोल्यूषन (Resolution) प्राप्त कर सकते हैं 1
रिफेश रेट (Refresh Rate) – कम्प्यूटर मॉनीटर लगातार कार्य करता रहता हैं, यद्यपि इसका अनुभव हम साधारण आँखों से नहीं कर पाते हैं। कम्प्यूटर स्क्रीन पर इमेज बायें से दायें तथा उपर से नीचे इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा परिवर्तित होती रहती हैं परन्तु इसका अनुभव हम तभी कर पाते हैं जब स्क्रीन ‘क्लिक’ करती हैं। प्रायः क्लियर (स्क्रीन का Refresh का होना ) का अनुभव हम तब कर पाते हैं जब स्क्रीन तेजी से परिवर्तित नहीं होती हैं। मॉनीटर की रिफ्रेष रेट (Refresh Rate) को हर्ट्ज में नापा जाता हैं। पुराने मापदण्डों के अनुसार मॉनीटर की रिफ्रेष रेट (Refresh Rate) 60Hz थी परन्तु नये मापदण्डों में इसका माप 75Hz कर दिया गया हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि मॉनीटर पर डिस्पले एक सेकेण्ड में 75 बार परिवर्तित होता हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जितना अधिक रिफ्रेष रेट होगा उतना कम Flick करेगा।
डॉट पिच (Dot Pitch)- डॉट पिच एक प्रकार की मापन तकनीक हैं जो कि दर्षाती हैं कि प्रत्येक पिक्सेल (Pixel) के मध्य कितना उदग्र (Vertical) अन्तर हैं। डॉट पिच का मापन मिलीमीटर में किया जाता हैं। यह एक ऐसा गुणा या विषेषता है जो कि डिस्प्ले मॉनीटर की गुणवत्ता को स्पष्ट करता हैं । एक कलर मॉनीटर जो कि पर्सलन कम्प्यूटर में प्रयोग होता है। उसकी डॉट पिच (Dot Pitch) की रेंज (Range) 0.15mm से .30mm तक होती हैं।
इन्टरलेस्ड व नॉन–इन्टरलेस्ड (Interlaced or Non-Interlaced)- इन्टरलेसिंग (Interlacing) एक ऐसी डिस्प्ले तकनीक हैं जो कि मॉनीटर को इस योग्य बनाती हैं कि वह डिस्प्ले होने वाले रेजोल्यूषन (Resolution) की गुणवत्ता में और वृद्धि कर सकें। इन्टरलेसिंग मॉनीटर के साथ इलेक्ट्रॉन गन ( Electron guns) केवल आधी ( half) लाइन खींचती थी क्योंकि इन्टरलेसिंग मॉनीटर एक समय में केवल आधी लाइन को ही रिफ्रेष करता हैं । यह मॉनीटर प्रत्येक रिफ्रेष साइकिल (Refresh Cycle) पर दो से अधिक लाइनों को प्रदर्षित करती थी । दूसरी तरफ इन्टरलेसिंग वही रेजोल्यूषन प्रदान करता हैं जो कि नॉन-इन्टरलेसिंग (Non-interlacing) प्रदान करता हैं लेकिन यह कम खर्चीला होता हैं। इन्टरलेसिंग की कमी यह होती हैं कि इसका अनुक्रिया समय (Response time) धीमा होता हैं तथा एनीमेषन युक्त तथा विजुअल प्रोग्राम (Visual Program) के लिए यह उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि इसमें झिलमिलाहट न के बराबर होनी चाहिए। इन दोनों प्रकार के मॉनीटरों में देखा जाये जो दोनों ही एक समान रेजोल्यूषन प्रदान करते हैं परन्तु नॉन-इन्टरलेसिंग (Non_Interlacing) मॉनीटर ज्यादा अच्छा होता हैं।
बिट मैपिंग (Bit Mapping)- प्रारम्भ में डिस्प्ले डिवाइसेज केवल कैरेक्टर एड्रेसेबल (Character Addressable) होती थी जो केवल टेकस्ट (Text ) को ही डिस्प्ले करती थीं । स्क्रीन पर भेजा जाने वाला प्रत्येक कैरेक्टर समान आकार और एक निष्चित संख्या के पिक्सेलों (Pixels) के ब्लॉक (समूह) को होता था । ग्राफिक्स, दोनों डिस्प्ले हो सकें। ग्राफिक्स आउटपुट Display करने के लिये जो तकनीक काम में लायी जाती हैं, वह बिट मैपिंग (Bit Mapping) कहलाती हैं। इस तकनीक में बिट मैप ग्राफिक्स का प्रत्येक पिक्सेल ऑपरेटर द्वारा स्क्रीन पर नियन्त्रित होता । इससे ऑपरेटर किसी भी आकृति की ग्राफिक्स स्क्रीन पर बना सकता हैं ।
Video Standards Or Display Mode
Personal Computer की Video तकनीक में प्रतिदिन सुधार आता जा रहा हैं इसलिए अधिकाधिक सुविधा देने वाले Monitor उपलब्ध हो रहे हैं। कुछ Video Standard निम्नलिखित हैं।
(1) CGA (Colour Graphic Adapter) – इसका निर्माण 1981 में IBM नामक कम्पनी ने किया। यह Display System चार रंगो को प्रदर्षित करने की क्षमता रखता था । तथा इसकी प्रदर्षन क्षमता 320 Pixel Horizontally तथा 200 Pixel Vertically थी । यह Display प्रणाली साधारणतः खेलो के लिए प्रयोग में आती थी । यह उन जगहों पर काम में लेते थे जहाँ Resolution ज्यादा काम में नहीं आते थे। यह System DTP तथा अन्य Graphics, Image के लिए पर्याप्त नहीं था।
(2) EGA (Enchanced Graphics Adapto) – इसका निर्माण भी IBM ने 1984 में किया था। यह Display System 16 अलग- 2 रंगो को प्रदर्षित करने की अनुमति प्रदान करता था। इसकी प्रदर्षन क्षमता 640 Pixel Horizontally तथा 350 Pixel Vertically थी । जो CGA की अपेक्षा ज्यादा थी । इस System प्रदर्षन क्षमता अधिक होते हुए भी यह अधिक क्षमता वाली Graphics तथा DTP के लिए पर्याप्त नहीं थी।
(3) VGA (Video Graphics Arrays) – इसका निर्माण IBM ने 1987 में किया था। आजकल बहुत सारे VGA Monitor काम में लाये जा रहे हैं । VGA Monitor का Resolution इसमें उपयोग होने वाले रंगो पर निर्भर करता था। हम रंग 16 640×480 Pixel Per या 256 रंग 800 X 600 Pixel Per Select कर सकते है | सारे IBM Computer VGA Display System को Use में लेते हैं ।
(4) SGA (Standard Graphics Array) इसका निर्माण IBM ने 1990 में किया था। इसका Version SGA 16 Milion रंगो में 800 x 600 Pixel का Resolution तथा 65536 Milion रंगो में 1024 x 768 Pixel का Resolution प्रदर्षित करता था ।
(5) SVGA (Super Video Graphic Array)- आजकल सारे PC SVGA Display वाले Monitor Use में ले रहे हैं। Video Electronic Standards Association (VESA) द्वारा Standard Program Interface का निर्माण किया गया। जो कि SVGA Display में मदद करता था । उसको VESA, BIOS Extension कहते हैं । SVGA Display System कई Milion Colours के प्रदर्षन की क्षमता रखता हैं। छोटे आकार के SVGA Monitor H 800 x 600 V Pixel का प्रदर्षन करते हैं। तथा बड़े आकार SVGA Monitor 1280 H x 1024 V Pixel का Resolution प्रदर्षित करते हैं।
Secondary Memory/External Memory/Secondary Storage Device
Secondary Storage Device को External Storage Device भी कहते हैं। इनमें डाटा स्थायी रूप से Stored होते हैं । Secondary Storage Devices आजकल के कम्प्यूटर के मुख्य उपकरण ही Operating System जैसे Window 98, में language Compiler जैसे C++, Visual Basic या बहुत सी Graphic होती हैं। अतः किसी File के Storage के लिए अधिक Storage Capicity की आवष्यकता होती हैं। इसी प्रकार विभिन्न Software में बहुत अधिक संख्या में फाईल्स होती है।। अतः बड़ी मात्रा में Data Program व Information को संग्रहित करने के लिए Secondary Storage Device का उपयोग आवष्यक हैं। यद्यपि इन उपकरणो में Storage तथा Re-Store Speed RAM की अपेक्षा कम होती हैं । परन्तु यह RAM की अपेक्षा सस्ते होते हैं ।
Advantage:
(1) क्षमता (Capacity) – इनमें बहुत अधिक मात्रा में Data Program व Information को संग्रहित करने की क्षमता होती हैं।
(2) कम लागत (Economical) – RAM की अपेक्षा इनमें अधिक मात्रा में सूचनाओं का संग्रहण कम लागत में किया जाता है।
(3) Reliable (विष्वसनीयता ) – यह Reliable हैं। डाटा सुरक्षित रहता हैं ।
(4) Non Volatile Storage Media –
(5) Portable (गमनीय) – Secondary Storage Device में Store किए गए डाटा को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता हैं ।
(6) Re-Usable – ( पूनः उपयोगी ) – इनमें पहले से स्टोर किसी डाटा को हटाकर नया डाटा Enter किया जा सकता हैं।
Secondary Storage Device निम्नलिखित हैं :-
(1) Floppy Disk – Floppy Disk या Diskette एक प्लास्टिक के आवरण में Myler पदार्थ की वर्त्ताकार चकती (Disk) होती हैं। जिसकी सतह पर चुम्बकीय पदार्थ का लेप (Magnetic Metrial Coating ) होती हैं | Hard Disk के समान इसकी दोनो सताहों पर Tracks एवं Sector होते हैं । Floppy Disk का आवरण इसमें स्थित डिस्क को घूमने पर Scratch से बचाता हैं। इसकी डिस्क 3.50″ तथा 5.25″ के व्यास में उपलब्ध हैं। इसके आवरण में एक हिस्सा खुला रहता हैं जिससे Read/Write Head Data को जो डिस्क पर स्टोर होते हैं Read कर सकते हैं। इसमें Cylinder का कोई System नहीं होता हैं। इसके आवरण में एक छिद्र होता हैं । जब यह Photo Sensor के नीचे आता हैं तो इसका अर्थ है कि Read / Write Head अब वर्तमान Track के प्रथम Sector पर स्थित हो गया हैं । Floppy के एक ओर कुछ कटा हुआ भाग होता हैं। जिसे Write Protect Notch कहते हैं। यदि Write Protect Notch को एक Stiker या Tape से बंद कर दिया जाता हैं तो Disk पर से डाटा केवल रीड किया जा सकता हैं। Floppy Disk 300 RPM (Round Per Minute ) की गति से घूमती हैं । Floppy के मध्य एक बड़ा छिद्र होता हैं तथा Floppy Drive में Fit होता हैं।
Floppy Disk में Data संग्रहण – Floppy Disk में डाटा अदृष्य Tracks में संग्रहित होता हैं। प्रत्येक Track की एक संख्या होती हैं। प्रत्येक Track अनेक Sectors में विभाजित होता हैं। प्रत्येक Track में Sectors की संख्या समान होती हैं । Disk को Format करने पर Tracks व Sector बनते हैं । Floppy Disk के प्रारम्भिक Track (Oth Track) का उपयोग अन्य Track में संग्रहित सूचना को पहचानने में होता हैं। एक Sector में मुख्यतः दो भाग होते हैं।
(1) Identification Field or Fat Area
(2) Data Field
(1) पहचान क्षेत्र इसमें उस Sector का Address, Track संख्या Head संख्या और सेक्टर संख्या के रूप में संग्रहित करता हैं ।
(2) Data क्षेत्र- Data क्षेत्र में डाटा संग्रहित रहता हैं ।
Floppy Disk Formation – नई Floppy में कोई भी Track अथवा Sector नहीं होते है। आजकल Floppy पहले से Formated आती हैं। Disk में Track व Sector बनाने के लिए Floppy की Formating की जाती हैं । Floppy Formating का कार्य Operating System की सहायता से किया जाता हैं। हम उपयोग में ली गई किसी Floppy को format कर सकते हैं। किन्तु इस प्रक्रिया में Floppy में पहले से संग्रहित सूचनाएं नष्ट हो जाती हैं।
Floppy के आकार सामान्यतः Floppy का आकार 3.50″ या 5.25” का होता हैं। पहले Floppy 8 इंच की भी आती थी। यह घनाकार होती हैं। वर्तमान में 3.50 ” की Floppy का उपयोग किया जाता हैं।
(1) 5.25” की Floppy – इसमें दोनो तरफ की सतहों पर 40-40 Track होते हैं। प्रत्येक Track में 9 Sector होते हैं। प्रत्येक सेक्टर में 512 Bytes की सूचनाएं संग्रहित कर सकते हैं। प्रत्येक अक्षर को संग्रहित करने के लिए 1 Bytes की आवष्यकता होती हैं । 5.25″ की floppy की कुल संग्रहण क्षमता = 9 x 512 x 40 x 2 = 368640 Bytes 368640 = 360 kb उपयोग 1024 सीमाएं
(2) 3.50” की Floppy – इस डिस्क की दोनो सतहों पर 80-80 Tracks होते हैं। प्रत्येक Track में 18 Sector होते हैं। प्रत्येक Sector 512 Byte की सूचनाओं के संग्रहित कर सकता हैं । 80 x 18 x 512 x 2 Floppy Type
उपयोग–
(1) इसका उपयोग करना आसान होता हैं 1
(2) यह बहुत सस्ती होती हैं ।
(3) इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता हैं।
सीमाए –
(i) अत्यधिक सूचनाओं वाली फाईल को संग्रहित नहीं किया जा सकता हैं।
(ii) यह जल्दी खराब हो जाती हैं ।
HARD DISK
IBM द्वारा निर्मित इस डिस्क को Winchester Disk भी कहते हैं। इसकी बनावट तथा कार्य विधि डिस्क की तरह ही होती हैं। Hard Disk धातु की अनेक Disk Plated का समूह होता हैं। तथा डिस्क की दोनो सतहों पर चुम्बकीय पदार्थ Magnetic Material का लेप होता हैं। इसमें Magnetic form में Data Store होता हैं। सभी डिस्क एक Shaft में लगी होती हैं।
शीर्ष डिस्क के उपरी सतह और निचली डिस्क की निचली सतह पर डाटा स्टोर नहीं किया जा सकता हैं। प्रत्येक सतह के लिए एक Read Write Head होता हैं। इन Read Write Head का समूह एक Arm पर लगा होता हैं। प्रत्येक Head, Arm के द्वारा आगे पीछे गति करके, घूमती हुई Disk की सतह पर उपयुक्त Track पर पहुंच सकता हैं ।
Disk के घूमने की गति 3600 से 7200 RPM (Rotation Per Minute ) होती हैं । Read Write Head अन्य Track को Read/Write किए बिना ही सीधे उसी Track पर स्थित हो जाता हैं जिसमें डाटा उपस्थित हैं। इस प्रकार डाटा Read / Write की प्रक्रिया direct होती हैं। इसलिए Hard Disk को direct Acess Storage Device भी कहते हैं। प्रत्येक डाटा की स्थिति का एक पता Disk Address होता हैं । Disk Address की सूचना में सतह संख्या, Track संख्या तथा Sector संख्या होती हैं। उसी सूचना की सहायता से Access Arm Data को ढूंढती हैं। किसी डाटा को ढूंढने में जितना समय लगता हैं । उसे Acess Time कहते हैं । Acess Time दो तरह के समय का टोटल होता हैं ।
(1) Seek Time वह समयावधी थी जिसमें ReadWrite Head उचित Track पर पहुंचता हैं। जहां डाटा पड़ा हैं।
(2) Rotational Latency Time – वह समयावधि जिसमें Read/Write Head उचित Sector पर पहुंचता हैं । आधुनिक समय में Hard Disk में औसत Rotation Latency Time 4.2 से 6.7 Micro Second होता हैं । Hard Disk का औसत Acess Time 12 Micro Second होता हैं । Acess Time = Seek Time + Latency Time Data की प्राप्ति शीघ्रता से करने के लिए Access Time को कम करना चाहिए। इसे कम करने के लिए Seek Time को कम करना अधिक उचित होगा । अतः डाटा व फाईल्स को डिस्क में इस प्रकार संग्रहित किया जाना चाहिए कि Seek Time में कमी आए ।
Disk Cylinders – Disk Pack में Disk Storage को समझने के लिए Disk Cylinder को समझना आवष्यक हैं। माना एक हार्ड डिस्क में 8 संग्रह योग्य सतह हैं और प्रत्येक सतह पर 400 Tracks उपस्थित हैं । तो हम यह मान सकते हैं कि Disk Pack 400 काल्पनिक Cylinder से मिलकर बना हैं। प्रत्येक Cylinder में 8 Track हैं। सभी सतहों के Read / Write Head एक समय में एक Cylinder पर स्थित रहते हैं तथा Track में डाटा पढा या लिखा जा सकता हैं।
लाभ (Advantage) –
(1) इसका आकार छोटा होता हैं। किन्तु अधिक Data Store किया जा सकता हैं।
(2) इनमें डाटा संग्रह करना सस्ता होता हैं ।
(3) इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता हैं।
(4) इसकी Floppy की अपेक्षा Data Acess Speed Fast होती हैं ।
हानि-
(1) यदि Hard Disk टूट जाए तो सारा डाटा उसी समय नष्ट हो जाता हैं।
Magnetic Tape
Magnetic Tape का उपयोग कम्प्यूटर में उपयोग में लिया जाता हैं। Magnetic Tape को सूचनाओं के संग्रहण में काम में लेते हैं। Magnetic Tape Plastic का लचीला Ribbon होता हैं। इसकी लम्बाई 2400 feet होती हैं एवं चौड़ाई 0.5″ इंच होती हैं| Magnetic Tape की Storage क्षमता इस पर निर्भर करती हैं कि उसकी लम्बाई एवं Recording घनत्व कितना हैं | Tape में डाटा क्रमानुसार (Sequentially) लिखा व प्राप्त किया जाता हैं। इसलिए इसे Sequential Acess Media कहते हैं। Magnetic Tape पर डाटा BCD पद्धति में स्टोर किया जाता हैं । अतः इसमें सात Tracks होते हैं | Magnetic Tape की तुलना Audio Cassette से की जा सकती हैं। परन्तु इनमें मुख्य अन्तर यह हैं कि Magnetic Tape रूक – 2 कर चलती है। क्योकि यदि वह लगातार चले तो Record किए गए सभी डाटा CPU द्वारा नहीं पढे जायेगें ।
Magnetic Tape पर Data विभिन्न Block में स्टोर रहता हैं । अतः CPU द्वारा पहले एक ब्लॉक को पढा जाता हैं। फिर उसकी Processing होती हैं | Processing के दौरान चूंकि टेप स्थिर नहीं रहता हैं । इसलिए दो Block के मध्य Gap रखा जाता हैं। इस गेप को Inter Record Gap (IRG) कहते हैं। इन अन्तरालो पर कोई भी डाटा संचित नहीं रहता हैं ।
Magnetic Tape में एक Off Line उपकरण की सहायता से डाटा संचित किए जाते है । जिसे Magnetic Tap Encoder कहा जाता हैं।
यह टेप काफी सस्ती हैं एवं इसे प्रयोग करना भी आसान हैं। परन्तु अब इसका प्रयोग कम होता हैं क्योकि प्रकाषीय Storage Devices तुलनात्मक रूप से सस्ती होती हैं । एवं उनसे Data सीधे ही प्राप्त किया जा सकता हैं।
लाभ (Advantage) – यह एक सस्ता Storage का माध्यम हैं । डाटा अत्यधिक मात्रा में स्टोर किया जा सकता हैं। इसमें पूर्व में स्टोर किये गये डाटा को हटाकर नया डाटा स्टोर किया जा सकता हैं। इसका उपयोग करना आसान हैं। डाटा स्थानान्तरण सरल हैं । इसमें 9 Bit होते हैं। जिसमें से 8 Bit तो एक Character को Present करने में व 9th Bit जिसे Check Bit कहा जाता हैं का काम Information Right हैं या Wrong Check करना हैं ।
हानि (Disadvantage) – Magnetic Tape में डाटा को क्रमानुसार ही स्टोर व प्राप्त किया जा सकता हैं। इसकी गति धीमी होती हैं। (IBG) Inter Block Gap.
Data Storage & Re-Trival / Method
(1) Sequential/ Serial Acess Method – इस विधि में डाटा एक के बाद एक क्रमागत तरीके से ही स्टोर तथा प्राप्त किये जाते हैं। अर्थात् किसी डाटा पर पहुंचने के लिए उससे पहले सभी डाटा से होकर जाते हैं। जैसे :- Magnetic Tape, Audio Cassettes etc. इस प्रकार की विधि में डाटा उसी क्रम में प्राप्त किये जा सकते हैं जिस क्रम में उन्हें स्टोर किया गया था। इस विधि का प्रयोग उन संस्थानों में होता हैं जहां अधिक मात्रा में आंकड़े संग्रहित किए जाते हैं। और उनको क्रमानुसार ही काम में लिया जाता हैं। जैसे कि कर्मचारियों के लिए शुभकामनाओं पत्रों हेतु उनके Address क्रमानुसार कम्प्यूटर में छापे जाते हैं।
(2) Direct Acess Method. इस विधी द्वारा डाटा सीधे ही स्टोर तथा प्राप्त किया जा सकता हैं । अर्थात् किसी भी डाटा को प्राप्त करने के लिए उससे पहले के सभी डाटा से होकर जाने की जरूरत नहीं होती हैं। इस विधी को प्रयोग से Data Retrival Speed बढ़ जाती हैं । यह विधि उन संस्थानों में काम में ली जाती हैं जहा डाटा को किसी क्रम में प्राप्त करने की आवष्यकता नहीं होती हैं।
(3) Index Sequential Acess Method यह विधि उपरोक्त दोनो विधियों का मिलाजुला रूप हैं। इस विधि में सारे Records क्रम में लगे होते हैं। तथा उन्हें जल्दी प्राप्त करने के लिए Index Table का प्रयोग किया जाता हैं। इसे ISAM ( Index Sequential Acess Method) भी कहते हैं ।
Optical Media
सन् 1990 दषक में Optical Disk की तकनीक विकसित हुई। इस डिस्क में Laser Beam की सहायता से डाटा को Read Write किया जाता हैं। इसलिए इसे Optical Disk कहते हैं ।
(1) CD ROM (Compact Disk) – यह Data Store करने का एक साधन हैं। इसमें लिखी गई सूचनाओं को केवल पढ़ा जा सकता हैं। इसकी संग्रहण क्षमता (650 MB) बहुत अधिक होती हैं । यह disk Metal पदार्थ की बनी होती हैं जिसकी एक सतह पर Aluminum की Coating होती हैं जिससे यह Reflection का गुण रखती हैं इस पर डाटा स्टोर करने के लिए इसकी परावर्तन सतह पर एक उच्च तीव्रता की Laser किरण डाली जाती हैं जिससे एक छोटा whole बनता हैं जिसे Pit कहते हैं जो 1 bit का सूचक होता हैं। जहां Pit नहीं हैं वह 0 bit का सूचक हैं उसे Land कहते हैं। Data को डिस्क से पढ़ने के लिए कम तीव्रता की Laser किरण इसकी सतह पर डाली जाती हैं। लेजर किरण डाटा को संग्रहित करने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं। जबकि केवल 5 Megawatt की लेजर किरण डाटा को रीड करने के लिए प्रयुक्त की जाती हैं।
CD ROM में एक लम्बा सर्पीलाकार Track होता हैं। जिसमें डाटा क्रमानुसार संग्रहित होता हैं । ये Track समान आकार के सेक्टर में विभाजित रहता हैं | CD ROM तेज बदलती हुई गति से घूमती हैं | CD ROM के प्रयोग में लेने के लिए Floppy Drive की भांति ही CD-Drive प्रयोग में लिया जाता हैं । CD-ROM में Floppy Disk की अपेक्षा अधिक डाटा संग्रहित किया जा सकता हैं। तथा इसकी Data Transfer Speed भी अधिक होती हैं। इसकी संग्रहण क्षमता 650 MB या उससे अधिक होती हैं। इसका उपयोग Audio – Video Disk के रूप में भी होता हैं ।
Optical Media में Data Magnetic Media की अपेक्षा अधिक सुरक्षित व विष्वसनीय रहता हैं तथा इसमें Store Data का जीवन काल भी काफी लम्बा होता हैं।
लाभ (Advantage) –
(1) अधिक मात्रा में Data Storage
(2) Data Transfer Rate अधिक
(3) Stored Data स्थायी
हानि– CD ROM पर खरोच लगने से यह खराब हो जाती हैं ।
(2) VCD (Video Compact Disk) इसका प्रयोग वीडीयो सूचनाओं को संग्रहीत करने के लिए किया जाता हैं। इसमें MPEG क्रमप्रेषन का प्रयोग करके 74 मिनट की Full Motion Video Picture की एक CD बनाई जाती हैं । इस Format में बनी Video CD को VCD कहा जाता हैं। VCD चलाने के लिए Video CD Player अथवा CDROM की आवष्यकता पड़ती हैं।
(3) CD-R (Compact Disk Recordable Drive) – CD ROM की तकनीक में और विकास हुआ । उस समय ऐसी Drive का निर्माण हुआ जिसका प्रयोग CD ROM पर डाटा राईट करने के लिए किया जाने लगा । CD-R को WORM (Write Once Read Many) भी कहते हैं । अर्थात् Disk में Data केवल एक बार ही Write कर सकते थे और अनेक बार पढ़ा जा सकता था ।
(4) CD-RW (Compact Disk Re-Writable) – यह आजकल प्रचलित एक प्रकार की नई डिस्क हैं। जिसे CD-RW कहते हैं। इस डिस्क पर बार – 2 नया डाटा पूराने डाटा को हटाकर राईट किया जा सकता हैं । यह Re-Writable CD हैं।
BLU RAY DISC
Blu Ray को Blu Ray Disc के नाम से भी जाना जाता हैं Short में इसे (BD) भी कहते हैं। यह एक Next Generation Optical Disc Format Development Blu-Ray Disc Association (BDA) & ¾ ö Consumer Electronics, Personal Computer Media Manufactures Apple, Dell, Hitachi, HP, JVC, LG, Mitsubishi, Panasonic, Pioneer, Philips, Samsung, Sharp, Sony, TDK, a Thomson Format Development High-Definition (HD) Video Recording, Rewriting तथा Playback को Enable करने के लिए तथा साथ ही Large amount of data को Store कर सकने के लिए किया गया। यह Format Traditional DVD’s से Five Times अधिक Storage Capacity उपलब्ध कराता हैं तथा Single Layer Disk पर यह 25GB Data Hold कर सकता हैं तथा Dual-Layer Disc पर यह 50GB Data Hold कर सकता हैं।
Optical Disc Technologies DVD-RAM Data DVD, DVD-R, DVD-RW Read तथा Write करने के लिए Red Laser का प्रयोग करती हैं वही यह नया Format blue-violet laser का User करता हैं इसलिए इसे Blu-ray कहा जाता हैं। विभिन्न प्रकार की Lasers Use में लेने के बावजूद भी Blu-ray Products CD तथा DVD’s के Compatible बन सकते हैं इसके लिए BD/DVD/CD Compatible Optical Pickup Unit की आवश्यकता होती हैं। Blue-Violet Laser (405nm) का प्रयोग करने का मुख्य Benefit यह हैं कि इसकी Wavelength red laser (650nm) से Shorten होती हैं जिससे अधिक से अधिक Laser Spot बनाने Possible होते हैं। इससे Data को कम से कम Space में अधिक Lightly तरीके से Store करया जा सकता हैं। इसलिए CD/DVD की Size में ही अधिक से अधिक Data Disc पर Fit करना Possible हो जाता हैं। BD पर Numerical Aperture 0.85 होता हैं जो Blu-Ray Disc को 25GB/50GB Data Hold करने के लिए Enable करता हैं ।
Blue-Ray 3d
180
Recording Medial, Video Game Music Companies & Support fe &
Features of Blu-Rays: –
Media Type
Fundamentals of Computers & Information Technology
Movie Studios &
Broad Support
Warner, Paramount, Sony, Lionsgate and Mam) Blu-Ray Format
(Disney, Fox, Sony, Lionsgate MGM)
Encoding
Capacity
Read Mechanism
Developed by
Usage
Leading Consumer Electronics, Personal Computer,
Format Major
| Total 87 Major Movies Studios (Disney, Fox,
Supportò & aen 34À À 5 ª
:
Physical Size
12 cm, Single Sided
- 8 cm, Single Sided
- High Density Optical Disc
- MPEG-2, H 264 and VC-1
- 25GB (Single Layer), 50GB (dual layer)
1 x @36 Mbit/s & 2 x @ 72 Mbit/s
- Movie Blu-ray Format Release
- Blu-Ray Disc Association
- Data Storage, High Definition video and Play Station 3 Games
Technical Specification: –
करीब 9 hours की high-definition (HD) Video एक 50GB Disc पर Stored की जा सकती हैं।
करीब 23 hours की Standard Definition (SD) Video एक SD GB Disc पर Stored किया जा सकता हैं। Single Layer Disc mpeg-2 Format – çà¶ þeð § 135 Minute High Definition Feature Store की जा सकती हैं।
Physical Size
12 cm Single Sided
8 cm Single Sided
Single Layer Capacity
25GB
7.8GB
Dual Layer Capacity
50GB
15.6GB
यद्यपी Blu-Ray Disc Specification Finalized कर दिया गया है फिर भी Engineers इस Technology को और अधिक Advance बनाने की कोशिश कर रहे हैं तथा 100GB की Quad Layer की 100GB के Disc का Demonstration किया जा चुका हैं। इसके अतिरिक्त TDK ने August 2006 में यह घोषणा की उन्होंने Blu-Ray Disc का एक ऐसा Experimental बनाया है जो 200GB Data को single Side में Hold कर सकता हैं। इस तरह की Disc आजकल के Player पर Work नहीं कर सकती हैं। JVC ने एक ऐसी Three Layer Technology का Development किया हैं जो दोनों प्रकार के Data Standard Definition DVD Data तथा HD Data को एक BD/DVD Combo पर रखा जा सकता हैं। इस प्रकार की Disc को DVD Players तथा BD Player दोनों पर प्रयोग किया जा सकेगा। इसे Hybrid Disc भी कहा जायेगा, परन्तु अभी तक इसका कोई भी Title Annoused नहीं किया गया हैं ।
MEMORY CARD
Memory Card Flash Memory Card & Solid State Electronic Flash Memory Data Storage Device हैं। जिसका प्रयोग Digital Camera, Hand held तथा Laptop Computers, Telephone, Music Players, Video Game Consoles Other Electronic Equipments Memory Card Re-record Ability, Power Free Storage, Small Form Factor जैसी विशेषताएं रखते हैं। Flash Card का प्रयोग Floppy Disc के Replacement के रूप में किया जाता हैं । ये flash memory card उन सभी Computers पर लगाये जा सकते हैं जिन पर USB Port उपलब्ध होता हैं। अलग-अलग प्रकार के Job के अनुसार अलग-अलग प्रकार के Memory Card Use में लाए जाते हैं। PC Card (MCM) ऐसे पहले commercial Memory Card Format (type I Card) 1990 में पहली बार उपलब्ध कराये गये थे। 1990 में PC-Card से भी छोटे कई प्रकार के Memory Card Format Market में उपलब्ध कराये गये जिनमें compact Flash, Smart Media तथा Miniture Card मुख्य थे। इसके अतिरिक्त अन्य Areas में Tiny Embedded Memory Cards (SID) Cell Phone में Use में लिये जाते हैं | Game Console में propriety Memory Cards Use में लाए जाते हैं तथा PDA’s व digital music players में removable memory cards use में लिए जाते हैं।
सन् 1990 व 2000 के मध्य Memory Cards के कुछ नये formats उपलब्ध कराये गये जिनमें SD/MMC, Memory Stick, XD-Picture Card तथा कई प्रकार के छोटे Cards थे | Cell Phone PDA’S तथा Compact Digital Cammera’s ने अल्ट्रा Small Cards के Trande को बढ़ाया तथा पुरानी Generation के Compact Card जो काफी बड़े दिखते थे उनके प्रयोग को कम कर दिया। आजकल अधिकतर नये PC में विभिन्न प्रकार के Memory Card जैसे Memory Stick, Compact Flash, SC इत्यादि के लिए Built in swt उपलब्ध होते हैं। कुछ Products एक से अधिक प्रकार के Memory Card को Support करते हैं।
Digital Subscriber Line
DSL or xDSL इस प्रकार की Technologies का एक Group है जो Local Telephone Network के Wires के द्वारा Digital Data Transmission उपलब्ध कराता हैं । DSL को Digital Subscriber Loop भी कहा जाता हैं । DSL Services के Download Speed 256 Kb/s से 24,000 kb/s की Range में होती हैं जो कि DSL Technology, Line Condition तथा Services Level पर depend करती हैं । DSL की Uploaded Speed Asymmetric Digital Subscriber Live (ADSL) Download Lower Symmetric Digital Subscriber Live (SDSL)की Download Speed के बराबर होती हैं।
DSL Connection एक Single Phone Line को दो Bands में बांटते हुए कार्य करता हैं। इस प्रकार के Connection में ISP Data बिना Phone Data को Distribute किये High Frequency पर run किया जा सकता हैं। इस प्रकार के Connection में User अपने प्रत्येक Phone पर एक DSL Filter Install करता हैं जो Phone से निकलने वाले Output को filter करता हैं । इसी DSL Filter के कारण Phone Low Frequency को Use करता हैं । यह दो Completely Independed bands create करता है जिसके द्वारा Phone Line को DSL Interfare किये बिना High frequency को DSL द्वारा Simultaneously Use किया जाना Possible हो जाता हैं।
DSL Technology Originally ISDN Specification के Part के रूप में Implement की गई थी इसलिए BRI (Basic Rate Interface) ISDN Line के साथ – साथ Analog Phone Line पर Operate की जा सकती हैं।
Joe Lechleider ने 1988 में Telcordia Technologies में ADSL का Development किया तथा इसका प्रयोग Existing baseband analog voice signals को Replace कर Wideband digital signals को implement किया।
पुराना ADSL Standard, shielded twisted pair copper wire का प्रयोग करते हुए 2km तक 8bit/s से data deliver कर सकता था। इसका Latest Standard, ADSL2+ 24Mbit/s की Speed से Data Deliver कर सकता हैं । 2Km से अधिक Distance होने पर bandwidth reduce होती हैं। जिससे Data Rate भी Reduce होती हैं ।
DSL Technologies: –
- High Data Rate Digital Subscriber Live (HDSL)
- Symmetric Digital Subscriber Live (SDSL)
- Asymmetric Digital Subscriber Live (ADSL)
- ISDN Digital Subscriber Live (IDSL)
- Rate-Adaptive Digital Subscriber Live (RADSL)
- Very High speed Digital Subscriber Live (VDSL)
- Powerlive Digital Subscriber Live (PDSL)
Zip Drive Zip Disk को Use में लेने के लिए Zip Drive का उपयोग किया जाता हैं । यह High Capacity की Floppy Disk Drive होती हैं। जिसे IO-Men Corporation द्वारा विकसित किया गया था। Zip Disk, Floppy की अपेक्षा थोड़ी बड़ी तथा मोटाई में करीब दुगुनी होती हैं। इसके अन्दर 100MB तक का डाटा स्टोर किया जा सकता हैं। चूंकि यह ज्यादा मंहगी नहीं होती हैं। तथा अधिक समय तक चल सकती हैं। इसलिए यह आजकल Hard Disk से Back-up लेने तथा बड़ी फाइलों को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाने के लिए अधिक उपयोग में ली जा रही हैं।